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________________ 1600 D 5 श्रद्धा का लहराता समन्दर १४७ 3200 2006 HDad POOODHOSPHOR GER 16000 दर्शनार्थी राखी जैसे नन्हे से गाँव में पहुँचे और हमें उनकी सेवा का चित्र उटूंकित होता है, जिनके अन्तर्हृदय में ज्ञान का अगाध सागर भी अवसर मिला। वर्षावास के कारण राखी जैसा छोटा-सा ग्राम हिलोरें ले रहा था, जिनके मस्तिष्क से अनुभव का अमृत फूट रहा गुरुदेवश्री के विराजने से नगर जैसा बन गया। खूब धर्म की। था, जिनके हाथों में समय के प्रवाह को रोकने की अपूर्व क्षमता थी प्रभावना हुई। दान, शील, तप और भाव की सुरसरिता प्रवाहित हुई। जिनके पैरों में पहलवान की-सी मस्ती थी, जिनके कण्ठ से उस वर्षावास में चार माह तक गुरुदेवश्री के निकट संपर्क में | उदात्तवाणी प्रस्फुटित होती थी, वस्तुतः वे महापुरुष थे, जिन्होंने रहने का परम सौभाग्य हमें मिला। हमने देखा गुरुदेवश्री निष्पह हमारे अन्तर्जगत के अंधकार को नष्ट किया और ऊर्ध्वगामी योगी थे, कभी भी किसी भी वस्तु की चाह नहीं। हमारे अनेक बार चिन्तन प्रदान किया। निवेदन करने पर भी उन्होंने कभी नहीं कहा कि तुम्हें यह कार्य मैं बहुत ही छोटा था, बचपन की एक धुंधली-सी स्मृति आज करना है, गुरुदेवश्री का यही उत्तर रहता था कि आप अपनी इच्छा । भी मानस-पटल पर चमक रही है। हमारे ग्राम में गुरुदेवश्री का से इतना अच्छा कार्य कर रहे हैं, मेरे कहने की आवश्यकता क्या? आगमन हुआ और उस ज्ञानरूपी हिमालय से प्रवचन गंगा प्रवाहित उनके जैसा निष्पृह संत/अनासक्त संत मिलना दुर्लभ ही नहीं, अति हुई। उस प्रवचन गंगा में अवगाहन कर सभी का हृदय आल्हादित दुर्लभ है। था। क्या धनवान और क्या गरीब, क्या अमीर और क्या गुरुदेवश्री प्रबल पुण्य के धनी थे, सिवानची प्रान्त के श्रद्धालु दीन-दुःखी, क्या मोची और क्या चमार हो, सभी उनकी आकर्षक अपने गाँव से बाहर बहुत ही कम जाते हैं पर उस वर्षावास में वाणी से प्रभावित थे। यह था उनकी वाणी का अद्भुत प्रभाव, सिवानची प्रान्त के सुश्रावक और सुश्राविकाओं ने दर्शन और बेमिसाल चमत्कार, जिससे सभी प्रभावित थे। प्रवचन लाभ लेकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। क्या स्थानकवासी, उस महापुरुष का जन्म उस समय हुआ जब भारत परतन्त्रता क्या मंदिरमार्गी, क्या जैन और क्या अजैन, ३६ कीम वाले दूर-दूर । की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेजी शासकों ने देश को बुरी के अंचलों से राखी पहुँचते थे, यह था गुरुदेवश्री का अतिशय। तरह से अपने चंगुल में फँसा रखा था। उस समय भारत के मूर्धन्य गुरुदेवश्री समदर्शी थे। गुरुदेवश्री के प्रवचनों में जैनों से भी मनीषीगण देश को आजाद बनाने के लिए प्रबल प्रयास कर रहे थे। अजैन अधिक उपस्थित होते थे। जब गुरुदेवश्री रामायण का खादी का आंदोलन द्रुतगति से चल रहा था। खादी अल्पारंभी है, प्रवचन में वांचन करते तो श्रोता झूमने लगते। गुरुदेव श्री फरमाते, इसलिए