________________
290000000
१४७४
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । यशस्वी कृतिकार
चरित्रवान महापुरुषों के धर्मादर्शपूर्ण आख्यान हैं जो पाठकों के आचार्यश्री ने अपनी विपुल साहित्य सेवा द्वारा जैन वाङ्मय की
संस्कार विकास में योगदान करते हैं। आपश्री का निबन्ध साहित्य अपूर्व श्रीवृद्धि की है। विषय ही नहीं, विधागत वैविध्य भी आपश्री
। तो अनुपम ज्ञान-कोष ही है। जैन आगम दर्शन, संस्कृति, सिद्धान्त के सारस्वत उपक्रम की एक उल्लेखनीय विशिष्टता रही है। आपश्री
| और ऐतिहासिक तथ्यों का विवेचन विश्लेषण तथा व्याख्या का की विशाल साहित्य राशि पर विश्वविद्यालयों द्वारा अध्ययन
। अभूतपूर्व उपक्रम इस साहित्य में हुआ है। गवेषणात्मक निबन्धों अनुसंधान की प्रायोजनाओं का गठन किया गया है। ऐसे शोधकार्यों
और प्रबन्धों में आपश्री के गहन अध्ययन, मौलिक दृष्टि की पर विद्वानों को "विद्यावाचस्पति" की उपाधियाँ भी प्राप्त हुई हैं।
सम्पन्नता और विचार प्रतिपादन की प्रौढ़ता का परिचय मिलता है। धर्म कार्यों में अतिशय व्यस्तता की दशा में भी आपश्री की कृतियों । आचाय श्रा का अमर गवषणात्मक कृतिया हकी संख्या ३५० को पार कर गयी है- यह जानकर सभी को भगवान ऋषभदेव : एक परिशीलन आश्चर्य होता है। गहन अध्ययन, चिन्तन मनन का सुदीर्घ क्रम
भगवान पार्श्वनाथ : एक समीक्षात्मक अध्ययन आपश्री के आन्तरिक व्यक्तित्व की भव्य निर्मिति में सहकारी बना
भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्री कृष्ण : एक अनुशीलन रहा है। सत्साहित्य के इस सारे स्वाध्याय से आपश्री का शील और
भगवान महावीर : एक अनुशीलन चरित्र उज्ज्वलतर बना। आपश्री में यह प्रेरणा भी जागी कि अन्य
जैन जगत के ज्योतिर्धर आचार्य जनों के चरित्र में भी ऐसी निर्मलता, उज्ज्वलता लायी जाय। आपश्री
जैन साहित्य : मनन और मीमांसा इस लक्ष्य के प्रति भी समर्पित हैं। आपश्री का बहुविध साहित्य रचना
जैन दर्शन : स्वरूप और विश्लेषण का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी रहा है।
जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप साहित्य की विभिन्न विधाओं में आचार्यश्री की लेखनी गतिशील
धर्म दर्शन : मनन और मूल्यांकन रही है, यथा-निबन्ध, कहानी, उपन्यास, लघु एवं बोध कथाएं,
कर्म विज्ञान, भाग १-६ शोध-प्रबन्ध आदि-आदि इतिहास परक ग्रन्थों की रचनाएं विशेष उल्लेखनीय स्थान रखती हैं। गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म. के आगम के विभिन्न अंगों पर आचार्यश्री ने विद्वत्तापूर्ण, विस्तृत साहित्य-कहानी, उपन्यास, प्रवचनादि का सम्पादन आपश्री ने प्रस्तावनाओं का लेखन भी किया है। इन महत्त्वपूर्ण आलेखों से अत्यन्त कौशल के साथ किया है। आपश्री द्वारा अनेक विशिष्ट आपश्री के गम्भीर अध्ययन और चिन्तन की प्रवृत्ति का आभास जनों से सम्बन्धित स्मृति ग्रन्थों, अभिनन्दन ग्रन्थों का विशेषज्ञतापूर्ण मिल जाता है। वस्तुतः आचार्यश्री का अध्ययन और साहित्य-सृजन सम्पादन भी हुआ है। जैन इतिहास एवं आगम सम्बन्धी उल्लेखनीय दोनों ही अत्युच्च और असाधारण कोटि के हैं। कतिपय ग्रन्थों में भी आपश्री के सम्पादन-कौशल का परिचय
व्यापक सम्पर्क-क्षेत्र मिलता है।
आचार्यश्री का सम्पर्क क्षेत्र अति व्यापक और बहु आयामी इस प्रकार आचार्य श्री के प्रभूत साहित्यिक उपक्रम को, उनकी है। आपश्री अत्यन्त लोकप्रिय हैं, व्यवहार-कौशल की विद्या के सजनशीलता के आयाम को दो प्रमुख वर्गों में रखकर अध्ययन निष्णात हैं. स्नेहशील और सर्वजनहिताय हैं, निरभिमान और किया जा सकता है। व वग ह-मालिक साहित्य आर अनुवादित सरलमना हैं, विवेकशील और प्रबुद्ध हैं, उदारचेता, समाज- हितैषी साहित्य। मौलिक साहित्य के अन्तर्गत आपश्री के २१ कहानी संग्रह, एवं उन्नायक हैं. समन्वयशील और सर्वधर्म समादरकत्तां हैं। ९ उपन्यास, १४ निबन्ध संग्रह, ७ शाध प्रबन्ध आदि प्रमुख रूप म आचार्यश्री की ये विशेषताएं इस व्यापक सम्पर्क क्षेत्र का निर्माण उल्लेखनीय हैं। आपश्री द्वारा सम्पादित साहित्य की विपुलता भी करती हैं। साथ ही सम्पर्क क्षेत्र की ऐसी व्यापकता से आचार्यश्री की कम नहीं मानी जा सकती। आपश्री राजस्थानी भाषा के ३, ।
ऐसी परम विशेषताओं की पुष्टि भी हो जाती है। आपश्री का गुजराती के ३ और हिन्दी के ४ प्रवचन संग्रह भी सम्पादित कर
बहुआयामी व्यक्तित्व क्षेत्र-क्षेत्र के अनेक विशिष्टजनों को आकर्षित चुके हैं। इनके अतिरिक्त चार हिन्दी काव्यों और एक संस्कृत काव्य
करता रहा है। ऐसे कतिपय प्रमुखजनों की नामावली इस प्रकार है : के सम्पादन में आपश्री ने अपने साहित्य के भी आचार्य होने का परिचय बड़ी ही विशेषता के साथ दिया है। आचार्य श्री हिन्दी ही
स्थानकवासी आचार्य नहीं, संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, गुजराती, मराठी आचार्य श्री काशीराम जी म., आदि अनेक भाषाओं के अधिकारी विद्वान हैं।
आचार्य सम्राट् श्री आनन्द ऋषिजी म., ऐसी विशिष्ट कोटि की इतनी विपुल साहित्य रचना इस तथ्य
आचार्य श्री गणेशीलाल जी म., की द्योतक हो गयी है कि आपश्री न केवल धर्म संघ के अपितु आचार्य श्री हीराचन्द जी म., साहित्य क्षेत्र के भी आचार्य हैं। आपश्री के कथा साहित्य में आचार्य श्री हस्तीमलजी म.,
त
EJain Education internationaGSERECORE
For Private & Personal Use Only
Twsanelionery.org