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श्रद्धा का लहराता समन्दर
उदयपुर में श्री तारक गुरू जैन ग्रंथालय की स्थापना हुई और मैं अपना परम सौभाग्य समझता हूँ कि प्रस्तुत ग्रंथालय की सेवा का मुझे अवसर मिला, जब से यह संस्था स्थापित हुई तब से मैं इस संस्था के साथ जुड़ा हुआ हूँ। मुझे लिखते हुए अपार आल्हाद है कि श्री तारक गुरू जैन ग्रंथालय ने साहित्यिक क्षेत्र में जो एक कीर्तिमान स्थापित किया है, उससे हमारा सिर गौरवान्वित है।
श्रद्धेच सद्गुरुवर्य के और आचार्य श्री देवेन्द्रमुनि जी म. के साहित्य को प्रकाशन करने का हमारी संस्था को श्रेय मिला। गुरुदेवश्री का और आचार्यश्री का साहित्य बहुत ही अनूठा और अद्भुत है चाहे साक्षर हो चाहे निरक्षर, सभी के लिए साहित्य उपयोगी है। हमने कथा साहित्य के अन्तर्गत गुरुदेवश्री के द्वारा लिखित हजारों कथाओं को जैन कथाएँ सिरीज माला के रूप में प्रकाशित किया, जिसके १११ भाग प्रकाशित किए और अनेक भागों के दुबारा संस्करण भी निकल चुके और अनुवाद भी हो चुके, यह हमारे कथा साहित्य की लोकप्रियता का ज्वलन्त प्रमाण है। हमने दार्शनिक, धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना को उजागर करने वाला उत्कृष्ट साहित्य भी प्रकाशित किया, जिस साहित्य ने विद्वद जगत को आकर्षित किया है और भारत के मूर्धन्य मनीषियों ने उस साहित्य की मुक्त कंठ से सराहना भी की है।
गुरुदेवश्री जीवनशिल्पी थे, उन्होंने अपने शिष्य / शिष्याओं को उच्चतम अध्ययन करवाया। आज हमें अत्यन्त गौरव है कि आज श्रमणसंघ के तृतीय पट्ट पर गुरुदेवश्री के प्रधान शिष्य देवेन्द्रमुनि जी म. आसीन हैं। श्रमणसंघ के द्वितीय पट्टधर महामहिम आचार्यसम्राट श्री आनंदऋषि जी म. ने और श्रमणसंघ ने ऐसे रत्न को चुना जो शान्त, दान्त और गंभीर है और जिनका अध्ययन विशाल है। पूना संत सम्मेलन सन् १९८७ में हुआ, उस सम्मेलन में श्री देवेन्द्रमुनि जी म. को उपाचार्य पद प्रदान किया गया। महामहिम आचार्य सम्राट् श्री आनंद ऋषि म. के स्वर्गस्थ होने पर सन् 1992 में अक्षय तृतीया के सुनहरे अवसर पर सोजत सिटी में श्री देवेन्द्र मुनिजी म. को आचार्यपद प्रदान किया गया और समयाभाव के कारण उस समय चद्दर समारोह नहीं हो सका। उदयपुर संघ की यह प्रयत्न भावना रही कि उदयपुर में जन्मे हुए श्री देवेन्द्रमुनिजी म. का आचार्य पद चादर समारोह उदयपुर में हो इसके लिए प्रार्थना करने हेतु हमारा शिष्टमण्डल गढ़सिवाना पहुँचा और हमने भक्तिभाव से विभोर होकर गुरुदेवश्री से निवेदन किया कि यह पावन प्रसंग उदयपुर को मिलना चाहिए। पहले आपश्री अपने ध्यान में देख लीजिए ।
उदयपुर चादर समारोह पूर्ण यशस्वी रूप से संपन्न होगा न? एक क्षण गुरुदेवश्री ने चिन्तन किया और कहा कि आप लोगों को पूर्ण रूप से यश मिलेगा। दूसरे दिल्ली आदि दूर के क्षेत्र में मेरा पहुँचना संभव नहीं होगा पर उदयपुर तो सुखे समाधे पहुँच जाऊँगा। गुरुदेवश्री के मंगलमय की बात सुनकर हमारा हृदय
