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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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समाधान-निन्दक कषाय के उदय में दूसरे प्राणी को निन्दा करता है। निन्दा करने में मुख्यता से .. मानकषाय का उदय रहता है। क्रोध कषाय के उदय में भी निन्दा की जा सकती है। दूसरे को प्रसन्न करने के लिए भी अन्य की निन्दा की जाती है उसमें माया या लोभ कषाय का उदय भी सम्भव है। इसप्रकार चारों कषायों के उदय में निन्दा सम्भव है। कषायोदय बिना निन्दा सम्भव नहीं है।
-M. 1. 8-2-62/म. घ. छ. ला. अग्नि एवं सूर्य की किरणों में अन्तर शंका-सूर्य की किरणों को 'अग्नि' में कहा जा सकता है या नहीं। यदि नहीं तो क्यों, फिर वह क्या है ?
समाधान-सूर्य की किरणें अग्नि नहीं हैं। अग्नि मूल में उष्ण होती है और उसकी प्राभा भी उष्ण होती है । सूर्य मूल में ठंडा है, किंतु उसकी आभा उष्ण है, अतः वह प्रातप है ।
( सर्वार्थसिद्धि अ० ८ सूत्र ११ की टोका ) -ज'. ग. 28-11-63/IX/र. ला. जैन, मेरठ
मानव की विभिन्न शक्लों ( चेहरों) का कारण शंका--मनुष्यादि जीवों की शक्ल में भिन्नता पाई जाती है। वह अङ्गोपाङ्ग की भिन्न-भिन्न आकार की रचना के कारण । तो यह अंगोपांग की भिन्न रचना किस प्रकृति के उदय से होती है तथा उस प्रकृति का भिन्न २ बंध किन भावों से होता है ? केवलज्ञानी जीवों के चेहरे की आकृति समान होती है या पृथक-पृथक् अर्थात् किसी की नाक छोटी, किसी की लम्बी, किसी के ओंठ मोटे, किसी के पतले आदि और वर्ण में भी अन्तर रहता है या नहीं ?
समाधान-कर्मबन्ध की आठ मूलप्रकृति हैं। उनमें से एक नामकर्म भी है। नामकर्म की ६३ उत्तर प्रकृतियां हैं। उनमें से अङ्गोपाङ्ग नामकर्म, निर्माण नामकर्म, वर्ण नामकर्म, संस्थान नामकर्म भी उत्तर प्रकृतियाँ हैं। इनके भी अवान्तर भेद असंख्यात हैं। इन कर्मों के उदय के कारण मनुष्यादि जीवों की भिन्न-भिन्न शक्लें पाई जाती हैं। कषायस्थान व योगस्थान भी असंख्यात है। कषायस्थानों व योगस्थानों की विभिन्नता के कारण अंगोपांग आदि प्रकृतियों के बध में विभिन्नता आ जाती है।
केवल ज्ञानी जीवों के चेहरे की प्राकृति भिन्न-भिन्न होती हैं, क्योंकि उनके अंगोपांग आदि नामकर्म के उदय में विभिन्नता है । वर्ण में भी अन्तर रहता है क्योंकि भिन्न-भिन्न वर्णनामकर्म का उदय पाया जाता है । कर्मप्रकृति के उदय के अनुरूप परिणाम होता है।
-जं. ग. 28-11-63/IX/ र. ला. जन
चार कषायों के प्रक्रम उदय में व्यवस्था
शंका-क्या अनन्तानुबन्धी के उदय में सोलह कषायों का उदय होता है या अनन्तानुबन्धो का ही उदय रहता है और समझा जाता है सोलह का ही उदय है ?
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