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वाग देवता का दिव्य रूप
के लिए भी ध्यान आवश्यक है। वृद्ध व्यक्ति भी बुढ़ापे में जब घर वालों से अलग-थलग अकेला पड़ जाता है, अकेलेपन से वह ऊब जाता है। ऐसे समय में ध्यानयोग उसके लिए वरदान बन जाता है। अकेलापन, असहायपन ध्यान से दूर होकर जीवन में आनंद से आता है। अतः ध्यान व्यक्ति को सुखशांति प्राप्त कराता है, वर्तमान को सुधारता है।
पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों के ध्यान संबंधी अनुभव
थियोफेर नामक वैज्ञानिक ने अपने दीर्घ अनुभव के पश्चात् पाया कि ध्यानकर्ता व्यक्तियों की साइकोलॉजी में असाधारण रूप से परिवर्तन हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों में घबराहट, मानसिक तनाव, उत्तेजना, स्वार्थपरता, साइकोसोमैटिक बीमारियां आदि में कमी पाई गई हैं। ध्यान से आत्म विश्वास, संतोष में वृद्धि, सहनशक्ति, साहसिकता, सामाजिकता, मैत्री भावना, जीवट भावनात्मक स्थिरता, कार्यदक्षता, विनोदप्रियता, एकाग्रता जैसे सद्गुणों की वृद्धि के प्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं।"
अमेरिका के वैज्ञानिक द्वय राबर्ट शा और डैविड कोल्ब ने ध्यान के अभ्यासियों पर किए गए अपने प्रयोगों में पाया कि ध्यानकर्ता व्यक्तियों के शरीर और मस्तिष्क में सुचारु समन्वय, सतर्कता में वृद्धि, बुद्धिमन्दता में कमी, प्रत्यक्षज्ञान-निष्पादन क्षमता तथा प्रतिक्रिया के समय में वृद्धि असामान्य रूप से हो जाती है।
नीदरलैण्ड में वैज्ञानिकद्वय-" विलियम पी. बानडेनबर्ग" और "बर्ट-मुल्डर" ने विभिन्न वय, लिंग और शैक्षणिक योग्यता वाले
नाभ्यसासियों पर किए गए सप्ताह के प्रयोगों में पाया है कि ध्यानकर्ताओं के दृष्टिकोण में आमूलचूल परिवर्तन हो गया। उनमें भौतिक और सामाजिक अपर्याप्तता, दबाव और कठोरतायुक्त व्यवहार में कमी आई तथा आत्म सम्मान में वृद्धि हुई।
वैज्ञानिक विलियम सीमैन ने बताया कि प्रथम दो महीने तक ध्यान करने वाले व्यक्तियों के व्यक्तित्व में विकास होता देखा गया है। नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास करते रहने पर अन्तः वृत्तियों तथा अन्तःशक्तियों पर नियंत्रण हो सकता है और चिन्ता से मुक्ति मिल सकती है।"
वेलिंगटन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक “टाम जे रौट" ने अपने अध्ययन में पाया कि “ध्यानाभ्यासियों की शारीरिक क्षमता सुचारु रूप से बढ़ने लगती है। ध्यानाभ्यास के बाद उनकी श्वसनगति धीमी और आरामदेह चलती रहती है, जो स्वास्थ्य के लिए सुखदायिनी मानी जाती है।"
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वैज्ञानिक “डैविड डब्ल्यू. आर्ये, जॉन्सन ने आटोनौमिक स्टैबिलिटी एण्ड मेडिटेशन" पर अपने अनुसंधान में पाया है कि "ध्यान के द्वारा तंत्रिकातंत्र के कार्यकलापों में एक नई चेतना आ जाती है और ध्याता के सभी शारीरिक, मानसिक कार्य नियमित स्थायी एवं सुचारु रूप से होने लगते हैं। शरीर में ऊर्जाशक्ति का
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संचरण, भंडारण एवं संरक्षण होने लगता है। अधिक दिनों तक ध्यान के नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में असाधारण रूप से वृद्धि होती है।
हालैण्ड में हाईस्कूल के छात्रों को आन्द्रे एस. जोआ ने एक वर्ष तक ध्यानाभ्यास कराया और पाया कि सामान्य छात्रों की अपेक्षा ध्यानाभ्यासी छात्रों की स्मृति क्षमता और बौद्धिक क्षमता में अत्यधिक वृद्धि हुई । कठिन प्रश्नों के उत्तर देने में छात्र अग्रणी रहे।
इस प्रकार ध्यानयोग की दृष्टि समझ कर उसका अभ्यास करने से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक लाभ के साथ-साथ स्वास्थ्यलाभ भी प्राप्त होता है। मैंने आपके समक्ष संक्षेप में ध्यानयोग की दृष्टि और सृष्टि के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला है। इसे भलीभांति समझकर ध्यानयोग का अभ्यास करें।
मंत्रविद्या की सर्वांगीण मीमांसा
- उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी
प्रिय धर्मप्रेमी बन्धुओ, स्नेहशीलवती माताओ बहनी ! विशिष्ट शब्द रचना या वाक्य विन्यास ही मंत्र हो जाते हैं।
आदिकाल से मनुष्य शब्दों के गूढ़ रहस्यों को जानने का प्रयत्न करता आया है। शब्दों की रचना के साथ जब संकल्प जुड़ जाता है, अथवा अमुक दिव्य शक्तियों का आह्वान किया जाता है और उनसे कुछ लीकिक, सांसारिक या कभी लोकोत्तर कार्य कराया जाता है, अथवा उनसे उस कार्य को सिद्ध करने में सहायता मांगी जाती है, तब वे ही वाक्य मंत्र बन जाते हैं।
इस प्रकार के मंत्र भारत में प्रचलित धर्मसम्प्रदायों या मत-पन्थों में ही नहीं, संसार के सभी धर्म-सम्प्रदायों अथवा मतों, पंथों में प्रचलित हैं। यहाँ तक कि आदिवासी एवं अक्ष कहलाने वाले व्यक्तियों में कुछ ऐसे प्रभावशाली मंत्र होते है, जिनसे कई अद्भुत एवं आश्चर्यजनक कार्य होते हैं। पहाड़ी गद्दी वालों के मंत्र भी आम जनता में प्रचलित हैं। बंगाल में तंत्रसम्प्रदायों के द्वारा भी तंत्रों के साथ विभिन्न मंत्र प्रचलित हुए। परन्तु वे मंत्र प्रायः मारण, मोहन, उच्चाटन, आकर्षण, वशीकरण एवं विद्वेषण कार्यों में ही अधिकतर प्रयुक्त होते हैं। शान्ति, तुष्टि, पुष्टि या अध्यात्मशक्तियों के जागरण के लिए उनका प्रयोग नगण्य है। कुछ मंत्र रोगनिवारण, धनप्राप्ति तथा गृहशान्ति कर्म आदि के लिए अवश्य हैं, परन्तु वे भी प्रायः लोभ, स्वार्थ, धर्नालप्सा, कामनापूर्ति आदि के रूप में तथाकथित मंत्रविदों द्वारा धन बटोरने के लिए ही प्रयुक्त किये जाते हैं।
सभी धर्मों एवं पंथों के प्रमुख मंत्रों की झांकी
जैन, बौद्ध, वैदिक, इस्लाम आदि धर्मों के कुछ मंत्र अवश्य ऐसे हैं, जिन्हें आत्मजागरण या आध्यात्मिक चिकित्सा के रूप में
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