________________
00000000000
OE.C
DDDDC
| श्रद्धा का लहराता समन्दर
१७३
शत-शत वन्दन है गुरु पुष्कर
-मुनि उत्तम कुमार, एम. ए.
वीर पूसता वसुन्धरा ने, दिये सन्त अनेक महान्। त्यागी तपस्वी महा संयमी, हुए थे धर्म पर बलिदान॥१॥
जैन समाज सदैव रहेगा, पूज्य प्रवर ऋणी तुम्हारा। दिया ऐसा महान् शिष्य, बने जो जैन जगत सितारा॥९॥
-
महावीर के शिष्य परम्परा में, अवतरे सन्त बहु गुणवान। जम्बू-स्थूल लोका, धर्मदास, इसके लिए हैं वे प्रमाण ॥२॥
पूज्य आचार्य प्रवर देवेन्द्र, बने श्रमणसंघ के शान। इनसे बढ़ेगा वीर शासन का, दूनी-चौगुनी मान सम्मान।।१०।।
श्रमण संघ की सुन्दर वाटिका, जहाँ हैं पुष्प खिले अनेक। पूज्य मुनिवर उपाध्याय जी, पुष्कर थे उनमें से एक॥३॥
बाल्यकाल में संयम लेकर, स्वाध्याय में जुट गये। अल्पकाल में महा विद्वान, मुनियों में से आप भये॥४॥
जिनकी लेखनी में शारदा का, रहता है सदैव वास। ऐसे शास्ता से हरदम, रखता है समाज बहुभास ॥११॥
पूज्य प्रवर्तक शान्ति स्वरूप के, साथ हुए आपके दर्शन। मेरठ शहर में विराजित थे,
प्रफुल्लित हुआ मेरा तन-मन॥१२॥ अप्रैल माह उन्नीसौ तिरानवे, आया दिवस महा दुखदाय। गये संघ को अनाथ करके, पूज्य उपाध्याय जो सबके सहाय॥१३॥
7000
जैनागम गीता महाभारत, वेदों का अध्ययन किया। प्राकृत संस्कृत व्याकरण का, तन-मन से परायण किया।॥५॥
विद्वानों के विच तुम सदा, रखते थे महत्व स्थान। देख तुम्हारी प्रतिभा को, करता था हर कोई गान॥६॥
हे पूज्य प्रवर विराजे जहाँ, कृपा दृष्टि बनी रहे। तेरी महिमा महा निराली, इक जबान अरु क्या कहें॥१४॥
संयमी थे ज्ञानी ध्यानी, सरल तपस्वी व्याख्यानी। सबके लिए हित चिन्तक, सदैव उचारे मीठी वाणी ॥७॥
महान् साहित्यकार महामनीषी, तेरी सदा होवे जय। "मुनि उत्तम" चरणों में नत, मिट जाये सब कर्म भय॥१५॥
मांगलिक आपका महाप्रभावक, भाग आते थे नर-नार दौड़। दर्शन व्याख्यान श्रवण का, लगता था सदा ही होड़॥८॥
वतन्त
ततात Reducation.internationa.so0%6000
30Tor Private spenghasuse orily 0000000000000000006095940653900
DOESODE
60000 saigaleyon