________________
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का आश्रय लेकर शुभ और अशुभ कर्मों के विपाक (फल) का वर्णन करने वाला विपाकसूत्र अंग है ।
४७६ ]
"कम्मोदयो खेत्त-भवकालपोग्गल - द्विदिविवागोदयक्खओ भवदि ।” ( कषायपाहुड़सूत्र पृ. ४९८ ) ।
"खेत्त भव-काल-पोग्गल-द्विविवियागोदयखयो दु ॥५९॥ " ( क. पा. सु. पृ. ४६५ ) ।
कर्मोदय क्षेत्र, भव, काल और पुद्गलद्रव्य के आश्रय से स्थिति के विपाकरूप होता है, अर्थात् कर्म उदय में श्राकर अपना फल देकर झड़ जाते हैं । इसी को उदय या क्षय कहते हैं ।
"कर्मणां ज्ञानावरणादीनां द्रव्यक्षेत्रकाल भवभावप्रत्यय फलानुभवनं ।" ( सर्वार्थसिद्धि ९।३६ ) ।
द्रव्य, क्षेत्र, काल भव, भावको निमित्त पाकर ज्ञानावरणादि कर्मों के फल का अनुभवन होता है अर्थात् कर्मोदय होता है ।
"द्रव्यादिवाह्यप्रत्ययवशात् परिपाकमुपयाति ।" ( रा. वा. ५।२० 1
द्रव्यादि बाह्यनिमित्त के वश से ही कर्म उदय में प्राकर फल देता | साता असातावेदनीय कर्म के उदय से ही सुख दुःख की सामग्री मिलती है ।
'ण च सुहः दुक्खहेदुदव्वसंपादयमण्णं कम्ममत्थि त्ति अणुवलंभादो ।' ( धवल पु. ६ पृ. ३६ ) ।
सुख
और दुःख के कारणभूत द्रव्यों का संपादन करने वाला वेदनीयकर्म के अतिरिक्त अन्य कोई कर्म नहीं है, क्योंकि वैसा कोई कर्म पाया नहीं जाता ।
" अभिलषितार्थप्राप्तिर्लाभः ।"
अर्थात् अभिलषित प्रर्थं की प्राप्ति होना लाभ है । ( ध. पु. १३ पृ. ३८९ ) ।
"जस्स कम्मस्स उदएण लाहस्स विग्धं होदि तल्लाहंतराइयं । "
जिस कर्म के उदय से लाभ में विघ्न होता है वह लाभान्तराय कर्म है धवल पु. ६ पृ. ७८ ) ।
अतः स्त्री, पुत्र, घन, मकान आदि इच्छित बाह्यसामग्री की प्राप्ति लाभान्तरायकर्म के क्षयोपशम से होती है, क्योंकि इस सामग्री के मिलने से दुःख का उपशमन होता है अतः साता वेदनीय कर्मोदय भी कारण है । ( धवल पु. ६ पृ. ३५; पु. १३ पृ. ३५७; पु. १५ पृ. ६ )
स्त्री, पुत्र, धन, मकान आदि इच्छित बाह्यसामग्री का वियोग या अप्राप्ति लाभान्तराय कर्मोदय से होता है, क्योंकि इस इष्ट सामग्री के वियोग से या अप्राप्ति से दुःख होता है अतः असातावेदनीय कर्मोदय भी कारण है । ( धवल पु. १३ पू. ३५७ ) ।
Jain Education International
- जै. ग. 16-3-72 / VIII / क्षु. शीतलसागर
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org