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तकodadapada
श्रद्धा का लहराता समन्दर माग
सुनाते थे। उनकी अभिव्यक्ति इतनी स्फुट और विनोदप्रिय थी कि
जीवन शिल्पी गुरुदेव श्रोतागण प्रवचन में लोट-पोट हो जाते थे। आपश्री की आवाज बहुत ही बुलन्द थी, चार पांच हजार व्यक्ति आपके प्रवचनों को,
-जवरीलाल कोठारी मंगलपाठ को अच्छी तरह से श्रवण कर लेते थे। आपने जीवन भर कभी भी ध्वनि विस्तारक यंत्र का उपयोग नहीं किया। आप परम श्रद्धेय उपाध्याय पू. गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी म. का नियमित समय पर जाप करने के प्रबल पक्षधर थे। भोजन से भी व्यक्तित्व अनूठा और कृतित्व अद्भुत था। गुरुदेवश्री सच्चे गुरु थे। भजन आपको अधिक प्रिय था, समय पर जाप करना आपको । गुरु का कार्य है शिष्य का पथ-प्रदर्शन करना। गुरु ने हमारे जीवन अत्यधिक पसन्द था। कुछ समय भी इधर-उधर होने पर आपको को नया मोड़ दिया, उनकी पावन प्रेरणा सतत् यही रही कि सहज बेचैनी होती थी और जाप करने में इतने अधिक तल्लीन हो ।
तुम्हारा जीवन व्यसनों से मुक्त बने, तुम्हारे जीवन में चारित्रिक तेज जाते थे कि सभी प्रकार की शारीरिक व्याधियाँ भी नष्ट हो जाती
प्रकट हो, नियमोपनियममय तुम्हारा जीवन हो। गुरुदेवश्री के उपदेश थीं, ऐसे पुण्य पुरुष अध्यात्मयोगी गुरुदेव श्री के चरणों में मेरी
से हम व्यसनों से मुक्त रहे और गुरुदेवश्री की पावन प्रेरणा से संत भावभीनी वंदना।
सेवा का भी हमें सौभाग्य मिलता रहा।
पूज्य गुरुदेवश्री के पीपाड़ वर्षावास में और जोधपुर वर्षावास
में हमें सेवा का सौभाग्य मिला और बहुत ही निकटता से गुरुदेवश्री सरलता के ज्योतिर्मय रूप थे वे को देखने का भी अवसर मिला। गुरुदेवश्री बहुत ही सरलात्मा और पवित्रात्मा श्रे। गुरुदेवश्री की असीम अनुकम्पा हमारे पर रही है,
P 4 -सुभाष कोठारी हमारी यही मंगलकामना है कि गुरुदेवश्री की इसी तरह की
अनुकम्पा हमारे ऊपर सदा-सदा बनी रहे, भले ही वे आज हमारे संत भगवन्तों के चरणों में हमारा मस्तिष्क सदा ही झुकता रहा
बीच नहीं हैं किन्तु उनकी असीम कृपा सदा हमारे पर है और है क्योंकि उनका जीवन त्याग और वैराग्य का, संयम और साधना
रहेगी! गुरुदेवश्री के चरणों में श्रद्धार्चना! का, तप और जप का एक पावन प्रतीक है, उनके सात्त्विक गुणों के प्रति हमारे मन में अनंत आस्थाएँ होती हैं और उनका पावन
परम उपकारी थे गुरुदेव जीवन हम अज्ञानी जीवों के लिए सच्चा पथ प्रदर्शक होता है। आर्याव्रत में ऐसे संत रत्नों पर ही सात्विक गर्व रहा है, ऐसे महान्
-निहालचंद कोठारी संतों से ही हमारी संस्कृति को पोषण मिला है, जिससे भारत विश्व
परम श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री पुष्कर मुनिजी म. गुरु के गौरव से गौरवान्वित है।
मरुधरा के महान संत थे, वे त्याग और वैराग्य की जाज्वल्यमान हम जिस महापुरुष को श्रद्धांजलि अर्पित करने जा रहे हैं, वे प्रतिमा थे। आपके जीवन में गुण गरिमा थी, उसका वर्णन करना उच्च कोटि के संत रत्न थे, जिन्होंने आचार्य देवेन्द्र मुनिजी म. जैसे हमारी लेखनी से परे है, आपकी मुख मुद्रा को देखकर लगता था श्रमणरल को समाज को समर्पित किया, जो आज श्रमणसंघ के { कि आपमें अपूर्व अन्तश्चेतना विद्यमान है। आप में ये विलक्षणता तृतीय पट्टधर हैं। श्रद्धेय गुरुदेवश्री का जीवन सर्वश्रेष्ठ जीवन था,
थी कि आपने विघटन को नहीं सदा ही संगठन को महत्व दिया। सर्वश्रेष्ठ जीवन की संक्षिप्त परिभाषा है, जीवन की सरलता आप वैष्टी होते हुए भी समष्टि के रूप में रहे। निष्कपटता और दम्भता। आत्मशुद्धि के लिए सरलता से बढ़कर गुरुदेवश्री के पवित्र जीवन में एक खास बात देखने को आई। अन्य साधन नहीं, बाह्य आचार या प्रचार किसी का कम और वे चाहते थे स्थानकवासी समाज की उन्नति। वे स्थानकवासी समाज ज्यादा हो सकता है, क्षेत्र की दृष्टि से क्रिया-कलाप में भी अन्तर हो । में आचार और विचार सम्बन्धी ऐसी उत्क्रांति लाना चाहते थे. सकता है परन्तु जिसका मन शुद्ध है, जिसकी वाणी शुद्ध है और
जिससे समाज ज्ञान, दर्शन और चारित्र की छत्र-छाया में जिसका आचरण शुद्ध है, उनका जीवन घृतसिक्त पावक के समान
जीवन-यात्रा करे। आपकी हार्दिक इच्छा थी, प्रत्येक श्रमण विधान, D0 सहज सरल होता है, निर्धूम होता है, निर्मल होता है। गुरुदेवश्री
क्रियापात्र और त्याग और वैराग्य के महामार्ग पर उसके मुस्तैदी
कदम बढ़ें। वे श्रावक और श्राविकाओं में भी आचार की उत्कृष्टता सरलता के ज्योतिर्मय रूप थे, उनका आचार सरल, विचार सरल
देखना चाहते थे। अपने प्रवचनों में गुरुदेवश्री इस बात पर सदा व और व्यवहार सरल, सब कुछ सरल था, कहीं पर भी छिपाव नहीं
बल देते थे, उनके प्रवचनों को श्रवण कर हजारों व्यक्ति व्यसन से था, माया नहीं थी। उनकी सरलता ने मेरे मन को बहुत ही
मुक्त हुए, हजारों व्यक्तियों ने तम्बाकू छोड़ी, वे बीड़ी-सिगरेट के प्रभावित किया, ऐसे सरल मूर्ति गुरुदेव के चरणों में मेरी भावभीनी
उपासक थे। दिन-रात में अनेक बीड़ियाँ पी लेते थे, उन्होंने 2002 वंदना।
सदा-सदा के लिए बीड़ियाँ छोड़ दीं।
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