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पं० रतनचन्द जैन मुख्तार !
मान्यवर माननीय विद्वद्वर धर्मप्रेमी, न्याय नीतिवान आप गुण के अगार हैं, धर्मरत्न कर्मठ कृपालु धीरवीर हैं, विचार के विशुद्ध दुनिया के प्रार-पार हैं । तत्त्वमर्मज्ञ हैं, शिरोमणि सिद्धान्त के हैं, मोह को निवार ज्ञान-गज पे सवार हैं, सहारनपुर के 'रतन' को सराहैं कैसे, हम पर आपके अपार उपकार हैं।
-दामोदरचन्द आयुर्वेद शास्त्री, १-७-७७
'शंका-समाधान' की शैली, पर तुमने अधिकार किया, नय-निक्षेप-प्रमाण आदि से, प्रतिभा का श्रृंगार किया । प्राग्रहयुक्त वचन कहीं भी, कभी न कहते सुने गये, समाधान सब शंकाओं के, मिलते रहते नये-नये ।।
-मूलचन्द शास्त्री, श्री महावीरजी
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