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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
इस द्वादशांग वाक्य से सिद्ध होता है कि निगोदिया जीव सिद्धालय में भी हैं। ये निगोदिया जीव संसारी हैं, मुक्त नहीं हैं, क्योंकि इनके निरंतर आठों कर्मों का सत्व व उदय पाया जाता है।
- जै. ग. 10-4-69 / V / दि. जैन, पं. फुलेरा साधारण वनस्पति कायिक ( निगोद ) का निवास, जन्म, इन्द्रियों एवं गति शंका --- लोक में निगोदिया जीच किस जगह पर हैं ? उनका जन्म किस प्रकार का है? कितनी इंद्रियाँ होती हैं और कौनसी गति है ?
समाधान - निगोद जीव सर्व लोक में रहते हैं । कहा भी है
"वणफविकाइय- णिगोदजीवा वादरा सुहुमा पज्जत्तापज्जत्ता केवढि खेत्ते, सम्बलोगे ॥ १-३-२५ ॥
षट्खण्डागम ।
वादर सूक्ष्मपर्याप्त अपर्याप्त वनस्पतिकायिक निगोद जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? सर्व लोक में रहते हैं । निगोदिया जीव का सम्मूर्च्छन जन्म होता है। निगोदिया जीव एकेन्द्रिय होते हैं और उनकी तिर्यञ्च गति होती है ।
एक निगोद शरीर में, अनन्त तैजस कार्मण शरीर
शंका- एक निगोद शरीर में औदारिक शरीर तो साधारण अर्थात् एक है, परन्तु तैजस-कार्मण शरीर तो सब जीवों के अलग-अलग हैं। क्या हमारा यह विचार आगमानुकूल है ?
- जै. ग. 5-3-70 / 1X / जि. प्र.
समाधान - ठीक है । एक साधारण औदारिक शरीर में अनन्त जीव होते हैं । कार्मण व तेजस शरीर अलग-अलग है । इस प्रकार एक साधारण औदारिक शरीर में शरीरों के होने में कोई बाधा नहीं होती, क्योंकि तेजस व कार्मण दोनों शरीर सूक्ष्म होते हैं ।
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उनमें हर एक जीव का अनन्त कार्मण व तैजस
सर्वकाल सिद्धों से एक निगोद शरीरस्थ जीव अनंतगुणे हैं
शंका- क्या एक निगोद शरीर में इतने जीव हैं जो भविष्यकाल में भी मुक्तों की संख्या के तुल्य नहीं होंगे ? क्या एक निगोद के जीवों की संख्या प्रमाण भी मुक्त जीव कभी नहीं होंगे ?
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- पत्राचार / जून 78 / III / ज. ला. जैन, भीण्डर
समाधान - एक निगोद शरीर में इतने निगोदिया जीव हैं कि अनन्तकाल बीत जाने पर भी वे सिद्धों से अनन्तगुणे ही रहेंगे ।' यदि एक निगोद-शरीर के जीवों की संख्या के तुल्य सिद्ध हो जावें तो सर्व भव्यराशि के मोक्ष चले जाने का प्रसंग आ जायगा, क्योंकि निगोद शरीर असंख्यात हैं, अनन्त नहीं हैं । भव्यों का अभाव हो
स्याद्वाद मंजरी २६ / 339 में भी इसी कथन की पुष्टि है।
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