________________
२३६ ]
लोक में सर्वत्र सूक्ष्म अग्निकायिक जीव ठसाठस भरे हुए हैं ।
शंका- क्या एकेन्द्रिय जीव सर्व लोक में रहते हैं ? क्या सूक्ष्म तैजसकायिक जीव सर्वत्र हैं ? क्या लोक का ऐसा एक भी प्रदेश नहीं है जहाँ कि सूक्ष्म तैजसकायिक जीव न हों ?
समाधान - केवली समुद्घात की अपेक्षा एक जीव का सर्वलोक क्षेत्र होता है । नाना एकेन्द्रिय जीवों का सर्वलोक क्षेत्र है । लोक का ऐसा एक भी प्रदेश नहीं है जो नाना एकेन्द्रियों की अपेक्षा अस्पृष्ट रहा हो । एकेन्द्रिय जीव सर्वत्र होते हैं । सूक्ष्म तेजसकायिक जीव भी लोक में ठसाठस भरे हुए हैं। लोक का ऐसा एक भी प्रदेश नहीं जहाँ सूक्ष्म तैजसकायिक जीव न हों।
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
शंका- पंचास्तिकाय टीका ब्र० शीतलप्रसादजी गाथा ११९ में वायुकाय और अग्निकाय के जीवों को त्रस संज्ञा कैसे दी गई है ?
- पत्राचार / ज. ला. जैन, भीण्डर
अग्निकायिकों व वायुकायिकों का औपचारिक त्रसत्व
समाधान - स्वयं श्री १०८ कुंदकुंद आचार्य ने गाया के 'अणिलाणलकाइया य तेसु तसा ।' इन शब्दों द्वारा वायुका और अग्निकाय को त्रस कहा है । 'त्रस्यन्तीति त्रसाः' अर्थात् जो चलते फिरते हैं उनको त्रस कहते हैं । इस निरुक्ति अर्थ की दृष्टि से वायुकाय और अग्निकाय को त्रस कहा गया है । किन्तु मोक्षशास्त्र में इस दृष्टि से कथन नहीं किया गया है क्योंकि 'द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः ' अध्याय २ सूत्र १४ के द्वारा एकेन्द्रिय जीवों को त्रस नहीं कहा गया है । वहाँ पर गमन करने और न करने की अपेक्षा नहीं होकर त्रस और स्थावर कर्मों के उदय की अपेक्षा से है | श्री सर्वार्थसिद्धि में कहा भी है ।
'आगमे हि कायानुवादेन श्रसाद्वीन्द्रियादारभ्य आ अयोगकेवलिन इति । तस्मान्न चलनाचलनापेक्षं त्रस स्थावरत्वम् । कर्मोदयापेक्षमेव ।'
कहा है ?
अर्थ - कायानुवाद की अपेक्षा कथन करते हुए आगम में बतलाया है कि द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर प्रयोग केवली तक के सब जीव त्रस हैं । इसलिये गमन करने और न करने की अपेक्षा त्रस और स्थावर में भेद नहीं है, किन्तु स स्थावर कर्म के उदय की अपेक्षा से हैं ।
इस प्रकार भिन्न दृष्टियों के कारण पंचास्तिकाय और मोक्षशास्त्र में अग्निकाय और वायुकाय के सम्बन्ध में दो भिन्न-भिन्न कथन पाये जाते हैं ।
Jain Education International
- जै. ग. 20-8-64 / 1X / ध. ला. सेठी, खुरई
शंका- श्री १०८ कुं वकुं द आचार्य ने पंचास्तिकाय में अग्निकाय और वायुकाय जीवों को त्रस क्यों
समाधान - अग्नि और वायु कायिक जीवों के यद्यपि स्थावर नाम कर्म का उदय है तथापि उनमें चलन क्रिया होने के कारण से श्रागम में उनको त्रस भी कहा है। श्री १०८ जयसेन आचार्य ने पंचास्तिकाय गाथा १११ की टीका में निम्न प्रकार कहा है
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org