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________________ साधना के शिखर पुरुष उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. की ८५वीं जन्म-जयन्ती के मंगलमय अवसर पर त्रिदिवसीय विराट् आयोजन : स्मृति-ग्रन्थ का लोकार्पण 56:20.6 महामहिम उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. की ८५वीं । चले गए। चले चलो बढ़े चलो''' उनका यही नारा था। जन्म-जयन्ती का मंगलमय आयोजन नव्य भव्य भावना के साथ विघ्न और बाधाएँ उनकी जीवन सरिता को रोकने में समर्थ नहीं अपूर्व उल्लास के क्षणों में प्रारम्भ हुआ। त्रिदिवसीय कार्यक्रम में थे। उनमें और अधिक प्रवाह आता गया। उनके जीवन, साहित्य सर्वप्रथम १६ अक्टूबर को सामूहिक आयंबिल दिवस का कार्यक्रम 1 और शिक्षा के क्षेत्र में उनकी प्रगति को देखकर हृदय आनन्द से हुआ। उसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। प्रवचन सभा में । झूमने लगता है। उन्होंने गहराई से अध्ययन किया और प्रत्येक प्रश्न सर्वप्रथम श्री नरेश मुनि जी म. ने गुरुदेवश्री के प्रति श्रद्धा-सुमन के तलछट तक पहुँचकर उसका समाधान करने का प्रयास किया। समर्पित करते हुए कहा कि-उपाध्यायश्री का जीवन निराला था। वे युवावस्था में क्रांतिकारी रहे और उस युग में जिस युग में जैन और वे पूर्ण रूप से निर्लिप्त थे। श्री कमल मुनि जी "कमलेश' ने श्रमण परीक्षा नहीं देते थे, पर आपने परीक्षा देकर और साहित्यिक कहा कि उपाध्यायश्री का जीवन शतदल कमल की तरह खिला निर्माण कर अपनी प्रतिभा को एक नई दिशा दी। हुआ था जिसमें चारित्र की मधुर महक थी। महासती श्री सरिता उनकी जप-साधना का प्रारम्भ हुआ नेत्र ज्योति के चले जाने जी म. ने संत जीवन की महत्ता बताते हुए उपाध्यायश्री के चरणों से, जब जप के द्वारा पुनः नेत्र-ज्योति प्राप्त हुई तो आपकी अपूर्व में श्रद्धा-सुमन समर्पित किए। निष्ठा जप-साधना के प्रति तीव्र हो गई और नवकार महामन्त्र की महासती डॉ. श्री दिव्यप्रभा जी म. ने गुरु के गौरव का साधना इतनी तल्लीनता और एकाग्रता के साथ की कि उस साधना उत्कीर्तन करते हुए कहा कि-उपाध्यायश्री एक ऐसे सद्गुरु थे में एक अलौकिक सिद्धि प्राप्त हुई। जिसने भी जप-साधना के बाद जिन्होंने अपने जीवन को साधना से निखारा और साथ में उन्होंने । मंगल पाठ सुना वह व्यक्ति आधि-व्याधि और उपाधि से मुक्त होकर समाज को एक ऐसा शिष्य-रल दिया जो आज श्रमण-संघ के जीवन का आनन्द लेता था। आचार्य पद पर आसीन है। गुरु की इस कृति को देखकर हम संघ के मंत्री और अन्य वक्ताओं ने भी गुरुदेवश्री के प्रति सहज ही गुरु के गौरवपूर्ण व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते, मैंने अनेकों बार उनके दर्शन किए, उनकी वाणी में ओज अपने श्रद्धा-सुमन समर्पित किए। था, तेज था और वे सिद्ध जपयोगी थे। उनमें एक ओर जहाँ गुरु मध्याह्न में उपाध्यायश्री जी के जीवन-दर्शन को लेकर का तेज था तो दूसरी ओर माँ जैसा वात्सल्य भी था। परीक्षाओं का आयोजन हुआ जिसमें लगभग १६१ श्रद्धालुओं ने पं. श्री रवीन्द्र मुनि जी म. ने कहा-उपाध्यायश्री के व्यक्तित्व भाग लिया और सभी परीक्षार्थियों को चाँदी के सिक्के और धार्मिक को शब्दों की संकीर्ण सीमा में बाँधना बहुत ही कठिन है। जीवन साहित्य आदि समर्पित किया गया। की सांध्य वेला में जब सूर्य अस्ताचल की ओर जाता है तो उसका दिनांक १७ अक्टूबर को श्रद्धेय उपाध्यायश्री के जन्म-दिन के प्रकाश भी मन्द हो जाता है किन्तु इस अध्यात्म सूर्य का सांध्य वेला उपलक्ष में जैन स्थानक लुधियाना में आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी के में भी और अधिक प्रखर तेज था, उन्होंने जीवन भर जो साधना सान्निध्य में एक विराट् सामूहिक जप-साधना का मंगलमय आयोजन की उस साधना की फलश्रुति के रूप में उनका महान संथारा था। किया गया जिसमें लगभग तीन हजार से अधिक व्यक्तियों ने भाग वस्तुतः वे निस्पृह योगी थे। लिया। यह सामूहिक जप-साधना अपने आप में अनूठी और आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. ने अपने संक्षिप्त प्रवचन में आकर्षक थी। कहा-गुरुदेवश्री साधना के शिखर-पुरुष थे। वैडूर्य मणि की तरह जप-साधना के पश्चात् आचार्यश्री ने जप के महत्व पर प्रकाश उनका जीवन प्रकाशमान था। उनके जीवन के हर पहलू पर हम डालते हुए कहा कि ज + प ये दो अक्षर हैं। ज का अर्थ है जन्म दृष्टि डालें वहीं पर एक लुभावना आकर्षण है। साधना के पथ पर और प का अर्थ है पाप। जन्म और मरण से और पापों से जो उनके कदम मुस्तैदी से बढ़ते चले गए, बिना रुके वे निरन्तर बढ़ते मुक्ति दिलाए वह जप है। जप में व्यक्ति की एकाग्रता बढ़ जाती है कालभEOD Q1- 00000
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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