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गुरु उपकारी हैं
- श्री हीरामुनि जी महाराज 'हिमकर'
(१)
श्री पुष्कर गुरु राज, सबही सुधारे काज, लिया स्वर्ग केरा राज, गुण के भंडारी हैं।
तारक गुरु ग्रंथालय, ठाट से विराजे आय, शिष्य को पूज्य बनाय, लिया यश भारी है।
चादर ओढाय गुरु, नया यश किया शुरु, निराली थी जोड़ गुरु, अब ओलु आये हैं।
उपाध्याय थे कमाल, कर गए झट काल, हीरामुनि जपे माल, गुरु उपकारी हैं।
(२)
ज्येष्ठ गुरु भ्राता मेरे, शरणों में रहू तेरे, गुणों के भंडार पूरे, उपाध्याय प्यारे थे।
पिता सूरज के पूत, माता वाली के सपूत, आज देखू इत् अत, आँसू भर आये हैं।
दीक्षा वय सीतर की, साधना की जप तप की, सरधा जिन तत्व की, जैन के सितारे थे।
हीरामुनि 'हिमकर', याद करे पल-पल, आज्ञाकारी बनकर, साधना में रत हैं। (3)
पुष्कर तीर्थराज है, हिन्दू धर्म का ताज हैं, पुष्कर गुरुराज थे, गुणों के भंडार थे।
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गुरु मुझ मन भाये, आगम का ज्ञान पाये, पचीसज गुण वाले, ओज्झ गुण भारी थे।
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सभा का भी ठाठ देखा, वाणी का प्रभाव देखा, पद्मासन आला था, चारु रुप धारी थे।
ध्यान के रसिले भारी, जैन पथ के पुजारी, हीरामुनि अरज करी, गुरु माने तारजो । (8) निश दिश ध्यान करो, अठसत जाप करो, पुष्कर मुनि शरणो, सदा सुख दायी हैं।
अध्यात्म योगीराज, संघ के सरताज, भगतों के सारे काज, अति साताकारी हैं।
कंचन सा काया गोरी, बीमारी ने आप घेरी, जल के हो गए होली, संसार असारी हैं।
गए गुरु सुरलोक, सुधारे थे दोनों लोक, हीरामुनि देवे धोक, वंदना हमारी है।
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
(4)
गुरु पाठ पे विराजे, आचारज देव राजे, सिंह सभी वाणी गाजे, पुष्कर का प्यारा है।
अमर पूनम पाठ, देवजी लगाया ठाठ, आतम आनंद नाम, गादी को दिपाया है। मेरे 'गुरु भ्राता प्यारा, पुष्कर का प्राण प्यारा, युग-युग जीओ लल्ला, जैन का सितारा है।
ज्येष्ठ गुरु नाम रहो, तारा गुरु जाप जपो हीरामुनि कहे सुनो, गुरु नैया पार हैं।
उपाध्याय मुनि पुष्कर प्यारे। इक थे जगमग जैन सितारे |
- उपप्रवर्तक श्री चन्दन मुनि 'पंजाबी' "पुष्कर पैंतीसी" ('ताटक छन्द' वा 'लावनी छन्द')
(9)
गहरे ज्ञानी - गहरे ध्यानी,
गहरे जो व्याख्यानी थे।
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"उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिवर",
(२)
भरमा सुन्दर सकल शरीर ।
गौरवर्ण तन लम्बा -ऊँचा,
चो पटक, चमकीले लोचन,
तन चादर, मुखपत्ती मुख पर
(३)
कछुये से फिर उन्नत पांव।
सन्त एक लाखानी थे॥
(४)
जनम लिया "सिमिटार" ग्राम में वीर भूमि है जो मेवाड़।
कंधे ओघा जैन फकीर ॥
उपाध्याय-पद भूषित यह थे,
जिनका प्यारा 'पुष्कर' नाम ॥
"
"बाली बाई" "सूरजमल के
रहा हर्ष का कुछ न पार ॥
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