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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
मुख्तार सा० का समस्त अन्तः बाह्य शुद्धि का अंश नियमतः इनकी अरिहन्त अवस्था लावेगा । विशेष इस भव्यात्मा के विषय में क्या कहा जाय ?
मूख्तार सा० के शिष्य श्री जवाहरलालजी जैन सि० शास्त्री, निवासी भीण्डर भी एक अप्रकट शास्त्रज्ञ हैं। आपने मुख्तार सा० की सहायता से प्रसिद्ध जैन ग्रन्थ धवला, जयधवला व महाधवला का करीब-करीब पूरा अध्ययन किया है एवं कुछ शास्त्रों की रचना भी की है। सन् १९७८ में एक प्रश्न में मैंने सिद्धान्तशास्त्री श्री जवाहरलालजी से पूछा कि वर्तमान में कौन करणानुयोगज्ञ है ? तो प्रश्न के उत्तर में आपने कहा कि “धवलत्रय के २० हजार पृष्ठों के पारायण प्राप्त श्री रतनचन्द मुख्तार का मुकाबला वर्तमान में करणानुयोग में कोई नहीं कर सकता।"
आयु के चरम दिवसों तक भी मुख्तार सा० ग्रन्थों की टीकाएँ लिखते रहे। आप मगसिर कृ० ७ वीर नि० सं० २५०७ को इस संसार से चल बसे । आपके स्वर्गारोहण से हमें जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति नहीं हो सकती। मैं विनम्र व श्रद्धावनत होता हुआ आपको श्रद्धासुमन-समर्पित करता हूँ।
शीलवान गुणवान प्राप थे * श्री शान्तिलाल बड़जात्या, अजमेर
माननीय स्वर्गीय मुख्तार सा० की मुझ तुच्छ व्यक्ति पर भी बड़ी कृपा रही थी। उनकी उदारता व साधर्मी वात्सल्य का एक अनुपम उदाहरण इस प्रकार है
विक्रम संवत् २०२८ की भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी के दिन पण्डित प्रवर श्री मुख्तार सा० ने स्थानीय सेठ साहब श्री भागचन्दजी सोनी की नसियाजी में सहस्रों व्यक्तियों के समक्ष मुझे प्रेरणा दी कि मैं बाजार के भोजन • का त्याग करूं। उस समय परम पूज्य आचार्यकल्प १०८ श्री श्रुतसागरजी महाराज भी ससंघ विराजमान थे। देव, शास्त्र व गुरु के चरणसान्निध्य में उन धर्मप्राण चरित्रवान सत्पुरुष की प्रेरणा से मैंने तुरन्त ही अशुद्ध भोजन का त्याग कर दिया। आज नियम लिये हुए ६ वर्ष हो चुके हैं। तब से अब तक हजारों मीलों का सफर भी कर चुका हूँ। इस नियम ने सदैव मेरे मन और तन की रक्षा ही की है।
सन्मार्ग के प्रदर्शक, सतत स्वाध्याय में लीन, त्यागी वर्ग को स्वाध्याय में सहयोग देने वाले, निर्भीक, आगम निष्ठ सेनानी, परम ताकिक व महान् तत्त्वज्ञाता स्वर्गीय पण्डितजी आशु शिवरमा का वरण करें, इसी भावना के साथ चार पंक्तियाँ उन्हें सादर भेंट करता हूँ
शीलवान गुणवान आप थे, पण्डित रतनचन्द्र मुख्तार । स्वाध्याय के प्राण बने अरु किया जगत का अत्युपकार । 'ग्रन्थप्रकाशन' की वेला में, नमन करू मैं सौ-सौ बार। किया आपके सद् वचनों ने, मेरे जीवन का उद्धार ॥
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