________________
2
वाग देवता का दिव्य रूप
मान ली है। अमेरिका के पिट्सवर्ग में डॉ. राल्फ लारेंस ने भी संगीत से रोगनिवारण की आर्यपद्धति के आधार पर अपने आश्रम में चिकित्सा करके अनेक रोगियों को कष्ट मुक्त किया है। डॉ. पोडोलस्की एवं डॉ. मेकफेडेन भी सारा उपचार सोनोथेरेपी के माध्यम से करते हैं।
शब्द में विविध प्रकार की शक्ति
शब्द में मित्रता भी उत्पन्न करने की शक्ति है, शत्रुता भी । पाणिनी ने महाभाष्य में बताया है- “एकः शब्दः सुष्ठु प्रयुक्तः स्वर्गे लोके च कामधुक भवति" प्रयोग किया एक भी अच्छा शब्द स्वर्गलोक और इहलोक में कामदुहा धेनु के समान होता है। शोक-संवाद सुनते ही मनुष्य अर्धमूर्च्छित-सा एवं विह्वल हो जाता है। उसकी नींद, भूख और प्यास मारी जाती है। तर्क, युक्ति, प्रमाण एवं शास्त्रोक्ति तथा अनुभूति के आधार पर प्रभावशाली वक्तव्य देते ही तुरन्त जनसमूह की विचारधारा बदल जाती है, वह बिल्कुल आगा-पीछा विचार किए बिना कुशल वक्ता के विचारों का अनुसरण करने को तैयार हो जाता है। ये तो शब्द के स्थूल प्रभाव की बातें हैं।
शब्दों का सूक्ष्म एवं अदृश्य प्रभाव
शब्द का अत्यन्त सूक्ष्म एवं अदृश्य प्रभाव भी होता है। मंत्र के शब्दों और संगीत के शब्दों द्वारा वर्तमान युग में कई अद्भुत परिणाम ज्ञात हुए हैं। मंत्रशक्ति और संगीत शक्ति दोनों ही शब्द की शक्ति है। पंच परमेष्ठी नमस्कार मंत्र गर्भित विभिन्न मंत्रों द्वारा आधि, व्याधि, उपाधि, पीड़ा, विविध दुःसाध्य रोग, चिन्ता आदि का निवारण किया जाता है, अन्य मंत्रों का भी प्रयोग विविध लौकिक एवं लोकोत्तर लाभ के लिए किया जाता है।
गायन द्वारा अनेक रोगों से मुक्ति संभव
आयुर्वेद के भेषजतंत्र में चार प्रकार के भेषज बतलाये गए हैं-पवनौकष, जलीकष, वनौकष और शाब्दिक। इसमें अन्तिम भेषज से आशय है-मंत्रोच्चारण एवं लयबद्ध गायन आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थ- चरकसंहिता सुश्रुतसंहिता आदि में ज्वर, दमा, सन्निपात, मधुमेह, हृदयरोग, राजयक्ष्मा, पीलिया, बुद्धिमन्दता आदि रोगों में मंत्रों से उपचार का उल्लेख है। जबकि सामवेद में ऋषिप्रणीत ऋचाओं के गायन द्वारा अनेक रोगों से मुक्ति का उपाय बताया गया है।
शब्दों के हस्व, दीर्घ, प्लुत तथा सूक्ष्म-सूक्ष्मतर- सूक्ष्मतम उच्चारण का प्रभाव
मंत्रोच्चारण से उत्पन्न ध्वनि-प्रवाह व्यक्ति की समग्र चेतना को प्रभावित करता है और उसके कम्पन अन्तरिक्ष में बिखर कर समष्टि चेतना को प्रभावित करके परिस्थितियों को अनुकूल बनाते हैं।
20.97
dain Education International
D
३४७
