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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार :
सर्वघाती व देशघाती स्पर्धक प्रश्न-सर्वघाति कर्मस्पर्द्धक व देशवातिकर्मस्पर्द्धक से क्या तात्पर्य है ?
समाधान-घातियाकर्मों का अनुभागबन्ध लता, दारु, अस्थि और शैल समान शक्ति को लिये हुए होता है। उनमें से लता के सम्पूर्ण और दारु के बहु भाग स्पर्द्धक देशघाती कहलाते हैं, क्योंकि ये स्पर्धक आत्मा के सम्पूर्ण गुण का घात नहीं करते हैं। दारु के शेष स्पर्द्धक और अस्थि व शैल के सम्पूर्ण स्पर्द्धक सर्वघाती कहलाने हैं, क्योंकि ये आत्मा के सम्पूर्ण गुणों का घात करते हैं अथवा सम्पूर्ण गुणों को उत्पन्न नहीं होने देते हैं ।
-जं. सं. 24-5-56/VI/ फ. च. बामोरा अनुभाग स्पर्धक
शंका-क्या स्थिति की तरह अनुभाग के स्पर्द्धकों का उदय बिना उत्कषण, अपकर्षण व काण्डकघात के भी क्रमशः नहीं होकर आगे पीछे होता है ? होता है तो कैसे ?
समाधान-अनुभागस्पद्धकों में भी स्थितिबन्ध होता है क्योंकि प्रत्येक कार्मणवर्गणा जो बन्ध को प्राप्त होती है उसमें प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभागबन्ध अवश्य होता है। अनुभागस्पर्द्धकों में अनुभाग का उत्कर्षण, अपकर्षण व अनभागकाण्डकघात के बिना भी स्थितिसंक्रमण होने के कारण उनका उदय आगे पीछे होना सम्भव है। स्थितिसंक्रमण होने पर अनुभाग का संक्रमण अवश्य हो, ऐसा नियम नहीं है।
-पसाचार/ब. प्र. स. क्षयोपशम दशा में कर्म की देशघाती व सर्वघाती प्रकृतियों की कार्य विधि
शंका-क्या किसी कर्म के क्षयोपशम में उस कर्म की देशघाती तथा सर्वघातीप्रकृतियां जब सम्मिलित होकर कार्य करती हैं तभी क्षयोपशम दशा होती है जैसे ज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम में केवलज्ञानावरण तथा मतिज्ञानावरण आदि जो क्रमशः सर्वघाती व देशघाती हैं, ये सम्मिलित होकर कार्य करते हैं या अन्य प्रकार से ?
शंका-क्या किसी कर्म के क्षयोपशम में दूसरे कर्म के सर्वघाती कर्मस्पद्धकों व देशघातीस्पर्टकों के अर्थात उस कर्म का कोई भी एक सर्व या देशघाती कर्मस्पर्द्धक तथा दूसरे कर्म का कोई भी एक सर्व या देशघातीपककी सम्मिलित दशा को क्षायोपशमिक कहते हैं जैसे मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम में केवलज्ञानावरण कर्म जोमात्र सर्वघाती है, उसके सर्वघातीस्पद्धकों व मतिज्ञानाबरण जो मात्र देशघाती है उसके देशघाती कर्मस्पर्टकों का सम्मिलित कार्य क्षयोपशम कहलाता है या क्या मात्र उसी कर्म के सर्व व देशघातीस्पर्द्धकों के सम्मिलित कार्यको क्षायोपशमिक कहते हैं ? यदि अन्तिम विकल्प को क्षयोपशम कहें जिसमें मतिज्ञानावरण के स्वतः के देशातील सर्वघाती कर्मस्पर्द्धक माने गये हैं तो क्या केवलज्ञानावरण को छोड़कर मति, श्रत, 3 के क्रमशः स्वतः के भी अलग-अलग तथा उनकी उत्तर प्रकृतियों के भी अलग-अलग सर्वघाती व देशघाती दोनों तरह के स्पद्धक होते हैं तथा यदि सबके दोनों तरह के नहीं होते हैं तो कौनसी उत्तर प्रकृतियाँ मात्र देशघाती ही व कौनसी मात्र सर्वघाती ही हैं ?
शंका-चारों घातिया कर्मों की उत्तर प्रकृतियों की देशघाती व सर्वघाती सूची देने का कष्ट करें तथा पर भी सचित करें कि इन देश या सर्वघाती प्रकृतियों में भी सर्वधाती तथा देशघाती दोनों तरह के स्पर्ट क पाये जाते हैं या मात्र देश या सर्वघाती?
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