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________________ 1002900-6000000000 । श्रद्धा का लहराता समन्दर १४९ . अन्तिम अग्नि संस्कार का लाभ हमें लेना है। पूज्य पिताश्री की हम अपनी अनंत आस्था समर्पित करते हैं। हम अपना सौभाग्य भावना को लक्ष्य में रखकर मैं बम्बई से और पिताश्री दिल्ली से समझते हैं, उनके तेजस्वी शासन में हमें रहने का सौभाग्य मिला। उदयपुर पधारे। हमारा यह परम सौभाग्य रहा कि हमारी भावना के अनुसार यह लाभ हमें मिला। हम अपने आपको सौभाग्यशाली [ संघ और राष्ट्र के प्राण समझते हैं कि हमें यह सेवा प्राप्त हुई। गुरुदेवश्री के चरणों में मैं अपनी और हमारे परिवार की वन्दना के साथ श्रद्धांजलि समर्पित -सुनील कुमार जैन (गुड़गाँवा) 5 करता हूँ। एक नन्हे से वटवृक्ष के बीज में विराट वृक्ष का अस्तित्व छिपा साधना पथ के अविश्रान्त पथिक है। उमड़-घुमड़ कर आते हुए बादलों की ओट में शीतल लहरों का सागर छिपा है, उसी प्रकार महापुरुषों के जीवन में सद्गुण छिपे 900 -ज्ञानचन्द तातेड़ (दिल्ली) रहते हैं। उनका जीवन ज्ञान, सरलता, सहजता, सहिष्णुता, सौम्यता, नम्रता प्रभृति, सद्गुण उनके जीवनाकाश में मंडरा रहे थे, 50 श्रमण भगवान महावीर विश्व चेतना के पावन पथिक थे, वे सेवा और समर्पण भाव तो उनके जीवन के कण-कण में व्याप्त था। शेर की तरह साधना के पथ पर अप्रमत्त भाव से निरन्तर बढ़ते आगमों का गहन अध्ययन और तलस्पर्शी विद्वता होने पर भी उनमें रहे और जो भी महापुरुष उनके संपर्क में आया, उन्हें भी उस पथ अहम् का अभाव था। कुछ व्यक्तियों की धारणा है कि विद्वता पर बढ़ने के लिए उत्प्रेरित किया। समय-समय पर इस पावन पथ अहंकार को जन्म देती है, पर प्रस्तुत मंतव्य को आपने असत्य पर अनेक विभूतियाँ प्रकट होती रही हैं जो केवल अकेली ही नहीं सिद्ध कर दिया। जो भी व्यक्ति आपके संपर्क में एक बार आ गया पाण्य चलीं अपितु उनके साथ एक कारवां चलता रहा है। परम श्रद्धेय वह आपकी विद्वता और सरलता के मणिकांचन संयोग को देखकर उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. का संयमी जीवन ही अकेला नहीं श्रद्धा से नत हुए बिना नहीं रहा। चला। उनके साथ प्रतापमल जी म. ने भी आर्हता दीक्षा ग्रहण की थी और उसके पश्चात् उनकी पावन प्रेरणा के प्रदीप से अनेकों प्रथम दर्शन में ही मैं आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका, व्यक्तियों का जीवन ज्योतिर्मय बना। आपकी पावन प्रेरणा से अनिमेष दृष्टि से आपकी ओजस्वी, तेजस्वी सौम्य आकृति को देखता ही रह गया। आप जैसे विमल विभूति-समता मूर्ति के दर्शन अनेकों भव्य आत्माओं ने सागार धर्म से आगार-अनगार धर्म को स्वीकार किया। पाकर हृदय आनन्द से झूम उठा। आपमें एक ऐसी संजीवनी शक्ति थी, प्रण एवं सत्व का बल था जो अन्य व्यक्तियों में बहुत कम आपश्री की साधना समन्वय की पोषक रही है। आपके विमल देखने को मिलता है, आप जैसे महान् व्यक्ति ही समाज संघ और विचार, आपका मधुर व्यवहार और आपकी निर्मल वाणी में राष्ट्र के प्राण हो सकते हैं। आप भौतिक यशः कीर्ति के व्यामोह से समन्वय की सुरसरिता सतत् प्रवाहित रही है। आपका जीवन फूलों अत्यधिक दूर थे। आप देना जानते थे जो भी आपके पास आता, का उपवन है, जिसमें अनेक सद्गुण रूपी सुगन्धित फूल/पुष्प महक उसे आप ज्ञान-दान देते थे। आपका ज्ञान रूपी महामेघ सतत् रहे हैं। आपकी कृपा दृष्टि को पाकर तुच्छ व्यक्ति भी उच्च बनता बरसता ही रहता था तथा पठन-पाठन के अतिरिक्त आपका रहा है। आप साधना पथ के अविश्रान्त पथिक रहे हैं। आपका अधिकांश समय ध्यान, स्वाध्याय और आत्म-चिन्तन में ही लगता जीवन कर्मयोगी का जीवन रहा। आपके जीवन में प्रबल पुरुषार्थ था। सबसे बड़ी विशेषता थी, समता की आप साक्षात् मूर्ति थे। सदा देखा जा सकता था, जीवन के कण-कण का और क्षण-क्षण शारीरिक कष्ट के समय भी सदा आप मुस्कराते रहते थे, मुहरमी का सदुपयोग कर आप महान् बने और आपने दूसरों को भी यही सूरत आपको किंचितमात्र भी पसन्द नहीं थी। आपका हृदय आनन्द प्रेरणा दी कि तुम्हें भी जीवन को महान् बनाने के लिए सतत् से आपूरित था और वही आनन्द आपकी वाणी और चेहरे पर पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। सतत् पुरुषार्थ से ही जीवन में स्पष्ट रूप से झलकता था। ऐसे सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर अभिनव चेतना का संचार होता है। मुनि जी म. के चरणों में कोटि-कोटि वंदन। हे तप और त्याग के S d गुरुदेवश्री अपने जीवन के निर्माता थे। उन्होंने अपने जीवन को | देवता हमारी अनंत श्रद्धा को स्वीकार करो। श्रम से निखारा था, वे प्रत्युत्पन्नमति थे। गम्भीर से गम्भीर विषयों का वे उसी क्षण समाधान कर देते थे, उनके प्रवचनों में कभी भी महामानव उपाध्यायश्री नीरसता नहीं होती थी, सदा हँसी के फव्वारे छूटते रहते थे। वे स्वयं सरस थे इसलिए उन्हें नीरसता पसन्द नहीं थी। वे सदा हँसते -प्रो. बी. एल. पारख (अजमेर) हुए जीए और हँसते हुए ही उन्होंने मृत्यु को भी वरण किया, यही उनके जीवन की पूर्ण सफलता है, उनके जीवन रूपी भव्य भवन भारत की पावन पुण्य भूमि में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, अवतारी पर संथारे का स्वर्ण कलश सदा चमकता रहेगा, उनके चरणों में | महामानव को जन्म देने का गौरव प्राप्त हुआ है तो अनेक ऋषित व
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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