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छवियाँ हैं । १३ से ७५ पृष्ठ तक त्यागियों, विद्वानों, श्रीमानों श्रौर स्वाध्यायप्रेमियों के श्राशीर्वचन, श्रद्धाञ्जलि श्रीर संस्मरण आदि संकलित हैं । श्रनन्तर ग्रन्थ के प्रारण स्वरूप हैं विविध अनुयोगों से सम्बन्धित शंकाओं के प्रमाणपुष्ट समाधान | पृष्ठ ७६ से ९९ तक प्रथमानुयोग से सम्बन्धित ४५ शंकाओं के समाधान संकलित हैं । १०० से ६१९ यानी कुल ५२० पृष्ठों में करणानुयोग से सम्बन्धित ८६९ शंकाओं के समाधान हैं । स्वर्गीय पण्डित जी वर्तमान जैन जगत् में करणानुयोग के अप्रतिम विद्वान् थे । पृष्ठ संख्या ६२० से ८७२ तक चररणानुयोग सम्बन्धी २३१ शंकाओं का समाधान हुआ है ।
दूसरी जिल्द में द्रव्यानुयोग विषयक ४०१ शंकाएँ ८७३ से १२५६ यानी ३८४ पृष्ठों में संकलित हैं । अनन्तर जैन न्याय अनेकान्त और स्याद्वाद, उपादान और निमित्त कारणकार्य व्यवस्था, नय-निक्षेप, अर्थ एवं परिभाषा एवं विविध शीर्षकों के अन्तर्गत लगभग २०० पृष्ठों की सामग्री ( पृ० सं० १२५७ से १४५६ तक ) १७० शंका-समाधान के माध्यम से संकलित की गई है और अन्त में स्व० पं० जी के स्वतन्त्र ट्रॅक्ट 'पुण्य का विवेचन' को तदविषयक शंका-समाधानों से संयुक्त कर पृ० सं० १४५७ से १५१२ तक मुद्रित किया गया है । अंत में, परिशिष्ट में श्राधारग्रन्थ सूची, शंकाकारों की सूची और अर्थ सहयोगियों की सूची मुद्रित की गई है। इस जिल्द की कुल पृ० संख्या ४+६५६ = ६६० है ।
सारी सामग्री के सम्पादन में सम्पादकों ने अपनी बुद्धधनुसार पूरी सावधानी रखी है। एक ही / एक सी शंका भिन्न-भिन्न वर्षों में पूछी गई है। इस पुनरावृत्ति से बचने का पूरा प्रयास हमने किया है तथापि जहां जरा भी दृष्टिकोण की भिन्नता दिखाई दी है और पुनरावृत्ति औचित्यपूर्ण प्रतीत हुई है, वे शंकाएँ और उनके प्रमाण हटाए नहीं गये हैं । पिष्टपेषण से बचने का पूरा ध्यान रखा गया है । उद्धरणों के ग्रन्थों के सन्दर्भ सही-सही दिये गये हैं । बार-बार एक ही उद्धरण प्रमाण स्वरूप आने पर सम्पादन में उसे हटाया भी है । शंकाथों का अनुयोग या विषयानुसार जो वर्गीकरण सम्पादकद्वय ने किया है, उससे पाठकों का मतभेद हो सकता है ।
१७०० से भी अधिक शंकाओं की सूची बनाना भी एक जटिल समस्या थी । प्रत्येक शंका को सूची में सम्मिलित करना अव्यावहारिक था क्योंकि तब लगभग ५०-६० पृष्ठों में सूची बन पाती और विषय को खोजना और भी मुश्किल हो जाता अतः विद्वानों से परामर्श कर संक्षिप्त सी विषय सूची तैयार की गई है और विशेष शीर्षक के अन्तर्गत तद्विषयक शंकानों को एकत्र रखा गया है। सूची में यह निर्दिष्ट कर दिया गया है कि किस विषय से सम्बन्धित कितनी शंकाएँ संकलित हुई हैं ।
पूज्य पण्डितजी ने एक दो शब्दों और एक पंक्ति में भी शंका का समाधान कर दिया है तो किसी-किसी शंका का समाधान ८-१० पृष्ठों में भी हुआ है । पूज्य पण्डितजी कृत समाधानों से विद्वानों का मतवैभिन्य सम्भव है परन्तु इतना अवश्य है कि जो कुछ मुख्तार सा० ने समाधान में लिखा है वह प्रमाणों से पुष्ट हैं । जहाँ प्रमाण नहीं मिल सका है पण्डितजी ने स्पष्ट लिख दिया है कि 'इस विषय में मुझे आगम प्रमाण नहीं मिला, विद्वज्जन इस पर विचार करें ।' श्रतः समाधानकर्त्ता की नीयत पर शक करने की कोई गुञ्जाइश नहीं है। बिना किसी
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