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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
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शाकाहार है संतुलित आहार
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करो।
-डॉ. नेमीचन्द जैन, इन्दौर शाकाहार अब एक स्थापित जीवन-शैली है; अतः उससे होने } जिगर और उनके गुर्दे छोटे होते हैं; उनकी लार में अल्केलाइन वाले फायदों को अलग से सिद्ध करना आवश्यक नहीं है। होता है-प्रश्न उठता है कि आखिर यह अन्तर क्यों है ?
सब जानते हैं कि शाकाहार मानवीय गुणों को विकसित/समृद्ध ३. आर्थिक दृष्टि से भी शाकाहार सस्ता और पर्यावरण/ करने वाला आहार है। उसके उत्पादन में न तो कोई जीवहत्या । परिस्थिति के अनुरूप है। होती है और न ही कोई क्रूर कर्म। वह मांसाहार जिस तरह खून
४. शाकाहार में प्रोटीन जितना चाहिये, उतना है। चिकित्साकी नींव पर खड़ा है, अवस्थित नहीं है।
शास्त्र के अनुसार एक किग्रा वजन पर एक ग्राम प्रोटीन चाहिये। दुनिया के सारे देश अब यह भलीभाँति जानने लगे हैं कि हमें । अधिक प्रोटीन से एक तो शरीर में कैल्शियम का भण्डार घट जाता ऑक्सीजनयुक्त/स्वास्थ्यप्रद वायु चाहिये और चाहिये धरती की है, दूसरे नाइट्रोजनिक उत्पादों को निकाल फेंकने में गर्दो को काफी कोख में जल तो शाकाहार हर हालत में अपरिहार्य है।
श्रम करना पड़ता है। ध्यान रहे, अतिरिक्त प्रोटीन को एकत्रित
रखने की क्षमता मानव-शरीर में नहीं है। प्रोटीन की प्रचुरता का यह एक दुश्चक्र है कि पहले पशुओं का संवर्द्धन करो अर्थात्
नारा मात्र व्यापारिक पैंतरा है, इसे समझना चाहिये। उन्हें वनस्पति खिलाओ, और ऑक्सीजन के उर्वर स्रोत बंद करो, कत्लखानों का मलवा-रक्त, मांस, मज्जा-बहाने के लिए पेय जल ५. वस्तुतः संतुलित आहार का दुनिया में कोई सानी नहीं है। की बर्बादी करो, और फिर बूंद-बूंद के लिए तरसो; नदियों में एमीनो अम्ल का समायोजन शाकाहार में परस्पर पूरकता द्वारा। गंदगी डालो और फिर उनके निर्मलीकरण के लिए एड़ी-चोटी एक
संपन्न होता है। दाल-रोटी इसी समायोजन का प्रतीक है। गेहूँ में लायसिन नहीं है, दाल में मेथोसिन अनुपस्थित है। किन्तु इनकी
पूरकता कमी को पूरा कर लेती है। तय है कि मांसाहार हिंसा के बगैर संभव नहीं है। जिन लोगों ने कत्लखानों की मानसिकता का अध्ययन किया है उनका निष्कर्ष
६. शाकाहार में विटामिन 'बी' के न होने का आरोप भ्रामक है कि मांसाहार मनुष्य को बर्बर, रक्त-पिपासु और नृशंस बनाता है
है। शाकाहारियों का शरीर स्वयं इसका प्रबन्ध करता है। 'बी' नतीजतन युद्ध, रक्तपात, लड़ाई-तकरार, कलह-तबाही के अलावा
विटामिन से होने वाली बीमारियों का शाकाहारियों को प्रायः न उसका कोई और परिणाम निकल ही नहीं सकता।
होना इसका जीवन्त प्रमाण है। प्रकृति ने स्वयं मनुष्य को शाकाहारी अस्मिता प्रदान की है।
७. शाकाहार में 'कार्बोहाइड्रेट्स' का होना आँतों के लिए उसने उसके शरीर की रचना भी तदनुरूप की है। शाकाहार और
सुखद निर्विघ्नता है। इससे कब्ज से रक्षा होती है और पेट कई मानवता का परस्पर गहन संबन्ध है।
गंभीर/असाध्य रोगों से बच जाता है। शाकाहार के बारे में कुछ सकारात्मक तथ्य इस प्रकार हैं
८. शाकाहार में विटामिन 'सी' है, जो मांसाहार में बिल्कुल
नहीं है। १. शाकाहार सात्विक आहार है; अतः वह सहज की अहिंसा, भ्रातृत्व, विश्वास, मैत्री आदि मानवीय गुणों को विकसित करता है।
९. कुछ शाकाहारी पदार्थों में लौहतत्त्व सर्वाधिक है। गुड़ में
११.४, मेथी में वह १६.९ प्रतिशत है, जबकि मांसाहारी पदार्थों में २. प्रकृति ने मांसभक्षी और शाकाहारी जीवधारियों की शरीर
से किसी में भी वह ६.३ से अधिक नहीं है। रचना अलग-अलग तरह से की है : यथा-मांसाहारियों के दाँत नुकीले और पंजे/नाखून लम्बे/ तेज होते हैं; उनके जबड़े सिर्फ
१०. विटामिन ए की सर्वाधिक समृद्ध स्रोत पत्तीदार सब्जियाँ ऊपर-नीचे चलते हैं; वे अपना आहार निगलते हैं; उनकी जीव ।
हैं। बंदगोभी, करमकल्ला, धनिया और आम में क्रमशः २,00 खुरदरी होती है; वे जीभ से पानी पीते हैं; उनकी आँतें छोटी होती।
१०,४६०; और ४,८00 अन्तर्राष्ट्रीय इकाई (आईयू) विटामिन हैं; उनका जिगर उनके गुर्दे अपेक्षाकृत बड़े होते हैं; उनकी लार में
होता है। विटामिन 'ए' की इतनी इकाइयाँ किसी मांसाहारी पदार्थ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल होता है-दूसरी ओर शाकाहारी जीवधारियों के |
में उपलब्ध नहीं है। विटामिन 'ए' अधिक मात्रा में लेने पर विषैला दाँत और नाखून नुकीले नहीं होते; उनके जबड़े सभी दिशाओं में
भी साबित हो सकता है। चलते हैं; वे अपना आहार चबाते हैं; उनकी जीभ चिकनी/स्निग्ध ११. विटामिन 'ई' अंकुरित गेहूँ और सोयाबीन में प्रति १०० होती है;वे होठ से पानी पीते हैं। उनकी आँते बड़ी होती हैं। उनका ग्राम क्रमशः १४.१ मिग्रा तथा १४.00 मिग्रा होता है। किसी भी
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