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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
है, का प्रभाव कर संयम धारण करता है जो साक्षात् कल्याण का मार्ग है अर्थात् मन व पाँच इन्द्रियों के विषयत्याग से तथा पाँच पापों के सर्वथा त्याग स्वरूप पंच महाव्रत धारण करने से अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यानावरण इन आठ कषायों के प्रभाव हो जाने से संयम रूपी रत्न उत्पन्न हो जाता है जिसके द्वारा चार संज्वलन कषाय और नव नोकषाय देशघाति कर्म प्रकृतियों का अभाव करता है। जिन विशुद्ध परिणामों के द्वारा मिथ्यात्व व अनन्तानुबन्धी कषाय का नाश होता है उससे भी अनन्तगुणे विशुद्ध परिणामों के द्वारा अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण इन आठ कषायों का नाश होता है और उनसे भी अनन्तगुणे विशुद्ध परिणामों के द्वारा नव नोकषाय का नाश होता है और उनसे भी अनन्तगुणे विशुद्ध परिणामों के द्वारा क्रमशः संज्वलन क्रोध - मान-माया - लोभ का नाश होता है । तत्पश्चात् शुद्ध परिणामों द्वारा शेष तीन घातिया कर्मों ( ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय ) का नाश करता है ।
यद्यपि संज्वलन चतुष्क और नव नोकषाय देशघाति कर्म प्रकृतियाँ हैं तथापि ये आत्मा के यथाख्यात चारित्र अर्थात् सबसे बड़े चारित्र के घातक हैं इस कारण इनमें बहुत अधिक शक्ति है, इसीलिये इनको घात करने के लिये अति विशुद्ध परिणामों की आवश्यकता होती है जो अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के उपरितन भाग में संभव है ।
आर्ष ग्रन्थों में मोहनीय कर्म के नाश का क्रम इसी प्रकार वर्णित है । आचार्यों ने सर्वज्ञ के उपदेश अनुसार कथन किया है । यह गुरु परम्परा से उनको प्राप्त हुआ था । आर्ष वाक्य तर्क का विषय नहीं है। तर्क या युक्ति के बल पर आर्ष वाक्यों में संदेह करना अथवा आर्ष वाक्यों के विपरीत एकान्त मिथ्यात्व का उपदेश देना उचित नहीं है । जिन वचन में शंका करने से सम्यक्त्व में दूषण लगता है अथवा वह नष्ट ही हो जाता है ।
- जै. ग. 1-11-65 / VII - VIII / शा. ला.
नवम गुणस्थान में सामायिक व छेदोपस्थापना संयम
प्रश्न- नौवें गुणस्थान में सामायिक संयम तथा छेदोपस्थापना संयम कैसे संभव है ?
उत्तर - कर्मों के विनाश करने की अपेक्षा प्रति समय प्रसंख्यातगुणी श्रेणी रूप से कर्म - निर्जरा की अपेक्षा संपूर्ण पाप क्रिया के निरोध रूप संयम नौवें गुणस्थान में पाया जाता है । वह संयम, सम्पूर्ण व्रतों को सामान्य की अपेक्षा एक मानकर एक यम को ग्रहण करने वाला होने से सामायिक संयम द्रव्यार्थिकनयरूप है । और उसी एक व्रत रूप संयम को पाँच अथवा अनेक भेद करके धारण करने वाला होने से छेदोपस्थापना संयम पर्यायार्थिक नय रूप । धवल पु० १ पृ० ३७० ।
दसवें गुणस्थान में सामायिक संयम क्यों नहीं
शंका- दसवें गुणस्थान में सामायिक व छेदोपस्थापना संयम क्यों नहीं कहे गये ?
- जै. ग. 4 - 1 - 68 / VII / ना. कु. ब.
समाधान - सांप राय कषाय को कहते हैं । जिनकी कषाय सूक्ष्म हो गई है उन्हें सूक्ष्म सांपराय कहते हैं । जो संत विशुद्धि को प्राप्त हो गये हैं, उन्हें शुद्धि संयत कहते हैं । जो सूक्ष्म कषाय वाले होते हुए शुद्धि प्राप्त
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