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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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श्री पूज्यपाद आचार्य ने कहा है कि " सूत्र में जो उत्तम विशेषण दिया है, वह चरमशरीर के उत्कृष्टपने को दिख• लाने के लिये दिया है। यहाँ इसका और कोई विशेषार्थं नहीं है, अथवा चरमोत्तम देह पाठ के स्थान में “चरमदेहा", यह पाठ भी मिलता है ।" किन्तु श्री श्रुतसागर सूरि ने तत्त्वार्थवृत्ति टीका में चरमशरीरी गुरुदत्त, पांडव आदि का मोक्ष, उपसर्ग के समय होने से उनकी अपमृत्यु स्वीकार की है; मात्र चरमशरीरियों में उत्तम पुरुष तीर्थंकर की अपमृत्यु नहीं मानी है । इस प्रकार मतभेद होते हुए भी श्री पूज्यपाद आचार्य का कथन विशेष माननीय है, क्योंकि वे महान् आचार्य थे तथा उनके कथन का समर्थन श्री अकलंक देव आदि आचार्यों ने भी किया है ।
जो तद्भव मोक्षगामी होते हैं वे सब चरमशरीरी होते हैं, क्योंकि चरमशरीरी का अर्थ अन्तिम शरीर है । जिसको मोक्ष की प्राप्ति हो रही है वह उसका चरमशरीर हो तो है, क्योंकि उसके पश्चात् उसको अन्य शरीर धारण नहीं करना है । अतः अचरम-शरीरियों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है, यह प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता ।
- जं. ग. 9-5-63 / IX / प्रो. म. ला. जैन
कृष्ण व पाण्डव का अकालमरण नहीं हुआ
शंका – अकालमृत्यु तीर्थंकरों के अतिरिक्त अन्य महानु पुरुषों की होती है । जैसे पांडव व कृष्ण आवि की हुई। क्या यह सत्य है ?
समाधान - आयु कर्म के क्षय को मरण कहते हैं ( धवल पु० १ पृ० २३४ ) आयु कर्म की स्थिति पूर्ण होने से पूर्व ही, विशेष कारणवश श्रायु कर्म के क्षय हो जाने को अकालमृत्यु कहते हैं । उपपाद जन्म वालों (देव, नारकी), चरमोत्तम देह ( तद्भव मोक्षगामी ) और असंख्यात वर्ष आयु वालों ( भोगभूमिया ) की अकाल मृत्यु नहीं होती ( मोक्षशास्त्र अध्याय २ सूत्र ५३ ) । इस सूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में लिखा है - " सूत्र में जो उत्तम विशेषण दिया गया है वह चरमशरीर के उत्कृष्टपने को दिखलाने के लिये दिया है । यहाँ इसका और कोई विशेष श्रथं नहीं है । श्रथवा 'चरमोत्तमदेहा' पाठ के स्थान में 'चरमदेहा' यह पाठ भी मिलता है ।" जयधवल पु० १ पृ० ३६१ पर भी कहा है – 'चरमदेहधारीणमवमच्चुवज्जियाणं' अर्थात् चरमशरीरी जीव अपमृत्यु से रहित हैं । श्रतः जो पाण्डव मोक्ष गये हैं उनकी अपमृत्यु संभव नहीं है, क्योंकि चरमशरीरी की अकाल मृत्यु नहीं होती, ऐसा नियम है । "
१. परन्तु पूज्य प्रभाचन्द्रविरचित तत्त्वार्थवृत्तिपद में 2/43 में लिखा है धरमदेहस्योत्तम विशेषणात तीर्थकरदेहो गृहयते । ततोऽन्येषां चटमदेहानामपि गुरुदत्तपाण्डवादीनामग्न्यादिना मरणदर्शनात् ।
अर्थ-धरमशरीर के साथ उत्तम विशेषण लगाने से तीर्थंकर का शरीर ग्रहण किया जाता है, क्योंकि धरमगीरी भी गुरुदत्त, पाण्डवों आदि का अग्नि आदि से मरण देखा जाता है ।
श्लोकवार्तिक खण्ड ५ पृष्ठ २५८ पर भी लिखा है- परमशरीरियों में तीर्थंकर परम देवाधिदेव की आयु ही अनपवर्त्य हैं। शेष मोक्षगामी जीवों की आयु के अनपवर्त्य होने का नियम नहीं यह सिद्धांत स्थिर हो जाता है । - सम्पादक
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