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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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सभी अपर्याप्तकों को प्रायु श्वास के अठारहवें भाग प्रमाण है
शंका-एक श्वास में अठारहबार जन्ममरण निगोदिया ही करते हैं या और सभी ?
समाधान-लब्ध्यपर्याप्तकएकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक सभी जीव एक श्वास ( नाड़ी) में १८ बार जन्ममरण करता है । कहा भी है-"सव्वेसिमपज्जत्ताणमुक्कस्साउअं सरिसंति ।" (ध० पु० १४ पृ० ५१५) सब अपर्याप्तकों की उत्कृष्ट-आयु समान होती है।
-जं. ग. 2 5-5-78/VI/ मुनि अतसागरजी मोरेनावाले
गतिबन्ध तथा प्रायुबन्ध संबंधी ऊहापोह एवं श्रेणिक का उदाहरण शंका-एकपर्याय में एक ही गति का बंध होगा या विशेष का अर्थात् दो, तीनगति का बंध हो जाता है। यदि एक पर्याय में दो, तीनगति का बंध होगा तो आयु के त्रिभाग में बंध होना कैसे संभव होता है ? श्रेणिक महाराज का एक गति से वो दो बंध माने गये। एक नरकगति का दूसरे तीर्थंकरप्रकृति का बंध हुआ तो उन्हें मनुष्यगति का बन्ध हुआ कि नहीं या नरक ही में उनको मनुष्यगति का बन्ध होगा?
समाधान-शंका से ऐसा प्रतीत होता है कि आयु और गति को एक समझा है। कर्म आठ प्रकार के हैं। उन पाठ में से एक नामकर्म है और एक आयुकर्म है। नामकर्म की ९३ उत्तरप्रकृति हैं और एकप्रकृति का दूसरी प्रकृतिरूप संक्रमण भी हो जाता है, किन्तु आयुकर्म की ४ उत्तरप्रकृति हैं और आयुकर्म की एक उत्तरप्रकृति का दूसरी उत्तरप्रकृतिरूप संक्रमण नहीं होता है।
नामकर्म की ६३ उत्तरप्रकृतियों में 'गति' नाम की भी पिंडरूप उत्तरप्रकृति है जिसके नरक, तियंच, मनुष्य, देवरूप चार भेद हैं। इनमें से जिस समय किसी एक गति का उदय होता है तो अन्य तीन गतियाँ स्तिबुकसंक्रमण द्वारा उदयगत गतिरूप संक्रमण होकर उदय में आती हैं। अत: एकजीव के एक ही पर्याय में यथासंभव चारों गतियों का यथाक्रम बंध हो सकता है। एक जीव के एकपर्याय में एकसे अधिक गति का भी बंध हो सकता है. किन्तु एक जीव के एकपर्याय में एक ही आयु का बंध होगा अन्य आयु का बंध नहीं हो सकता। जिस समय आयु का बंध होता है उससमय गति का बंध भी आयु के अनुसार होगा, अर्थात् जिस आयु का बंध होगा उस स दी गति का बंध होगा। एक पर्याय में एक ही आयु के बँधने में कारण यह है कि 'एक प्राय का दूसरी आयरूप संक्रमण नहीं होता है।
मरण के अनन्तर समय में जिस आयु का उदय होगा उस ही गति का भी उदय होगा और उस ही गति में जीव जन्म लेगा। उस समय विवक्षितगति के अतिरिक्त अन्य तीन गतियां स्तिबुकसंक्रमण के द्वारा विवक्षितगतिरूप संक्रान्त होकर उदय में आती हैं।
राजा श्रेणिक के मिथ्यात्व अवस्था में परिणाम अनुसार चारों गतियों का बंध संभव है, किन्तु जिस समय नरकायू का बंध किया उस समय तो नरकगति का ही बंध हुआ। सम्यक्त्व काल अथवा तीर्थकरप्रकृति के बंधकाल में मात्र एक देवगति का ही निरन्तर बंध हुआ, क्योंकि सम्यग्दृष्टि मनुष्य या तिथंच के अन्य तीनगति की बंधव्युच्छित्ति हो जाने से अन्य तीनगति का बंध नहीं होता। सम्यग्दृष्टिदेव व नारकी निरन्तर एक मनुष्यगति का ही
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