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परिशिष्ट
की तरह प्रकाश करता हुआ जीये। जिसके जीवन में खुशबू और प्रकाश है वह जन-जन का आदरणीय बन जाता है। मीठालाल जी का जीवन इसी प्रकार का जीवन है। आप कर्मठ कार्यकर्ता है। आपने अपने प्रबल पुरुषार्थ से व्यवसाय के क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। आप राजस्थान के डेलाना (भीलवाड़ा - राजस्थान) के निवासी हैं पर व्यवसाय की दृष्टि से सूरत में "शैलेष डाईंग एण्ड प्रिन्टिंग मिल” है, बम्बई में पत्थर का व्यापार है और उदयपुर में मार्बल का। बम्बई मेवाड़ संघ के आप संस्थापक हैं और उपाध्यक्ष हैं। आप गुजरात कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं तथा अम्बा गुरु शोध संस्थान के उपाध्यक्ष हैं। आपने गंगापुर में "अम्बेश गुरु रेफरल हस्पताल" भी बनाया एवं उसके अध्यक्ष हैं। ओसवाल मित्र मण्डल और भारत जैन महामण्डी के सदस्य हैं।
आपके पूज्य पिताश्री का नाम मनोहरलाल सिंघवी तथा मातेश्वरी का नाम रमाबाई है। आपके चार भ्राता सोहनलाल जी, शोभालाल जी, बस्तीलाल जी, शांतिलाल जी तथा दो बहिनेंसज्जनबाई और नजरबाई हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम संतोषदेवी है। संतोषदेवी भी एक धर्म-परायणा सुश्राविका हैं। सूरत में आप महिला मण्डल की अध्यक्षा हैं। आपने चन्दनबाला महिला मण्डल की वहाँ पर स्थापना की है। परोपकार के कार्य में विशेष रुचि है। आपके एक पुत्र हैं जिनका नाम है किशोरकुमार ।
किशोरकुमार जी की धर्मपत्नी का नाम आशादेवी है और पुत्री का नाम है सोनिया।
मीठालाल जी की पुत्री का नाम सौ. सुशीलादेवी गोखरू है। आपसे समाज को बहुत कुछ आशा है श्रद्धेय उपाध्यायश्री के प्रति आपकी अनन्य आस्था थी। आपका अनुदान प्राप्त हुआ, तदर्थ साधुवाद।
श्री खेतरमल जी सूरजमल जी डोशी सूरत :
कहा जाता है लक्ष्मी प्राप्ति तो पुण्यों से हर किसी को हो जाती है किन्तु उसका धर्म के लिए सदुपयोग करना हर किसी को सुलभ नहीं होता दान, सेवा, परोपकार और धर्म-प्रभावना हेतु जो पुरुषार्थ से अर्जित अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करता है, वह अगले जीवन के लिए भी पुण्यों का पाथेय साध लेता है।
श्री खेतरमल जी डोशी के विषय में यही कहा जा सकता है कि जन सेवा आदि कार्यों में अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करने वाले भाग्यशाली व्यक्ति हैं। आप एक युवक होते हुए भी धार्मिक भावों में खूब रमे व रंगे हुए हैं। आपके पूज्य पिताश्री का नाम सूरजमल जी डोशी और मातेश्वरी का नाम पन्नीबाई है। आप मेवाड़ में कमोल ग्राम के निवासी हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम कमलाबाई है। आपके पुत्र दो हैं जिनके नाम नरेशकुमार और संतोषकुमार तथा दो पुत्रियाँ हैं पिंकी और कपिला आपकी तीन बहिनें हैं- भंवरीदेवी, चंदनाबहिन और भगवतीदेवी। आप श्रद्धेय उपाध्यायश्री के परम श्रद्धालु सुश्रावक रहे हैं। आपका व्यवसाय सूरत में है। आपकी फर्म का नाम "अमर तारा कार्पोरेशन" एम. जी. मार्केट, रिंग रोड, सूरत है। प्रस्तुत ग्रंथ में आपका अनुदान प्राप्त हुआ, तदर्थ हार्दिक साधुवाद।
