________________
HERAPac000000000000000000000000जला कलाकारक DESC000.00000003
FOR PER२९६
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ कथा साहित्य की विशालता और विविधता को देखते हुए किसी समीक्षकों ने कहानी के छह घटक स्वीकार किए हैं-कथावस्तु, कथानक की पूर्णता, समग्रता और प्राचीनता की पूर्ण गारण्टी तो । संवाद या कथोपकथन, पात्र या चरित्रचित्रण, भाषा शैली, देशकाल, नहीं दी जा सकती। यह तो बहुश्रुत पाठकों पर ही निर्भर है कि । उद्देश्य। प्रत्येक पल्लवित कहानी में यह सभी घटक उपलब्ध होते हैं। उन्हें कहीं कोई किसी कथानक से संबंधित नया कथासूत्र मिले तो । यद्यपि उत्कंठा और मनोरंजन का तत्व सार्वभौम रूप से स्वीकार वे मुझे अथवा प्रणेता को अवगत कराएँ ताकि उसमें समय-समय । किया जाता है किन्तु नीतिकथा, धर्मकथा और रूपककथा में एक पर संशोधन-परिवर्द्धन किया जा सके।
अन्य तत्व अनिवार्य माना गया है और वह है प्रेरणा-सद्गुणों की, अध्यात्म योगी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी द्वारा १११ भागों
लोकहितकारी, समाज परिवार, सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान की
प्रेरणा। में संकलित कहानियाँ अनेक दृष्टिकोणों से महनीय हैं। एक सौ ग्यारह भागों में विभक्त उपाध्याय श्री की ये जैन कथाएँ कथा जैन कथाएँ की इस समग्र माला में सभी प्रकार की कथाओं साहित्य की महत्ता में चार चाँद लगाती हैं। व्यावहारिक जगत् में का संकलन है-साथ ही उनमें विभिन्न प्रकार की-सद्गुणों की, वस्तु के सही रूप को जानना, उस पर विश्वास करना और फिर जीवन सुधार की प्रेरणा है। इसमें शिथिलाचार और लोक मूढ़ता से उस पर दृढ़तापूर्वक आचरण करना-जीवन निर्माण, सुधार और हानि का वर्णन है तो जाति एवं ज्ञान-मद की निस्सारता दिखाई गई उन्नत बनाने का राजमार्ग प्रशस्त करती हैं। यदि ठाणं की शैली में । है। किसी कहानी में अडिग विश्वास का महत्व है तो किसी में कहँ तो-दर्शन एक है-सम्यग्दर्शन-१, ज्ञान एक है-सम्यग्ज्ञान-१, तितिक्षा, उपकार, साहस का महत्व वर्णित हुआ है। इसी प्रकार
और चारित्र एक है-सम्यक्चारित्र-१ । इस प्रकार तीनों मिलकर । अनेक कथाएँ साहस से संबंधित हैं तो बहुत-सी बुद्धमानी और बने १११ और सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्र की त्रिपुटी सीधा मुक्ति । चतुराई से। कहीं बुद्धि का चमत्कार दिखाई देता है तो कहीं शील का-सर्वकर्मक्षय का मार्ग है, धार्मिक जगत में। इस दृष्टि से जैन का। चटपटी चाट के समान कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं जिनमें कथाओं के समस्त भागों में संकलित कथाएँ धार्मिक तो हैं ही, साथ । कौतुक द्वारा पाठक को एक निराला स्वाद प्रदान किया गया है। ही जीवन निर्माण में भी भरपूर सहायक हैं।
शील, सदाचार, सत्य भाषण, ब्रह्मचर्यपालन, समाज-सेवा, अप्रमाद,
विषय-कषाय विजय, धर्मप्रभाव, नवकार मंत्र प्रभाव आदि से जैन कथाएँ : माला में संकलित
