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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : शलाका पुरुषों की संख्या ५८ ही कैसे हुई ? __ शंका-पं० भूधरदासजी कृत पार्श्वपुराण में ६३ शलाका पुरुषों में से ५८ जन चतुर्थकाल में हुए सो कैसे?
समाधान-श्री १०८ ऋषभनाथ भगवान तो तीसरे काल में ही मोक्ष पधारे। श्री शान्तिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ ये तीनों तीर्थंकर भी थे और चक्रवर्ती भी थे सो तीन ये कम हए। श्री महावीर स्वामी का जीव ही प्रथम नारायण था, अतः एक यह कम हुआ। इस प्रकार चतुर्थकाल में शलाका पुरुष ५८ जन हुए। पार्श्वपुराण । अधि० ८ । पद्य ४० ।
-जं. सं. 1-1-59/V/सु. ला. जैन, हीरापुर श्रेणिक का अकालमरण नहीं हुआ शंका-क्षायिक सम्यग्दृष्टि राजा थेणिक का अकालमरण हुआ या कालमरण ?
समाधान - राजा श्रेणिक का कालमरण हुआ क्योंकि क्षायिक सम्यग्दर्शन से पूर्व उन्होंने नरकायु का बंध कर लिया था। जो परभव संबंधी आयु का बंध कर लेता है, उसका अकालमरण नहीं होता है । कहा भी है-परभव संबंधी आयुबंध हो जाने के बाद भुज्यमान आयु का कदलीघात नहीं होता। धवल १० पृ० २३७, ३३२, २५६ आदि।
-जं. ग. 24-7-67/VII/ज. प्र. म. कु. श्रेणिक सम्यक्त्व को साथ लेकर नरक में गये
शंका-चौथे गुणस्थान वाला क्षायिक सम्यग्दृष्टि राजा श्रेणिक जब नरक में गया तो क्या वह सम्यक्त्व से च्युत हो गया था?
समाधान - मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व ये तीन दर्शनमोहनीय कर्म की प्रकृतियां और चार अनन्तानबन्धी कषाय ये सात प्रकृतियाँ सम्यग्दर्शन की घातक हैं। इन सातों प्रकृतियों के क्षय होने से क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न होता है । जिन प्रकृतियों का क्षय हो जाता है, उनकी पुन: उत्पत्ति नहीं होती है । कहा भी है
ण खविदाणं पुणरुप्पत्ती, णिवुआणं पि पुणो संसारित्तप्पसंगादो। जयधवल पु० ५ पृ० २०७।
अर्थ-क्षय को प्राप्त हुई प्रकृतियों की पुनः उत्पत्ति नहीं होती है क्योंकि यदि ऐसा होने लगे तो मुक्त हुए जीवों को पुनः संसारी होने का प्रसंग उपस्थित होगा।
मिथ्यात्वादि सात प्रकृतियों के उदय बिना जीव सम्यक्त्व से च्युत नहीं हो सकता है, क्योंकि कारण के बिना कार्य नहीं होता है। कहा भी है
___ सम्मत्रोण अधिगदा सम्मत्तेण चेव णीति ॥४७॥ कुदो । तत्थुप्पण्णखइयसम्माइट्ठीण कदकरणिज्जवेदगसम्माइट्ठीणं वा गुणंतरसंकमणा भाव । धवल ६/४३८ ।
अर्थ-सम्यक्त्व सहित नरक में जाने वाले जीव सम्यक्त्व सहित ही वहाँ से निकलते हैं ॥४७।। क्योंकि, नरक में क्षायिक सम्यग्दृष्टि या कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि ही उत्पन्न होते हैं और उनका अन्य गुण ( मिथ्यात्व, सासादन, सम्यग्मिथ्यात्व में ) संक्रमण नहीं होता अर्थात् वे सम्यक्त्व से च्युत नहीं होते हैं।
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