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आनंद-विभोर हो उठा और हमें पूर्ण विश्वास हो गया कि हमें पूर्ण सफलता मिलेगी और हमने प्रयत्न प्रारंभ किया। सभी संत भगवंतों की कृपा से और कफ्रिस के सहयोग से चद्दर समारोह के लिए उदयपुर की स्वीकृति मिली और उदयपुर की गरिमा के अनुकूल यशस्वी रूप से चादर समारोह संपन्न हुआ।
जब गुरुदेवश्री उदयपुर पधारे मन मस्तिष्क में कहीं पर भी यह कल्पना नहीं थी कि इतने अस्वस्थ हो जायेंगे। सभी यही सोच रहे थे कि गुरुदेवश्री आचार्यश्री के साथ ही पंजाब, हरियाणा, उ. प्र. की यात्रा करेंगे। इनकी विमल छत्रछाया में आचार्यश्री का यश दिदिगन्त में फैलेगा। चद्दर समारोह के पश्चात् गुरुदेवश्री अस्वस्थ हो गए और इतने अस्वस्थ हो गए कि कल्पना का कमनीय महल एकदम ढह गया। गुरुदेवश्री ने कहा, मेरा अंतिम समय आ गया है और मुझे संथारा करा दो गुरुदेवश्री की उत्कृष्ट भावना देखकर आचार्यश्री ने संधारा कराया और वह संथारा भी चौबीहार, ४२ घण्टे का शानदार संथारा रहा। लाखों लोगों ने गुरुदेवश्री के दर्शन किए और हमारे परम आराध्य गुरुदेव हम सभी को बिलखता छोड़कर इस संसार से विदा हो गए।
वे जीवन भर यशस्वी रूप से जीये और यशस्वी रूप से ही उन्होंने मृत्यु को वरण किया। वीर सेनानी की तरह वे मृत्यु से लोहा लेते रहे। उनके चेहरे पर अपूर्व सौम्यता और शांति को देखकर सभी विस्मित थे. इसे कहते हैं साधना, इसे कहते हैं त्याग और वैराग्यमय जीवन इसे कहते हैं सच्चा संत जीवन गुरुदेवश्री के स्वर्गवास होने के पश्चात् भी उनके चेहरे पर यही दिव्यता, वही भव्यता थी कहीं पर ऐसा नहीं लगता था कि गुरुदेवश्री के तन में। से प्राण निकल चुके हैं। अंतिम समय में भी ये पद्मासन से आसीन किये गए क्योंकि उन्हें पद्मासन सिद्ध था। प्रतिदिन गुरुदेवश्री पद्मासन से पाँच-छः घण्टा बैठते थे। गजब की थी उनमें साधना के प्रति निष्ठा ।
आज गुरुदेवश्री हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनका मंगलमय आशीर्वाद हमारे साथ है, उनके द्वारा जो अमर संदेश हमें मिले हैं, वे सदा हमारे जीवन को आलोक करते रहेंगे। मैं भक्ति भावना से विभोर होकर गुरुदेवश्री के चरणों में श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूँ। हे गुरुदेव ! हम आपके हैं, सदा आपके रहेंगे और आपके बताए हुए मार्ग पर निरन्तर बढ़ते रहेंगे। आपकी पावन प्रेरणा हमारे लिए आलोकस्तंभ की तरह पथ-प्रदर्शन करती रहेगी।
महान मेधावी तेजस्वी संतरत्न
सहरीलाल सिंघवी (नान्देशमा)
महापुरुषों का जीवन ज्योति स्तम्भ की तरह होता है, ज्योति स्तम्भ भूले भटके राहियों का पथ प्रदर्शन करता है। वह कहता है। कि आओ मेरे पास तुम्हें मैं सही मार्ग बताऊँगा । गुरुदेवश्री का
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