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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
किमिति स्वकार्य न विवध्यादिति चेन्न, तत्सहकारिकारणक्षयोपशमाभावात् । अस्तो मनसः कथं वचन द्वित्वसमुत्पत्तिरिति चेन्न, उपचारातस्तयोस्ततः समुत्पत्तिविधानात् ।" धवल पृ० २८२ ।
. सत्यमनोयोग तथा असत्यमृषा मनोयोग ( अनुभय मनोयोग ) संज्ञी मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगिकेवली पर्यन्त होते हैं। केवली के वचन संशय और अनध्यवसाय के कारण होते हैं और उन वचनों का कारण मन होने से केवली के अनुभय मनोयोग का सद्भाव स्वीकार कर लेने में कोई विरोध नहीं आता है। केवली के यद्यपि द्रव्यमन का कार्यरूप उपयोगात्मक क्षयोपशमिक ज्ञान का अभाव है तथापि द्रव्यमन के उत्पन्न करने में प्रयत्न तो पाया जाता है क्योंकि द्रव्यमन की वर्गणाओं के लाने के लिये होने वाले प्रयत्न में कोई प्रतिबन्धक कारण नहीं पाया जाता है। केवली के यद्यपि मनोनिमित्तक ज्ञान नहीं होता है, क्योंकि केवली के मानसिक ज्ञान के सहकारी कारण रूप क्षयोपशम का अभाव है, तथापि उपचार से मन के द्वारा सत्य और अनुभय दोनों प्रकार के वचनों की उत्पत्ति का विधान किया गया है।
इसी प्रकार धवल पु० १ सूत्र ५३ व ५४ में सयोग केवली के अनुभय वचन योग और सत्य वचनयोग का विधान किया गया है। अतः सयोग केवली सत्यभाषा वर्गणा और अनुभय भाषा वर्गणा को ग्रहण करते हैं।
___ सयोग केवली शुक्ल वर्ण, सुगन्धित, मधुर, मृदु, आहारवर्गणा ( प्रौदारिक वर्गणा ) को ग्रहण करते हैं, क्योंकि उनका रुधिर व मांस दूध व क्षीर के समान शुक्ल वर्ण वाला है। कर्पूरादि के सदृश उनके शरीर में से सुगंधी आती रहती है। उनका शरीर मधुर रसवाला तथा मृदु है क्योंकि उनके शरीर से किसी भी प्राणी को पीड़ा नहीं होती है । बोधपाहुड व महापुराण पर्व २५ में सयोगकेवली के शरीर का कथन है । स्फटिक के समान तेज से युक्त हैं अतः सयोग केवली स्फटिक सदृश तैजस वर्गणा को ग्रहण करते हैं।
-जें. ग. 22-1-76/...... | ज ला. जैन भीण्डर
केवली और पाहारवर्गणा शंका-केवलज्ञान होने के पश्चात् क्या आहारवर्गणा आती है ?
समाधान-केवलज्ञान हो जाने के पश्चात् भी १३ वें गुण स्थान में योग के कारण आहार वर्गणा का ग्रहण होता रहता है।
उबयावण्णसरीरोदयेण तहहवयणचित्ताणं । णोकम्मवग्गणाणं गहणं आहारय णाम ॥६६४॥ आहारदि सरीराणं तिण्हं एयदरवग्गणाओ य । भासमाणाणं णियदं तम्हा आहारयो भणियो ॥६६५।। विग्गहगवि मावण्णा केवलिणो समुग्धदो अजोगी य । सिद्धा य अणाहारा सेसा आहारया जीवा ॥६६६॥ गो० जी०
अर्थ-शरीरनामा नाम कर्म के उदय से देह वचन और द्रव्य मन रूप बनने के योग्य नोकर्म वर्गणा का जो ग्रहण होता है उसको पाहार कहते हैं। औदारिक, वैक्रियिक तथा पाहारक इन तीनों शरीरों में से किसी भी
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