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वाग देवता का दिव्य रूप
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साथ उपकृत भाव आना चाहिए कि मुझे अमुक व्यक्ति के दान दान और संविभाग में बताया गया है कि दान मानव जीवन लेकर उपकृत किया।
का अनिवार्य धर्म है, इसे छोड़कर जीवन की कोई भी साधना अनुग्रह दाता की नम्रवृत्ति का सूचक है, वह सूचता है-“दान
सफल एवं परिपूर्ण नहीं हो सकती, दान के बिना मानव लेने वाले व्यक्ति ने मुझ पर स्नेह, कृपा अथवा वात्सल्य दिखाकर
जीवन नीरस, मनहूस और स्वार्थी है, जबकि दान से मानव जीवन स्वयं मुझको उपकृत किया है, आदाता ने मुझ पर कृपा की है कि
में सरसता, सजीवता और नन्दनवन की सुषमा आ जाती है। मुझे दान का यह पवित्र अवसर प्रदान किया है। इस प्रकार अनुग्रह
(पृष्ठ २२९)। शब्द के पीछे यही भावना छिपी है।" (पृष्ठ १७२)।
प्रवचनकार ने दान की निम्नांकित तीन श्रेणियाँ बताई हैं
सात्त्विक, राजस और तामस। यह विभाजन भावना और मनोवृत्ति ऊपर स्व-अनुग्रह का अर्थ और भाव स्पष्ट हुए। किन्तु क्या आज वास्तविक जीवन में ऐसी स्थिति पाई जाती है? यदि हमारा
के आधार पर बताया गया है। दान की इन तीनों श्रेणियों का
विवरण उचित रीत्यानुसार दिया गया है तथा लक्षण भी बताए गए उत्तर नकारात्मक है तो फिर दान की मूल भावना ही नहीं रहती है।
हैं। अंत में तीनों दानों में अन्तर बताते हुए कहा है कि ये तीनों वह एक प्रदर्शन बन जाता है, अहंकार भावना की तुष्टि होकर रह
प्रकार के दान भावना और व्यवहार की दृष्टि से उत्तम, मध्यम जाता है। बड़प्पन का कारण बन जाता है। इसी प्रकार लेने वाले के
और जघन्य हैं। सात्त्विक दान ही इन तीनों में सर्वश्रेष्ठ कोटि का मन में भी यह भावना प्रायः नहीं आ पाती कि उसने दाता पर
है, राजस दान और तामस दान-दान होते हुए भी निकृष्ट और उपकार किया है। लेने वाले के हृदय में देने वाले के प्रति सदैव
निकृष्टतर कोटि के हैं। कृतज्ञ भाव रहते हैं। ऐसी स्थिति में अनुग्रह का जो अर्थ बताया गया है, उसके अनुरूप होना नहीं पाया जाता। खैर! कुछ भी हो।
। इनके विषय में आगे बताया गया है कि सात्त्विक दान उत्तम इससे दान की महत्ता पर कोई अन्तर नहीं पड़ता।
फलदायक है, बल्कि उसमें दाता के मन में कोई फलाकांक्षा नहीं
होती, वह अनायास ही उस दान का मधुरफल प्राप्त कर लेता है। दान की व्याख्याएँ-यह प्रवचन अति विस्तृत है और इसमें
राजस दान का फल कदाचित पुण्य प्राप्ति हो सकता है किन्तु संसार प्रवचनकार ने विस्तार से समझाने का भी प्रयास किया है।
परिभ्रमण के कारणभूत कर्मबंधन को काटने में वह सहायक नहीं महादान और दान में उन्होंने दोनों के अन्तर को समझाया है। होता और तामस दान तो सबसे निकृष्ट है, उसका फल प्रायः एक आचार्य के संदर्भ से दोनों का अन्तर इस प्रकार स्पष्ट किया अधोगति या कुगति है। (पृष्ट २४२)। गया है-"भृत्य आदि के अन्तराय न डालते हुए थोड़ा-सा भी अनुकम्पा दान : एक चर्चा में स्थानांग सूत्र के आधार पर न्यायोपार्जित पदार्थ योग्य पात्र को देना महादान है, इसके अतिरिक्त पहले दस प्रकार के दानों के नाम गिनाये हैं। उसके पश्चात् दीन, तपस्वी, भिखारी आदि को माता-पिता आदि गुरुजनों की । अनुकम्पा दान पर चर्चा की है। अंत में बताया गया है कि आज्ञा से देना दान है।” (पृ. १९५)।
अनुकम्पा दान वास्तव में मनुष्य की जीवित मानवता का सूचक है, दान का मुख्य अंग स्वत्व-स्वामित्व-विसर्जन में यही स्पष्ट किया
उसके हृदय की कोमलता और सम्यक्त्व की योग्यता का मापक गया है कि वस्तु पर से जब तक स्वामित्व विसर्जित नहीं होता तब
यंत्र है। तक वह दान की श्रेणी में नहीं आता। इसमें उन्होंने बताया कि अगले प्रवचन में दान की विविध वृत्तियों पर सम्यक्प से यथार्थदान चार बातों से सम्पृक्त होता है। यथा
प्रकाश डाला गया है, इसमें यही बताया गया है कि मनुष्य विविध १. स्व (जिस चीज पर अपनापन हो उस) के त्याग से।
प्रकार के संकल्प-विकल्प से प्रेरित होकर देता है, पर सभी दिया
हुआ दान, धर्म या पुण्य नहीं होता। अधर्म दान और धर्म दान २. अहंत्व (जिन चीज के होने से अपना अहंकार या अभिमान |
शीर्षक से भी एक प्रवचन दिया गया है। इसमें अधर्म दान का यह प्रगट होता हो, उस) के त्याग से।
आशय बताया गया है कि अधर्म कार्यों के लिए दान देना। अधर्म ३. ममत्व (जिस वस्तु पर मेरापन हो उस) के त्याग से।
कार्य कौन से? चोर, जुआरी, हत्यारे, वेश्यागामी, कसाई आदि को
अधर्मी बताया गया है और इनको देना अधर्म दान की श्रेणी में ४. स्वामित्व (जिस वस्तु पर अपनी मालिकी (Possessing)
आएगा। स्थानांगवृत्ति में भी कहा गया है कि जो हिंसा, झूठ, चोरी हो, उस) के त्याग से। (पृष्ठ २०३)।
आदि में उद्यत हो, परस्त्रीगमन एवं परिग्रह में आसक्त हो, उस इस प्रवचन में उन्होंने दान और त्याग के अन्तर को भी स्पष्ट दौरान उसे जो कुछ दिया जाता है, उसे अधर्म दान समझना किया है। हर प्रकार का त्याग दान नहीं हो सकता। दान के साथ चाहिए। इस प्रवचन में दोनों पर विस्तार से प्रकाश डालकर अहत्व का होना अनिवार्य है।
समझाया गया है।
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