SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर पर भी उनमें अहंकार नहीं है यही उनके जीवन की प्रगति का तूं नहीं पर तेरी उल्फत, हर किसी के दिल में है, मूलमंत्र रहा है। उनकी सरलता, सहजता और सदा आह्लादित रहने शमा तो बुझ चुकी मगर, रोशनी महफिल में है। वाली मुख मुद्रा ने मुझे प्रभावित किया है। तुम्हें कौन कहता मरहूम, तुम जिन्दों में जिन्दा हो, आचार्यसम्राट् आनंदऋषिजी ने उनके अनुशासन को अत्यन्त तुम्हारी नेकियाँ बाकी, तुम्हारी खूबियाँ बाकी॥ पुष्ट बताया है क्योंकि, वे केवल आदेश नहीं देते थे। पहले वे स्वयं वस्तुतः सच्चाई यही है, वह महापुरुष आज भी अदृश्य रूप में पालन करते फिर आदेश देते थे। यह कार्य लेने की सबसे श्रेष्ठ मौजूद है और युगों तक मौजूद रहेंगे। इन्हीं शब्दों के साथ हार्दिक | पद्धति है। इसमें कार्य लेने व करने वाले में परस्पर जुड़ाव रहता श्रद्धांजलि। है। उन्होंने आपके ज्ञान को अहंकार से परे बतलाया है। ज्ञान अहंकार के बोझ से बोझिल नहीं हो यह एक अत्यन्त उत्कृष्ट स्थिति है। ऐसा ज्ञान अवश्य ही कल्याणकारी होता है। सरल व विराट् व्यक्तित्व के धनी : उपाध्यायश्री जी) सहज जीवन हर किसी को आह्लाद सौंपता ही है। आत्म-संयम ने उपाध्याय-प्रवर के व्यक्तित्व को अपूर्व गरिमा -आशीष मुनि शास्त्री, एम. ए. प्रदान की थी। वे महाप्रयाण कर गए पर उन्होंने गुरु के प्रति आत्मा (तपस्वी रत्न श्री सुमति प्रकाश जी म. के शिष्य) की जो मिसाल कायम की थी वह उन्हें भी अपने शिष्य से प्राप्त हुई। वे जब गए तब उनके साथ था आत्मिक और आध्यात्मिक उत्तरी भारत प्रवर्तक शासनसूर्य बहुश्रुत दादा गुरुदेव श्री वैभव। उन्होंने एक दीप प्रज्वलित किया और उसे अपने शिष्यों को शान्तिस्वरूप जी म. सा. की दीक्षा स्वर्णजयन्ती महोत्सव के सौंपा। उसी दीप के आलोक में अपनी आत्मा का परिष्कार कर रहे भव्यायोजन में उत्तर भारत के अधिकांश सन्त-सतियाँ मेरठ पधार हैं शिष्यजन। रहे थे। उसी श्रृंखला में मेरठ श्री संघ की आग्रह भरी विनती को सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर राजस्थान केसरी उपाध्याय प्रवर श्री पुष्कर मुनि जी म. सा., साहित्यमनीषी श्री देवेन्द्र मुनि जी म. रोशनी बाकी है शास्त्री (वर्तमान आचार्य) आदि ठाणा ६, २५ फरवरी, १९८५ को होने वाले महोत्सव में भाग लेने मेरठ पधारे। -श्री ज्ञानमुनिजी (आचार्यश्री हस्तीमल जी म. सा. के सशिष्य) मैंने उपाध्याय श्री जी के यशस्वी नाम को तो बहुत बार सुना था किन्तु प्रत्यक्ष दर्शन का सौभाग्य मुझे उसी समय प्राप्त हुआ था। दीर्घकालीन संयम के धनी, श्रमणसंघ के वयोवृद्ध उपाध्याय । उपाध्याय श्री जी का गौरवर्ण, विशाल भाल, साधना की दीप्ति से प्रवर श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. के देहावसान के समाचार सुनकर चमकता हुआ चेहरा, तेजस्वी नयन, सुदीर्घ कंधे, भरा हुआ सुगठित मुनिमण्डल के हृदय अत्यन्त सन्न रह गये। तत्काल चार लोगस्स का शरीर, भव्याकृति दर्शकों को चुम्बकीय आकर्षण से अपनी ओर ध्यान करने के बाद मुनिवर ने निम्न भाव फरमाये-स्नेही कृपालु, आकर्षित करती थी। मैं भी उपाध्याय श्री जी के प्रथम दर्शन में ही सरलमना, वात्सल्यवारिधि, दीर्घ अनुभवी सन्त भगवन्त का विदा अत्यधिक प्रभावित व श्रद्धानत हुआ। हो जाना जैन जगत् की एक अपूरणीय है। मुझे स्व. उपाध्याय प्रवर के दर्शनों का प्रसंग कई बार मिला। संवत् २०२१ में उपाध्याय मेरठ पधारने पर राजस्थान केसरी जी म. का उत्तरी भारत प्रवर के पीपाड़ चातुर्मास की तो मुझे पूरी-पूरी स्मृतियाँ आज भी प्रवर्तक द्वारा भव्य स्वागत हुआ। दोनों महापुरुष का साधु-मिलन सजग हैं। २०३२ में दीक्षा से पूर्व बम्बई के फोर्ट इलाके में आपश्री देखते ही बनता था। ऊँचे पाटे पर विराजमान होकर उपाध्यायप्रवर विराजते थे। मैं आशीर्वाद लेने के लिये रात्रि के लगभग ९.00 जब केसरी की सी आवाज में प्रवचन की सिंह गर्जना करने लगे बजे सेवा में पहुँचा तो अँधेरे में भी फौरन पहचान लिया तथा मुझे तब मैं अवाक्-अपलक-सा महाराज श्री जी की ओर देखता रहा। दीक्षा हेतु उत्तम शिक्षाएँ प्रदान की। उन्होंने कहा था कि- मन-ही-मन सोचने लगा ७६-७७ वर्ष की उम्र में भी इतनी बुलंद "आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी म. सा. जैसे महापुरुष को गुरु रूप आवाज। जवानी के दिनों में कैसे गरजते होंगे? जब मैं उस में चुनकर व पाकर तुमने सचमुच बड़ी उपलब्धि पाई है।" उनका । महापुरुष के समक्ष गया तो दोनों हाथ फैलाते हुए “आओ वह स्नेहिल चेहरा व वरदहस्त आज भी भाव-विभोर कर देता है। पुण्यवान!" के सम्बोधन से सम्बोधित करते हुए मानो वर्षों से उस ज्योतिपुंज महापुरुष का भौतिक शरीर तो हमारे सामने श्रीचरणों का सेवक हो उसी रूप में थापी दिया। उस महापुरुष की विद्यमान नहीं रहा किन्तु यश शरीर से वे आज भी जीवित हैं। स्मृति के साथ ही वे शब्द तथा वह दृश्य आज भी चलचित्र की ठीक ही कहा है तरह आँखों के आगे आता है। / CEOCPrivate.BPersoNDERSEEOnly sielt ताकतातताताकतातन्त्रता
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy