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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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समाधान-इन्द्रिय जनित ज्ञान से भी हित में प्रवृत्ति और अहित से निवृत्ति होती है। ऐसा प्रत्यक्ष देखा जाता है। चींटी आदि मिष्टान्न पदार्थों की ओर जाती है और उष्णस्पर्श से दूर हटती है। जिस ओर जलाशय होता है बनस्पतिकायिक जीवों की जड़ें उसी पोर बढ़ती हैं।
"एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्व्यः ॥१॥३०॥ ( तत्त्वार्थ सूत्र)
अर्थात् -एक आत्मा में एक साथ एक ज्ञान से लेकर चारज्ञान तक होते हैं। यदि एक होता है तो वह केवलज्ञान होता है। दो होते हैं तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान होते हैं। तीन होते हैं तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान या मतिज्ञान, श्रु तज्ञान, मनःपर्ययज्ञान होते हैं, तथा चार होते हैं तो मतिज्ञान, श्रु तज्ञान, अवधिज्ञान और मन पर्ययज्ञान होते हैं । एक साथ पाँच ज्ञान नहीं होते । अर्थात् जिसके मतिज्ञान होगा उसके श्रुतज्ञान अवश्य होगा । कहा भी है
"एक केवलज्ञानं । द्वे मतिश्च ते । त्रीणि मतिश्र तावधि ज्ञानानि, मतिश्रु तमनःपर्ययज्ञानानि वा । चत्वारि मतिश्र तावधिमनःपर्ययज्ञानानि । न पञ्च सन्ति ।"
-जं. ग. 23-1-69/VII/ रो. ला. मित्तल प्रसंज्ञो जीवों [ असंजो पंचेन्द्रियों ] में तीनों वेद सम्भव है शंका-षट्खंडागम पु० २, पृ० ६७४ पर स्त्रोवेवी जीवों के पर्याप्त आलाप में संज्ञीपर्याप्तक व असंजीअपर्याप्तक दो जीवसमास क्यों कहे, क्योंकि स्त्रीवेदी जीव असंज्ञी कैसे हो सकते हैं ? मेरे ख्याल में सब असंज्ञी नपुंसक होते हैं।
समाधान-षट्खंडागम पु० २ पृष्ठ ६७४ पंक्ति ३ पर संज्ञीपर्याप्तक व प्रसंज्ञीपर्याप्तक कहा है। अपर्याप्तक अशुद्ध छप गया था जो शुद्धिपत्र के द्वारा शुद्ध करा दिया गया। असंज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचजीव गर्भज भी होते हैं और सम्मूर्छन भी होते हैं । जो सम्मूर्छन होते हैं वे तो नियम से नपुंसक होते हैं ( मोक्षशास्त्र अध्याय २ सूत्र ५० )। जो गर्भज होते हैं वे तीनों वेदवाले होते हैं। गर्भज-असंजीपंचेन्द्रियतियंचजीवों में स्त्री भी संभव है। कहा भी है-'तिरिक्खा तिवेदा असणि पंचिदिय-प्पहुडि जाव संजवासंजवात्ति ॥ १०७॥ (प. खं० पु. १, पृ० ३४६ )।'
अर्थ-तियंच-असंज्ञीपंचेन्द्रिय से लेकर संयतासंयतगुणस्थान तक तीनों वेदों से युक्त होते हैं ॥ १०७ ।। ..
-जं. सं. 20-3-58/VI/ कपूरीदेवी
असंज्ञी जीवों में मन के बिना भी बन्ध सिद्ध है शंका-मन और आत्मा भिन्न-भिन्न हैं । मन आत्मा के दश प्राणों में से एक प्राण है। कर्मबन्ध में मन कारण है क्या? यदि मन ही बन्ध का कारण है तो क्या असैनीजीव के बन्ध नहीं होता? भाव क्या मन से पैदा होते हैं या सीधे आत्मा से ? आत्मा और मन का क्या सम्बन्ध है ?
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