संबंधित तथा विभिन्न प्रकार के मानसिक और चारित्रिक सद्गुणों उपाध्याय श्री की "जैन कथाएँ" के सभी भागों में संकलित की धारणा तो सभी कहानियों में है। इनमें चौबीस तीर्थंकरों, बारह सभी कहानियाँ प्रेरणानुसार भेद के आधार पर धर्मकथा के चक्रवर्तियों और नौ बलभद्र, वासुदेव, प्रतिवासुदेवों-त्रेसठ शलाका अन्तर्गत ही है और यदि कहानियों के स्वरूप भेदों की अपेक्षा पुरुषों की जीवनियाँ भी हैं। कुछ कथा भागों में एक ही सम्पूर्ण विचार किया जाए तो पश्चिमी और पौर्वात्य चिंतकों द्वारा बताए । चरित्र है तो कुछ में छोटी-छोटी कहानियों का संकलन भी किया
गये सभी भेद-प्रभेदों से संबंधित कहानियाँ इस माला में पाठकों को गया है। एक सम्पूर्ण चरित्र एक ही जन्म का है तो ऐसा भी है कि 2000 सुलभ हो जाएँगी। यद्यपि इस माला में चोर-कथा-सहस्रमल चोर-भाग २१ भवों का चित्रण भी एक ही भाग में पूरा का पूरा दिया गया
३, विधुच्चोर-भाग ८८ भी हैं, स्त्रीकथा-अनन्तमती-भाग २१, कोची हैं। कुछ बड़े चरित्र भी हैं जो दो भागों में और यहाँ तक कि चार हलवाइन-भाग २१, उमादेवी-भाग २३, राजकथा-आनन्दसेन-भाग भागों में पूर्ण हुए हैं। १२, शंखराजा-भाग ८३ आदि में स्त्रीकथा राजकथा आदि हैं, पर ये विकथा नहीं हैं, क्योंकि इनकी मूल प्रेरणा पाप का कुफल
कथाओं का मुख्याधार दिखाकर संसार से विरक्ति उत्पन्न करना है। अतएव धर्मकथा के उपाध्यायश्री की “जैन कथाएँ" माला में कुछ कथाएँ अन्तर्गत ये निर्वेदनी कथाएँ हैं।
अंगशास्त्रों से संकलित हैं तो अधिकांश अन्य पुराणों से। किन्तु
प्रश्न यह है कि पुराणकारों ने इन कथाओं का संकलन कहाँ से जैन कथाएँ : कथाओं के प्रेरणा स्वर
किया? इनका मूलाधार और उत्स कहाँ हैं ? कहानी का बीज है-उत्कण्ठा और मनोरंजन। इस मूल बीज को ।
इस प्रश्न के उत्तर में हमें इतिहास की गहराई में जाना संसार के सभी विद्वानों ने स्वीकार किया है। कथा शब्द का ।
आवश्यक है। पंचकल्प-भाष्य (गाथा १५४५-४९) में उल्लेख है कि प्रादुर्भाव भी इसी तथ्य की ओर संकेत करना दिखाई देता है। वन "क" व "था" अक्षरों के संयोग से “कथा" शब्द का निर्माण
१. यह आचार्य कालक शालिवाहन राजा के समकालीन थे। इनका समय वीर हुआ है। यहाँ "क" अक्षर श्रोता की उत्कंठा को उसी प्रकार जगा
निर्वाण संवत् ६०५ है। -जैन कथाएँ, भाग १११, उपाध्याय श्री पुष्कर देता है, जिस खिलौना दिखाने पर बच्चा उसे लेने के लिए मचल मुनिजी, पृष्ठ २८ तत्थजाव सुहम्मसामिणा जंबूनामस्स पढमाणुओगे जाता है अथवा रंगीन चित्र को लेने के लिए लपक पड़ता है। इस तित्थयरचक्कवट्टिसार वंसपरूवणागयं वसुदेवचरियं कहियं ति। उत्कंठा बीज का ही पल्लवन कहानी के रूप में होता है। कला
-वसुदेवहिंडी, प्रथम भाग, पृष्ठ २१.
560 वRARPएकाएकावतात Salam education intemaalonab-DIPo
s 030003 For Privated Personal use onlypo 2 0090020209 080devian.janelibrary.org R
aco.6869081005000000000000000000.