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________________ 16a 1 श्रद्धा का लहराता समन्दर अमर हस्ताक्षर (अक्षर भाव रूप में शाश्वत होता है। व्यक्ति और वस्तु काल के महाप्रवाह में लीन हो जाते हैं परन्तु व्यक्तित्व और वस्तुत्व अक्षीण है। गुण रूप में व्यक्तित्व अमर रहता है, और उस व्यक्तित्व के प्रति व्यक्त उद्गार-भावरूप में अपना शाश्वत महत्व रखते हैं। महान व्यक्तित्व इतिहास पुरुष होते हैं। ऐसे ही विरल इतिहास पुरुषों द्वारा एक इतिहास पुरुष की उपस्थिति में, उनके प्रति समय-समय पर अभिव्यक्त हार्दिक उद्गार आज भी उतनी ही प्रासंगिकता और यथार्थता की अनुभूति करा रहे हैं। अतीत के पृष्ठों पर चमकते ये कुछ अमर हस्ताक्षर स्वर्णाक्षरों की भाँति आज भी अपनी चमक-दमक और मूल्यवत्ता में बेजोड़ हैं। -सम्पादक [ अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के धनी : पुष्करमुनि -स्व. आचार्य सम्राट् श्री आनन्दऋषिजी महाराज उपाध्याय पुष्कर मुनि जी श्रमणसंघ के एक महान सन्त हैं। वे प्रकृष्ट प्रतिभासंपन्न हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अद्भुत है। श्रमणसंघ के निर्माण में उनका अपूर्व योगदान रहा है। श्रमणसंघ की यशोगाथा दिग्दिगंत में गूंजती रहे, इसके लिए वे सतत प्रयत्न करते हैं। श्रमणसंघ के उत्कर्ष हेतु समय-समय पर वे मुझे नम्र निवेदन भी करते रहे हैं। उनके सुझाव मौलिक होते हैं और स्पष्ट भी होते हैं। वे चाहते हैं कि श्रमणसंघ आचार और विचार की दृष्टि से सदा-सर्वदा उन्नति की ओर अग्रसर हो। उनके जीवन में विनम्रता है और उनका व्यवहार बहुत ही मधुर है। वे जब भी कोई सुझाव देते हैं उसकी भाषा अत्यन्त संयत और विनम्रता युक्त होती है, जिसका असर सीधा हृदय पर होता है। वे सदा अनुशासन में रहे हैं और दूसरों को भी अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ाते हैं। उपाध्याय श्री जी ने साहित्य के क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। उन्होंने विविध विधाओं में लिखा है, कथा साहित्य के क्षेत्र में तो उनकी देन अपूर्व है। संस्कृत-प्राकृत, अपभ्रंश और प्राचीन गुजराती और राजस्थानी भाषाओं के ग्रन्थों में से आधुनिक शैली में जो कथाएँ लिखी हैं, वे अत्यन्त लोकप्रिय हुई हैं। यही कारण है कि उनका अंग्रेजी और गुजराती में अनुवाद भी हो चुका है। हिन्दी में प्रथम बार इस प्रकार का कथा साहित्य देकर उपाध्याय जी ने श्रमणसंघ के गौरव में चार चांद लगाये हैं। वे मंजे हुए लेखक हैं और साथ ही सफल प्रवक्ता हैं। वे ज्ञानयोगी हैं, ध्यानयोगी हैं और हैं अध्यात्मयोगी। उपाध्यायश्री जी अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के धनी हैं। 29060866600 उपाध्याय जी नियमित समय पर जप और ध्यान की साधना करते हैं। चाहे कैसा भी प्रसंग हो पर वे ठीक समय पर अपनी साधना में रत हो जाते हैं। उन्हें जप और ध्यान-साधना से प्यार है। श्रमणसंघ के अन्य सन्तों के लिए भी यह प्रशस्त कार्य अपनाने योग्य है। जप और साधना की अभिवृद्धि होने पर साधक बहिर्मुखी से अन्तर्मुखी होगा, उसका आध्यात्मिक उत्कर्ष होगा। उपाध्याय जी को मैंने बहुत ही निकटता से देखा है। वे मेरी सेवा में सात-सात महीने तक रहे हैं और ऐसे रहे हैं जैसे विनीत शिष्य हों। उनमें अहंकार का नाम नहीं, ज्ञान होने पर भी ज्ञान का गर्व नहीं है। यही है मेरी दृष्टि से उनकी प्रगति का मूल मंत्र। (२० अक्टूबर, १९८३ ७४वीं जन्म जयन्ती के अवसर पर) ERSociation ormiRDOEG ERepciegapilotrimationabeo. ghts0.60860HERate & Parsanabuse only o300 O .DODOE0000000000 swwwjaisielibraryergy 0.06.00
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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