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। श्रद्धा का लहराता समन्दर
फूल था, जो आज देह दृष्टि से हमारे मध्य नहीं है किन्तु उनके
मेरा भी सविनय वन्दन सद्गुणों की भीनी-भीनी महक सदियों तक महकती रहेगी। इन्सान दो कार्यों से अमरत्व को प्राप्त करता है। कहा भी है
-सिद्धार्थ मुनि कर कोई ऐसा काम जमाना डोल उठे।
(प्रवर्तक श्री रमेश मुनिजी के नवदीक्षित शिष्य)
and off or of या लिख ऐसा कोई ग्रन्थ जमाना बोल उठे।
भारतीय संस्कृति के निर्माण में ऋषि, मुनि, मनस्वियों का अपूर्व योगदान रहा है। अपने धार्मिक संदेशों, उपदेशों के माध्यम
से संत आत्माओं ने भारत के जन-मानस का सिंचन किया है। अनन्त आस्था के केन्द्र
भारतीय जन-जीवन को सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र देकर उत्तम पथ
की ओर अग्रसर किया है। -तपस्वी श्री प्रवीण मुनि जी शास्त्री “प्रभाकर"
__घर-घर, गाँव-गाँव, जन-जन में अध्यात्म को प्रसारित करते (श्री गणेश मुनि जी के सुशिष्य)
हुए सत्य-अहिंसा-अनेकांत-अपरिग्रह का सिंहनाद यदि किसी ने OR मेरे अनंत आस्था के केन्द्र उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर
किया, गुंजाया तो वे हैं-संत-साधक-श्रमण। मुनिजी म. के संबंध में लिखते हुए मैं सोच रहा हूँ कि क्या लिखू? श्रमणसंघ के अध्यात्मयोगी उपाध्याय पूज्य प्रवर श्री पुष्कर क्योंकि उनके गण अनंत हैं और मैं उन गुणों का वर्णन करने में । मुनिजी म. भी उसी तेजस्वी-यशस्वी शृंखला के एक चमकते-दमकते असमर्थ हूँ। बाल्यकाल से ही मेरा गुरुदेव के प्रति सहज आकर्षण
} मोती रहे हैं। जिनकी तपःपूत साधना, आराधना के प्रभाव से था, उन्हीं से मैंने सम्यक्त्व दीक्षा धारण की और उन्हीं से मैंने अगणित आत्माएँ धर्मज्योति से लाभान्वित होती रहीं। आशातीत चारित्र धर्म पाया। गुरुदेवश्री की प्रेरणा से ही मैंने तप का मार्ग
रूप से युवक व्यसनों से मुक्त बने। स्वीकार किया और अनेक मासखमण किए। और उससे अधिक भी जैन कथाएँ उपाध्यायजी की ओर से जैन साहित्य कोष को तपस्या की। गुरुदेवश्री ने मुझे जप विधि भी बताई कि तुझे तप के एक अनमोल धरोहर के रूप में अर्पित की गईं हैं। जो संघ तथा साथ जप भी करना है और गुरुदेवश्री के द्वारा बताई हुई विधि से पठन करने वाले मानवों के लिए वरदान रूप तथा सदा स्मरणीय मैं जप करने लगा और मुझे अनुभव हुआ कि जैनशासन में रहेगी। सकल स्थानकवासी समाज तथा श्रमणसंघ को गौरवान्वित शासनप्रभाविका देव और देवियों की कमी नहीं है, तप और जप करने वाली बात है। | के प्रभाव से चुम्बक की तरह वे खिंची चली आती हैं, पर उनका का आपके शिष्य ही अभी-अभी श्रमण संघ के एक महान् आचार्य | दिव्य तेज सहन करने की क्षमता हर साधक में नहीं होती। यदि
के रूप में उभरे हैं। यह महान् देन भी आपश्री की है। साधक भयभीत हो जाए तो वह साधना से च्युत भी हो सकता है।
ऐसे गरिमासम्पन्न उपाध्यायश्री जी म. की स्मृति में प्रकाशित गुरुदेवश्री ने कहा, तुम्हें मंत्र की साधना नहीं करनी चाहिए, तुम्हें
स्मृति ग्रंथ को मेरी लघु भावना समर्पित तथा सविनय वन्दन। तो केवल महामंत्र की ही साधना करनी चाहिए, महामंत्र की साधना से आध्यात्मिक ऊर्जा समुत्पन्न होगी और उससे अलौकिक आनंद की उपलब्धि होगी। दीक्षा लेने के पश्चात् गुरुदेवश्री के सान्निध्य में दो वर्षावास
कितने महान् थे गुरुदेव ! मैंने किए, शेष सारे वर्षावास अन्य संत भगवन्तों के सान्निध्य में हुए, गुरुदेवश्री की अपार कृपा मेरे पर रही और मुझ अज्ञानी को
-मुनि शालिभद्र जी म. वे सदा ही हित-शिक्षा प्रदान करते रहे। मेरा परम सौभाग्य रहा कि
(उपाध्यायश्री के पौत्र शिष्य) जीवन की अन्तिम घड़ियों में भी मुझे दर्शन का सौभाग्य मिला है
इस विराट् विश्व में अन्य सभी का मिलना सरल और सुगम और उनके चरणों में बैठने का भी सौभाग्य मिला, आज मेरे
है पर सद्गुरु का मिलना बहुत ही दुर्लभ है। सद्गुरु जीवन-रथ के आराध्य गुरुदेव भौतिक देह से नहीं हैं किन्तु वे हमारे हृदय आसन
सारथी हैं, सद्गुरु जीवन-नौका के नाविक हैं, सद्गुरु भूले-भटके पर आसीन हैं, उनके गुणों का स्मरण आते ही मेरा हृदय उनके
जीवन राहियों के सच्चे पथ-प्रदर्शक हैं, सद्गुरु प्रकाशस्तम्भ की चरणों में सदा नत रहा है और सदा नत रहेगा। यही उनके प्रति
तरह स्वयं आलोकिक हैं और दूसरों को भी आलोक प्रदान करते भक्ति-भावना से विभोर होकर श्रद्धार्चना समर्पित कर रहा हूँ।
हैं, मेरा परम सौभाग्य रहा कि उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री पुष्कर मुनि जी म. के प्रथम दर्शन का सौभाग्य सन् १९८९ में मिला। वह
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