आपने भी खादी पहनने का नियम ग्रहण किया और जीवन मेरे लिए राम और भगवान महावीर बराबर हैं और दोनों ही मोक्ष भर आपने खादी के वस्त्रों का ही उपयोग किया। आपके मंगलमय में पधारे हैं। परम श्रद्धेय गुरुदेवश्री का असीम उपकार हमारे पर प्रवचनों में राष्ट्रीय भावना, देशभक्ति के स्वर सदा मुखरित होते रहा है, हमारे परिवार पर रहा है, हम उनके असीम उपकार से रहते थे। आपका यह स्पष्ट मंतव्य था कि जिस देश में हम जन्मे हैं, जिस देश के अन्न और जल से हमारे शरीर का निर्माण हुआ विस्मत नहीं हो सकते। हमारे ज्येष्ठ भ्राता रतनचंद जी सा. रांका है, उस देश के प्रति हमें पूर्ण रूप से वफादार रहना चाहिए। आज नहीं रहे हैं किन्तु उनकी अन्तिम इच्छा गुरुदर्शन की थी और राष्ट्रीय संपत्ति का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए, जब कभी भी आप गुरुदेवश्री का स्मरण करते-करते ही उन्होंने प्राण त्यागे थे, अतः राष्ट्र धर्म पर प्रवचन करते तो लगता था कि आपका हृदय बोल हम उनके शव को लेकर गुरुदेवश्री के चरणों में पहुंचे और गुरुदेव रहा है। देश में फैलती हुई अनैतिकता, अमानवीयता के प्रति से मंगलपाठ श्रवण कर उनका अग्नि संस्कार किया। आपकी वाणी अंगारे की तरह बरसती थी। आप अपने प्रवचनों में आज गुरुदेवश्री हमारे बीच में नहीं रहे हैं परन्तु गुरुदेवश्री के नैतिकता पर बल प्रदान करते थे, सादा जीवन जीने की प्रेरणा देते सुशिष्य देवेन्द्र मुनिजी आज श्रमणसंघ के सरताज बने हैं, यह थे। लोक कथाओं के माध्यम से आगम, वेद, उपनिषद, पुराण के गुरुदेवश्री का ही पुण्य फल है, जिसके कारण उन्होंने इतनी प्रगति माध्यम से वे इस प्रकार सरल और सरस रूप में विषय का की है। मैं अपनी ओर से, अपनी भाभीजी की ओर से तथा सम्पूर्ण प्रतिपादन करते कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठते। आपश्री के प्रवचन में परिवार की ओर से गुरुदेवश्री के चरणों में भावभीनी श्रद्धांजलि सर्वत्र समन्वय के स्वर प्रस्फुटित होते थे। आपका यह मानना था समर्पित करता हूँ। कि हम आग बुझाने वाले हैं, हम आग लगाना क्या जाने, हम स्नेह-सद्भावना का प्रचार संचार करने वाले हैं। आपके प्रवचनों की [ स्नेह और सद्भावना के पावन प्रतीक ) सबसे बड़ी विशेषता थी कि आप जन-जन में प्रेम और सद्भावना का संचार करते थे। आपके प्रवचनों को श्रवण कर जन-जन के मन -नाथूलाल मादरेचा (ढोल) में फैला हुआ वैमनस्य सदा-सदा के लिए धुल जाता था, स्नेह और सद्भावना के पावन प्रतीक सद्गुरुदेव के चरणों में हार्दिक श्रद्धांजलि उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री पुष्करमुनिजी म. सा. का पावन समर्पित करते हुए मैं अपने आपको धन्य अनुभव कर रहा हूँ कि स्मरण आते ही मानस पटल पर एक ऐसे दिव्य-भव्य व्यक्तित्व का मुझे ऐसे सर्वश्रेष्ठ और सर्वज्येष्ठ गुरुदेव प्राप्त हुए।
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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