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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
एक ही भव में संहनन नहीं बदलता
शंका- भेदज्ञान पुस्तक के पृष्ठ ३६४ पर इस प्रकार लिखा है- 'निगोद से निकला जीव वृषभनाराच संहनन नहीं था। परिणाम निर्मल करते ही वस्त्रवृषभनाराचरूप शरीर हो गया ।' की निर्मलता से एक ही भव में संहनन स्वयमेव बदल जाता है ?
समाधान- 'जिस मनुष्य या तियंच के जन्म के समय वज्रवृषभनाराच संहनन न हो, किन्तु परिणामों के कारण बाद को वज्रवृषभनाराच संहनन हो जावे' ऐसा कथन दिगम्बर जैन आगम में देखने या सुनने में नहीं आया । किन्तु यह कथन पाया जाता है 'संहनन आदि शक्ति के अभाव से शुद्धात्मस्वरूप में स्थित होना असंभव है जिसके कारण उस भव में तो वह पुण्यबंध करता है और भवान्तर में मोक्ष जाता है ।' ( पंचास्तिकाय गाथा १७० तात्पर्यवृत्ति टीका पृ० २४३ व गाथा १७१ तात्पर्यवृत्ति टीका पृ० २४४ ) इस आगम कथन से यह सिद्ध हो जाता है कि उस ही भव में एक ही जीव के अन्य संहनन पलटकर वज्रवृषभनाराच संहनन नहीं होता है ।
-- जै. सं. 16-10-58 / VI / स. म. जैन, सिरोंज
हमारे-प्रापके हुण्डक संस्थान है
शंका-समचतुरस्त्र संस्थान के अतिरिक्त अन्य पाँच-संस्थानों का जो स्वरूप आगम में कहा है वह हमारे और आपके नहीं पाया जाता है, हमारे और आपके तो समचतुरस्त्रसंस्थान होना चाहिये ?
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समाधान — जिसके अंगोपाङ्गों की लम्बाई, चौड़ाई सामुद्रिकशास्त्र के अनुसार ठीक-ठीक बनी हो वह समचतुरस्रसंस्थान है । यदि कहीं पर एक बाल बराबर भी अन्तर होगया तो वह समचतुरस्रसंस्थान नहीं रहता, किन्तु अन्य पाँच संस्थानों में से किसी एक संस्थानरूप हो जाता है । स्थूलदृष्टि से तो हमारे और आपके शरीर की लम्बाई-चौड़ाई ठीक-ठीक ज्ञात होती है, किन्तु सूक्ष्मदृष्टि से देखा जावे तो ठीक नहीं है । इसलिये हमारे मौर मापके प्राय: हुंडकसंस्थान है ।
मनुष्य हुआ, क्या परिणामों
पंचमकाल में उदययोग्य संस्थान
शंका - पंचमकाल में मनुष्यों के कौन से संस्थान का उदय होता है ? समाधान -- पंचमकाल में मनुष्यों के प्राय हुंडक संस्थान का उदय होता है ।
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- जै. ग. 25-7-66 / 1X / र. ला. जैन, मेरठ
- जै. ग. 10-1-66 / VIII / र. ला. जैन, मेरठ
तीर्थंकरप्रकृति का उदय गर्भ से नहीं होता । (उनके जन्मसमय में नारकी भी वस्तुतः सुखी होते हैं । ) शंका- तीर्थंकर प्रकृति का उदय १३ वे गुणस्थान में होता है या गर्भ में आने से ? तीर्थंकर के जन्म के समय नरक में क्षणभर के लिए सुख होता है ऐसा व्यवहार से है या निश्चय से ?
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