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सम्यक्त्व अनन्त संसार को काट कर सान्त कर देता है
शंका--समयसार गाथा ३२० की टीका के भावार्थ में 'समुद्र में बूंद की गिनती क्या' ऐसा लिखा है । यह दृष्टान्तरूप में है, किन्तु यह कथन दाष्टन्ति पर कैसे घटता है ?
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
समाधान - भावार्थ में लिखा है- "मिथ्यात्व के चले जाने के बाद संसार का अभाव ही होता है, समुद्र में बून्द की क्या गिनती ?" यहाँ पर यह बतलाया गया है कि समुद्र में जल अपरिमित है और जलबिन्दु परिमित है तथा समुद्रजल की अपेक्षा बहुत सूक्ष्म अंश है । इसी प्रकार अनादिमिध्यादृष्टि का संसारपरिभ्रमणकाल समुद्रजल की तरह अपरिमित है अनन्तानन्त है, किन्तु मिध्यात्व चले जानेपर अर्थात् सम्यग्दर्शन हो जाने पर अपरिमित अनन्तानन्त संसारपरिभ्रमण काल कटकर मात्र अर्धपुद् गल परिवर्तनकाल रह जाता है, जो अनन्तानन्त संसारकाल की अपेक्षा बहुत अल्पकाल है अर्थात् समुद्र में जलबिन्दु के समान है। श्री वीरसेनावि आचार्यों ने कहा है
"एक्केण अणादियमिच्छादिट्टिणा तिष्णि करणाणि कावूण गहिबसम्मत पढमसमए सम्मत्तगुरोण अणंतो संसारो छिण्णो अद्धपोग्गलपरियट्टमेत्तो कदो ।" ( धवल पु० ५ पृ० १५ )
अर्थ - एक अनादिमिथ्यादृष्टिजीव ने प्रधः प्रवृत्तादि तीनोंकरण करके सम्यक्त्व ग्रहण करने के प्रथम समय में सम्यक्त्वगुण के द्वारा अनन्तसंसार छेदकर अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमारण किया ।
इससे यह सिद्ध हो जाता है कि मिध्यादृष्टि अनन्तसंसार को छेदकर अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाणकाल नहीं कर सकता, किन्तु मिथ्यात्व के चले जाने पर सम्यग्दष्टि ही सम्यक्त्वगुण के द्वारा अनन्तसंसारकाल को छेद कर अर्धपुद्गल परिवर्तन मात्र कर देता है ।
- जै. ग. 25-3-81 / VII / र. ला. जैन, मेरठ
सम्यक्त्व का माहात्म्य
शंका- जिसे एक दफा भी सम्यक्त्व हो गया क्या उसे कभी न कभी मुक्ति अवश्य प्राप्त होगी ? प्रमाणपूर्वक खुलासा कीजिए ।
समाधान - जिसको प्रथमबार सम्यक्त्व ग्रहण हुआ है वह अधिक-से-अधिक अपुद्गल परिवर्तन काल में अवश्य मोक्ष को प्राप्त होगा । ( ष० खं० ५ /१४-१७ तक अन्तर प्ररूपणा सूत्र ११ की टीका से यह बात सिद्ध होती है । )
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- जै. सं. 28-6-56/V1 / र. ला. जैन, केकड़ी
सम्यक्त्व ही अनन्त संसार को श्रद्ध पुद्गल प्रमाण करता है
शंका-सम्यग्दर्शन होने पर संसार की स्थिति अर्धपुद्गलपरावर्तन रह जाती है या जब अर्धपुद्गल परावर्तन स्थिति रह जाती है तब सम्यग्दर्शन होता है ?
समाधान- सम्यग्दर्शन होने के प्रथमसमय में संसार की अनन्तस्थिति कटकर अर्धपुद्गलपरिवर्तनमात्र रह जाती है । अनादिमिथ्यादृष्टि के प्रथमोपशमसम्यग्दर्शन की उत्पत्ति का और संसारस्थिति कटकर अर्धपुद्गल परिवर्तन
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