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। वागू देवता का दिव्य रूप
२८१ नहीं हुए हैं। महाभारत के लेखक वेदव्यास ने लिखा है-'इतिहास वस्तुतः इतिहास धर्म और समाज को जीवित रखने वाली की यत्नपूर्वक रक्षा की जानी चाहिए। धन आता है, जाता है, उसके । संजीवनी बूटी है। नष्ट होने पर कोई नष्ट नहीं होता, किन्तु इतिहास के नष्ट होने पर
इतिहास क्या है?-इस पर चिन्तन करते हए प्रसिद्ध पाश्चात्य समाज का भी विनाश होता है।'
विचारक कार्लाइल ने लिखा है-जीवनियाँ ही सच्चा इतिहास है। एक अन्य विचारक ने लिखा है-यदि किसी जाति, समाज या
। उन जीवनियों में महापुरुषों की अमर गाथाएँ उटंकित होती हैं, राष्ट्र को नष्ट करना हो, उसे अपनी गौरव-गरिमा को नष्ट करके
। जो जन-जन के अन्तर्मानस में संयम-साधना, तप-आराधना और दुर्भाग्य के दुर्दिन देखने के लिए सर्वनाश के महागर्त में गिराना हो,
मनोमंथन की प्रबल प्रेरणाएँ प्रदान करती हैं, साथ ही, कर्तव्य मार्ग करने की आवश्यकता नहीं, बस एक ही कार्य किया। में जूझने के लिए सन्देश और साहस भी जुटाती हैं। जाय कि उसका इतिहास उससे छीन लिया जाय।
___गुरुदेवश्री ने जैन इतिहास की उन विमल विभूतियों की वे इतिहास के वे स्वर्णपृष्ठ जिनमें उसके पूर्वजों की गौरव गाथाएँ अंकित हैं, उनको विपरीत रूप में उपस्थित किया जाय, जिससे वह
पावन गाथाएँ चित्रित की हैं जिनमें प्रेरणा है, भावना है, साधना है।
सम्राट् उदाई और द्रौपदी के चरित्र में क्षमा की महत्ता का प्रतिपादन देश, समाज व राष्ट्र अथवा धर्म भी, पतन की ओर सहज ही
किया गया है। क्षमा कायरों का नहीं, अपितु वीरों का भूषण है। अग्रसर हो जायगा।
क्षमा वही व्यक्ति कर सकता है जिसके जीवन में तेज है, ओज है, जब कोई देश, समाज, राष्ट्र या धर्म हीन व दीन भावनाओं से । वीरता है। ग्रसित हो जाता है, अपने महत्त्व से विस्मृत हो जाता है, तो उसे
क्षमा धर्म की साधना करते वीर समर्थ। प्रतिपल यही सुनाया जाता है कि तुम कुछ नहीं हो। तुम्हारे पूर्वजों
शक्तिहीन रखते क्षमा, उसका क्या है अर्थ? में किंचित्मात्र भी सामर्थ्य नहीं था। उन्होंने अपने जीवन में कोई भी महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं किया।
मार सके, मारे नहीं, उसका नाम मरह।
जिसकी हो असमर्थता, उसकी कृतियाँ रह॥ जब ये बातें सुनाई जाती हैं तो उस देश, समाज, राष्ट्र या धर्म की श्रेष्ठ परम्पराएँ भी स्वतः छिन्न-विच्छिन्न होने लगती हैं। उसके
क्षमा बड़े ही कर सकते हैं, क्षुद्र क्षमा कब कर पाते? रक्त की ऊष्मा ठंडी पड़ जाती है तथा वह पतन की ओर अग्रसर निर्बलता से पिसे हुए नर, बड़-बड़ करते मर जाते। होने लगता है।
-कवि की शब्द चेतना इतनी प्रबुद्ध तथा सशक्त है कि नीति, मनोविज्ञान भी यही कहता है। जो व्यक्ति हीन भावनाओं के धर्म, दर्शन की गुरु-गंभीर ग्रन्थियाँ भी बड़ी सुस्पष्ट व सुबोध भाषा कीटाणुओं से ग्रसित होगा, वह क्षय रोगी की भाँति अन्दर ही
में प्रस्तुत करने में स्वयं की शक्ति दर्शाती है। द्रौपदी के क्षमा-प्रसंग अन्दर से खोखला हो जाता है।
पर कवि ने लिखा हैयदि ऐसे व्यक्ति को इस रोग से मुक्त होना है तो उसे अपने
हिंसा का प्रतिकार न हिंसा, हिंसा का प्रतिकार अहिंसा? पूर्वजों के पवित्र चरित्र से प्रेरणाएँ ग्रहण करनी होंगी। उसे समझना प्रेम शान्ति सुख-धाम होगा कि उन यशस्वी पूर्वजों का ऊर्जस्वल रक्त अब भी मेरी हिंसक को क्यों मारा जाये, उसका हृदय सुधारा जाये, धमनियों में प्रवाहित है।
सुना सत्य पैगाम बेकन बहुत गंभीर विचारक था। उसने कहा है-इतिहास पढ़ने आग, आग से नहीं बुझाओ, जल बनने का मार्ग सुझाओ, से मानव बुद्धिमान बनता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने लिखा है- पाओ सुख आराम स्वदेशाभिमान सिखाने का इतिहास सबसे बड़ा साधन है। गिब्बन
-गुरुदेवश्री की कविता को पढ़ने में, सुनने में, समझने में का यह लिखना सर्वथा अनुचित है कि इतिहास मानव के अपराध,
किसी टीका या कुन्जी की आवश्यकता नहीं पड़ती। कविता इतनी मूर्खताओं और दुर्भाग्यों के रजिस्टर के अलावा कुछ नहीं है। इसके
सरल व भावोद्बोधिनी है कि प्रबुद्ध पाठक उसे सहज रूप से विपरीत इतिहास तो मानव-जीवन को उन्नत बनाने का महत्त्वपूर्ण
समझता चला जाता है। उनका काव्य केवल मनोरंजन अथवा साधन है।
काव्यानन्द के लिए ही नहीं, अपितु आदर्श जीवन दर्शन के लिए है। इतिहास लड़खड़ाती जिन्दगियों में नवजीवन का संचार करता उसमें जीवन-संगीत की सरस लय है। उनकी कविता अलंकारों से है। भूले-भटके जीवन का पथ-प्रदर्शन करता है। अपने अतीत की लदी हुई नव दुल्हन की तरह बन-ठनकर प्रस्तुत नहीं होती, अपितु गौरव-गाथाओं का स्मरण करने से मनुष्य के जीवन में प्रबल सीधी, सरल, सात्त्विक जीवन संगिनी की तरह है। साथ ही उनकी पराक्रम का संचार होता है।
भाषा चुस्त, अनुभूतियों से परिपूर्ण और चुटीली है।
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