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एडवोकेट इन्द्रमल जी जैन रतलाम
मालव की पावन पुण्य धरा सदा ही प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से आकर्षक रही है जहाँ पर कदम-कदम पर पानी और हर स्थान पर खाना मिलता था, इसलिए "मालव धरती गहन गंभीर, पग-पग रोटी मग-मग नीर"। मालव में रत्नपुरी रतलाम का अपना अनूठा महत्त्व रहा है। इन्द्रमल जी जैन एक बहुत ही सुलझे हुए धर्मनिष्ठ सुश्रावक है आपके पूज्य पिताश्री का नाम नानालाल जी और मातेश्वरी का नाम मगनबाई था। आपका पाणिग्रहण रतलाम निवासी धूलचंद जी पीतलिया की सुपुत्री सौ. शान्तादेवी के साथ हुआ। शान्तादेवी बहुत ही धर्म-परायणा महिला हैं। आपके दिनेशकुमार पुत्र हैं।
श्रद्धेय उपाध्यायश्री के प्रति आपकी अनंत आस्था थी और उस आस्था की रूप में अभिव्यक्ति हुई है आर्थिक अनुदान के रूप में, तदर्थ हार्दिक सांधुवाद।
श्री विमलकुमार जी महावीरप्रसाद जी जैन: दिल्ली
भारत के महामनीषियों ने मानव-जीवन को अत्यधिक महत्त्व दिया है। उन्होंने कहा- “बड़े भाग मानुस तन पावा"। मानव का तन मिलना बहुत ही कठिन और उस तन को पाकर जो व्यक्ति उदारता के साथ सत्कर्म करता है उसका जीवन धन्य हो उठता है। श्री विमलकुमार जी इसी प्रकार के व्यक्ति हैं। वे हृदय के उदार हैं। भारत की राजधानी दिल्ली में निवास करते हैं। आपका पूरा परिवार परम श्रद्धेय उपाध्यायश्री के प्रति बहुत ही श्रद्धानत रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में आपका योगदान प्राप्त हुआ, तदर्थ हार्दिक आभारी।
श्री रतनलाल जी सा. धोका : रायचूर
रायचूर कर्नाटक का एक धर्म-केन्द्र है। वहाँ के श्रद्धालुओं में अपार भक्ति है। श्री रतनलाल जी सा धोका परम गुरुभक्त धर्मनिष्ठ सुश्रावक हैं। आपके पूज्य पिताश्री का नाम गिरधारीलाल जी तथा मातेश्वरी का नाम बदामबाई है। आपकी धर्मपत्नी का नाम सौ. सुशीलादेवी है जो पूना निवासी सोहनलाल जी दफ्तरी की पुत्री हैं। माता और पिता के धर्म संस्कार पुत्री में पल्लवित और पुष्पित हुए। आपके तीन पुत्र हैं-शैलेष, महेश और नरेश तथा एक पुत्री है स्वाती आपके तीन भाई हैं-मदनलाल जी, कांतिलाल जी और रमेशचंद जी तथा दो बहिनें हैं मोहनबाई और रतनबाई श्री रतनलाल जी का अध्ययन महाराष्ट्र के चालीस गाँव में हुआ। उसके पश्चात् उन्होंने सेठ पारसमल जी सा. मुथा के साथ व्यवसाय किया और सन् १९८५ से स्वतंत्र व्यवसाय प्रारंभ किया है। प्रतिभा की तेजस्विता से व्यवसाय के क्षेत्र में उन्होंने अच्छी ख्याति प्राप्त की है। आपका व्यवसाय "कॉटन मर्चेन्ट एण्ड कमीशन एजेन्ट" का है। परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री के प्रति आपकी अंनत आस्था रही है। प्रस्तुत ग्रंथ के लिए आपका अनुदान सहयोग प्राप्त हुआ, तदर्थ हार्दिक साधुवाद।
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