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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ जीवन भी ज्योति स्तम्भ की तरह ही प्रभावशाली रहा जो भी जीवन अपने प्रबल पुरुषार्थ से एक दिन महापुरुष की कोटि में पहुँच जाते से भूला और भटका हुआ राही उनके चरणों में पहुँचा, उसे सही हैं। उस चिन्तक ने हमें पूछा कि आपके यहाँ ऐसे महापुरुष कितने दृष्टि मिली, सही चिन्तन मिला।
हुए हैं। हमने कहा कि, अतीत की तो हमें स्मृति नहीं है किन्तु उपाध्याय गुरुदेवश्री पुष्करमुनिजी म. सा. श्रमणसंघ के महान्
वर्तमान में हमारे गांव से निकले हुए दो महापुरुष हैं, एक जैन मेधावी, तेजस्वी संतरल थे, वे श्रमणसंघ के उपाध्याय पद पर
श्रमण बने हैं तो दूसरे वैदिक परम्परा के संन्यासी। आसीन थे किन्तु उन्हें उपाध्याय का गर्व नहीं था, अहंकार उनको जैन श्रमण जो बने हैं वे जैनशासन के एक महान् तेजस्वी संत छू नहीं सका था वे सदा जो भी व्यक्ति आता उनसे सहज स्वभाव हैं, उनकी लिखी हुई सैंकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, उन्होंने हमारे से मिलते थे, उनके जीवन में कभी भी दिखावा नहीं था जो भी गांव में ही जन्म लिया था, उनका बाल्यकाल का नाम अम्बालाल था, सहज था, सरल था।
था और उनके पूज्य पिताश्री का नाम सूरजमल जी और मातेश्वरी हमारे परिवार पर तो गुरुदेवश्री की अपार कृपा रही। हमारे का नाम वालीबाई था और उनके छोटे भाई भेरुलाल जी हैं, एक गाँव में ही गुरुदेवश्री का ननिहाल था, इसलिए बाल्यकाल की ही टहनी पर दो फूल खिले, एक तो प्रगति के चरम शिखर को विविध घटनाएँ उनकी नान्देशमा के साथ जुड़ी हुई हैं, बाल्यकाल में पहुँच गया और दूसरा फूल बिना खुशबू बिखेरे ही संसार से विदा उनकी बाल क्रीड़ाएँ नान्देशमा में ही संपन्न हुईं, उनकी आदरणीया हो गया, केवल गांव निवासी उनको जानते अवश्य हैं परन्तु कोई मातेश्वरी वालीबाई का भी नान्देशमा में ही स्वर्गवास हुआ और भी उन्हें पहचानता नहीं और दूसरा महापुरुष ऐसा हुआ है कि उनकी मृत्यु को देखकर ही उनका मन चिन्तन के सागर में डुबकी | जिसके दर्शनों के लिए भारत के विविध अंचलों से हजारों व्यक्ति लगाने लगा। उनका बाल सुलभ मानस यह निर्णय नहीं कर पा रहा पहुँचते हैं। भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री, था कि जीवन सत्य है या मृत्यु सत्य है, मृत्यु क्यों होती है, राज्यपाल और बड़े-बड़े पदाधिकारी उनके चरणों में पहुँचते हैं। किसलिए होती है, ऐसा कौन-सा तत्व है, जो शरीर में से निकल उन्हीं के नाम का यह साइन बोर्ड लगा है, इसीलिए आपने हमारे से जाने पर शरीर निढाल होकर पड़ जाता है, इसी चिन्तन ने उनको
९, इसा चिन्तन न उनको पूछा है। वैराग्य की ओर गतिमान किया, यह बीज ही आगे चलकर विराट
उस पाश्चात्य चिन्तक ने कहा कि वे कहाँ हैं ? हमने कहा, यहाँ रूप धारण कर सका।
| से दस किमी. पर जसवंतगढ़ ग्राम में वे अपना वर्षावास बिता रहे गुरुदेवश्री के हमारे यहाँ तीन वर्षावास हुए पर हमारी हार्दिक । हैं, वह चिन्तक गुरुदेवश्री के दर्शन के लिए पहुंचे और गुरुदेवश्री इच्छा थी कि तीन चातुर्मास तो हुए हैं किन्तु एक चातुर्मास और के दर्शन कर अपने आपको उन्होंने गौरवान्वित अनुभव किया। होना चाहिए। पलंग और पाटे के भी चार पहिए होते हैं, यदि चार
गुरुदेवश्री के संबंध में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने के चातुर्मास हो जाते तो हम विशेष रूप से धन्य-धन्य हो जाते।
समान है, हमें तो यह गौरव है कि वे हमारी भूमि में जन्मे और गुरुदेवश्री चद्दर समारोह के पूर्व नान्देशमा पधारे। नान्देशमा में आज उनके नाम पर हमारे गांव में कालेज की स्थापना होने वाली एक नई बहार आ गई थी। हजारों श्रद्धालुगण नान्देशमा में है और अन्य अनेक विकास के कार्य यहाँ होंगे। धन्य है उस उपस्थित हुए थे। गुरुदेवश्री के चार दिन का यह प्रवास पूर्ण | महागुरु को जिन्होंने हमारे वंश में जन्म लेकर हमारे वंश की कीर्ति ऐतिहासिक कहा जा सकता है, पर किसी को भी यह पता नहीं था को दिग्-दिगन्त में फैलाया। उनके चरणों में भाव-भीनी वंदना के कि गुरुदेवश्री इतने जल्दी हमारे बीच से उठ जायेंगे। आज तो साथ श्रद्धार्चना। केवल उनकी पावन स्मृतियाँ ही शेष रह गई हैं। उनका मंगलमय जीवन हमारे लिए सदा ही प्रेरणा का स्रोत रहा है और रहेगा और सरल और स्पष्ट वक्ता संत उनके सद्गुणों को ग्रहण कर हम अपने आपको धन्य बना सकें, यही उस महागुरु के चरणों में भाव-भीनी श्रद्धार्चना।
-संपतीलाल बोहरा,
(अध्यक्ष, श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय, उदयपुर) भावांजलि
सन् १९५७ की बात है, उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. का
वर्षावास था। उस वर्षावास में मेरे पूज्य पिताश्री ने और मातेश्वरी -शंकरलाल पालीवाल (गुरु पुष्कर नगर (सेमटार))
ने कहा कि वत्स इस वर्ष हमारे सद्गुरुदेव का चातुर्मास यहाँ पर है
इसलिए तू गुरुदेवश्री के दर्शन के लिए जा। मात-पिता की पावन एक पाश्चात्य चिन्तक भारत में आया। उसने हमें पूछा कि क्या प्रेरणा ने मेरे में एक नई चेतना फूंकी और मैं गुरुदेवश्री के दर्शन इस गांव में कोई बड़ा पुरुष पैदा हुआ है। हमने कहा कि यहाँ पर के लिए पहुँचा। गुरुदेवश्री के सहज स्नेह ने मुझे आकर्षित किया। बड़े पुरुष नहीं पैदा होते किन्तु बालक ही पैदा होते हैं। बालक ही हमारे गांव रूण्डेडा में कविरल श्री नेमीचंद जी म. और महास्थविर
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