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श्रद्धा का लहराता समन्दर
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"उगनी सौ सत्तासठ" विक्रम, "आश्विनी सुदि चौदस" प्यारी केवल ब्राह्मण वंशी ही क्यों,
नाच उठी नगरी सारी॥
(१३) भाग सौ ग्यारी जिसके, "जैन कथायें" खूब लिखीं। अद्भुत अनुपम ऐसी कृतियाँ,
अन्य कहीं पर नहीं दिखीं।
(१४) पढ़ते-पढ़ते प्यारे पाठक, सभी स्तब्ध रह जाते हैं। शिक्षाओं का सागर ही इक,
उनको सब बतलाते हैं।
नौ वर्षों का होते-होते, मातापूज्या प्यारी जी।
रोते-धोते छोड़ बाल को, 1 . हा! हा! स्वर्ग सिधारी जी॥
(७) दुनिया से मन उचट गया उस, भोले भाले बच्चे का। अनुभव से कुछ कच्चे लेकिन,
सबके सच्चे, अच्छे का॥
(१५)
"ताराचंद्र मुनीश्वर जी" का, इसको मिला सहारा था। मन को मारा, संयम धारा,
जगत विसारा सारा था।
(९)
नहीं छोड़ने को मन करता, ऐसी रोचक भाषा है, शब्द-शब्द हट ऐसा मनहर,
हीरा यथा तराशा है।
(१६) कवितायें भी बहुत लिखी हैं, राजस्थानी भाषा में। आता है इस शहद सुधा-सा,
उस लासानी भाषा में।
(१७) कभी भूलने नहीं आपको, देगा दिया अमर साहित्य। स्मरण रहेंगे नित्य-नित्य ज्यों,
नये वर्ष का नव आदित्य॥
(१८) नजर बहुत कम हमको आये, धनी कलम के आप समान। उच्च कोटि के चोटी के थे,
आप समर्थ महा विद्वान ।।
उगनी सौ इक्यासी दशमी, ज्येष्ठ शुक्ला शुभ आई थी।
"गढ़ जालोर" निवासी जनता,
____ फूली नहीं समाई थी॥
(१०) लगे पढ़ाई करने डटकर, मुनिवर बनने के फिर बाद। जैनागम के साथ थोकड़े,
किये सैंकड़ों जल्दी याद॥
(११) हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत आदिक, विद्या में निष्णात बने। राजस्थानी और मराठी,
गुजराती में साथ बने।
(१२) गीत, काव्य, कविता से लिखना, किया आपने तब प्रारम्भ। बाद गद्य में लेखन लिखकर,
साक्षट दुनिया रही अचंभ॥
सभी शिष्य भी अतः आपके, पंडितराज करारे हैं। चरण कमल पर जिनके जग जन,
जाते बस बलिहारे हैं।
(२०) "श्री देवेन्द्राचार्य' विज्ञ थे, शिष्य आपके प्यारे हैं। मधुव्याख्यानी ज्ञानी ध्यानी,
जगमग जैन सितारे हैं।