शब्दों का उच्चारण हस्व, दीर्घ और प्लुत तो प्रसिद्ध ही है। मंत्र विज्ञानवेत्ताओं का कहना है-हस्व-उच्चारण से पाप नष्ट होता है, दीर्घ उच्चारण से धनवृद्धि होती है और प्लुत उच्चारण से होती हैज्ञानवृद्धि । इनके अतिरिक्त अध्यात्म विज्ञानवेत्ता तीन प्रकार के उच्चारण और बताते हैं- १. सूक्ष्म, २. अति सूक्ष्म और परम सूक्ष्म । ये तीनों प्रकार के उच्चारण मंत्र जप करने वाले साधक को ध्येय की अभीष्ट दिशा में योगदान करते हैं। एक ही "ॐ" शब्द को लें। इसका हस्व, दीर्घ और प्लुत उच्चारण करने से अभीष्ट लाभ होता है किन्तु इसका सूक्ष्मातिसूक्ष्म जप करने पर या 'सोऽहं" आदि के रूप में अजपाजप करने पर तो धीरे-धीरे ध्येय के साथ जपकर्ता का तादात्म्य बढ़ता जाता है, समीप्य भी होता जाता है।
इस प्रकार मंत्रोच्चारण एवं संगीत प्रयोग से असाध्य से असाध्य समझे जाने वाले रोगों की चिकित्सा, मानसिक बीद्धिक चिकित्सा का विधान पुरातन ग्रन्थों में है। शब्दतत्व में असाधारण जीवनदात्री क्षमता विद्यमान है। यह सिद्ध है।
शब्दशक्ति का स्थूल और सूक्ष्म प्रभाव बन्धुओ !
शब्द की शक्ति अद्भुत है जब हम कण्ठ तालु, जिह्वा आदि मुख्य अवयवों की सोद्देश्य रचना करके सुगठित शब्द-समुच्चय का उच्चारण करते हैं तो विभिन्न प्रकार की हलचलें होती हैं। जिनका प्रभाव स्थूल शरीर के अंगोपांगों पर तो पड़ता ही है, सूक्ष्म शरीर स्थित उपत्यकाओं, नाड़ी-गुच्छकों तथा विद्युत प्रवाहों पर भी प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। इस प्रकार शब्दशक्ति सर्वप्रथम अपने उत्पादन स्थल को और बाद में आसपास के स्थलों को उसी प्रकार प्रभावित करती है, जिस प्रकार आग जहाँ पैदा होती है, सर्वप्रथम उस स्थान को गर्म कर देती है, उसके बाद आस-पास के पूरे क्षेत्र को प्रभावित करती है।
मंत्र जप की ध्वनि जितनी सूक्ष्म, उतना ही अधिक शक्ति लाभ
तब
एक चिन्तक ने बताया कि जैसे हम “अर्हम्" का उच्चारण नाभि से शुरू करके क्रमशः हृदय, तालु, बिन्दु और अर्धचन्द्र तक ऊपर ले जाते हैं, तो इस उच्चारण से क्या प्रतिक्रिया होती है ? उस पर भी ध्यान दें। जब हमारा उच्चारण सूक्ष्म हो जाता है, ग्रन्थियों का भेदन होने लगता है। आज्ञाचक्र तक पहुँचते-पहुँचते हमारी ध्वनि यदि अतिसूक्ष्म-सूक्ष्मतम हो जाती है तो उन ग्रन्थियों का भी भेदन शुरू हो जाता है, जो ग्रन्थियां सुलझती नहीं हैं, वे भी इन सूक्ष्म उच्चारणों से सुलझ जाती हैं।
निष्कर्ष यह है कि जब हमारा संकल्प सहित मंत्रजप स्थूलवाणी से होगा, तो इतना पावरफुल नहीं होगा, न ही हम यथेष्ट लाभ १. देखें - चित्त और मन (युवाचार्य महाप्रज्ञ) में, पृ. ४२
For Private & Personal Use Only. D
200 www.fainelibrary.org 20.595