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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार । की उत्पत्ति होती है तो भी वह केवलज्ञानोपयोग इन्द्रिय मन और आलोक से उत्पन्न नहीं होता है, क्योंकि जिसके ज्ञानावरणादिकर्म नष्ट हो गये हैं, ऐसे केवलज्ञान में इन्द्रियादि की सहायता मानने में विरोध आता है।
यदि कहा जाय कि केवलज्ञान का अंशज्ञान विशेषरूप से उत्पन्न होता है, इसलिये उसका केवलज्ञानत्व ही. नष्ट हो जाता है, सो भी ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर ज्ञेय के निमित्त से परिवर्तन करने वाले सिद्ध जीवों के ज्ञानांशों के भी केवलज्ञानत्व के अभाव का प्रसंग प्राप्त होता है।
-जं.ग. 11-11-71/XII/अ. कु. जैन शंका-ज्ञेयों के परिणमन की अपेक्षा केवलज्ञान में परिणमन कहना तो औपचारिक कथन है, जो सत्य नहीं है ?
समाधान-ज्ञेयों के परिणमन से केवलज्ञान में परिणमन होता है यह उपचरितनय का विषय होते हुए भी उपचरितस्वभाव का कथन है। यदि उपचरितस्वभाव के कथन को सत्य न माना जाय तो सर्वज्ञता भी सत्य नहीं होगी, क्योंकि सर्वज्ञता अर्थात् परज्ञता उपचरित स्वभाव की अपेक्षा से है। कहा भी है
"स्वभावस्याप्यन्यत्रोपचारादुपचरितः स्वभावः ॥१२३॥ स द्वधा-कर्मज-स्वभाविक भेदात् । यथा जीवस्य मर्तत्वमचेतनत्वम् । यथा सिद्धात्मनां परज्ञता परदर्शकत्वं च ॥१२४॥ (आलापपद्धति)
स्वभाव का भी अन्यत्र उपचार करना उपचरितस्वभाव है। वह उपचरितस्वभाव कर्मज और स्वाभाविक के भेद से दो प्रकार का है। जैसे जीव मूर्तत्व और अचेतनत्व कर्मज-उपचरित-स्वभाव है। तथा जैसे सिद्ध मात्माओं के परका ज्ञानपना तथा परका दर्शकत्व अर्थात सर्वज्ञता स्वभाविकउपचरितस्वभाव है।
जैसे केवलज्ञान के सर्वज्ञता सत्यार्थ है, वैसे ही ज्ञेयों के परिणमन की अपेक्षा केवलज्ञान का परिणमन भी सत्यार्थ है, क्योंकि दोनों उपचार स्वभाव का कथन होने से उपचारनय का विषय है।
-जें. ग. 11-11-71/XII/ अ. कु. जैन
संयममार्गरणा
संयममार्गणा में असंयम भेद कैसे शंका-गोम्मटसार में संयममार्गणा में असंयमको संयम कैसे कहा है ?
समाधान-मार्गणा का अर्थ-खोज, तलाश, अनुसंधान है। यदि संयम की अपेक्षा समस्त जीवों की खोज की जाय तो वे जीव तीन अवस्था में मिलते हैं। कुछ जीव तो संयमअवस्था में मिलते हैं। कुछ जीव मिश्र अर्थात संयमासंयमअवस्था में पाये जाते हैं और शेष जीव संयमरहित अर्थात् असंयमअवस्था में दिखाई देते हैं। अर्थात संयम की अपेक्षा जीवों के तीन भेद हैं-(१) संयम सहित जीव, (२) संयमरहित जीव, (३) त्रसघात त्याग की अपेक्षा संयम और स्थावरघात प्रत्याग की अपेक्षा असंयम ऐसी संयमासंयमरूप मिश्रअवस्थावाले जीव ।
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