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रणछोड़भट्ट कृत अमर काव्य और महाराणा प्रतापसे संबन्धित दो विवादास्पद प्रश्न
डॉo व्रजमोहन जावलिया, एम० ए०, पी० एच० डी०
अकबरने, सिंहासन संभालने के उपरान्त राजस्थानके राजपूत राजाओंको अनेक प्रकारके राजनीतिक दावपेचोंके प्रयोगसे अपने अधीन करनेका प्रयास किया और इसमें संदेह नहीं कि उसने इस उद्देश्य में बहुत कुछ सफलता भी प्राप्त की— पर मेवाड़के शासक महाराणा प्रतापपर उसकी किसी भी नीतिका कोई असर नहीं पड़ा। अकबर की ओरसे समय-समयपर कई प्रतिनिधि भी महाराणाको अकबरकी अधीनता स्वीकार कर लेनेके लिये समझाने हेतु मेवाड़ में आये । महाराणाने उन्हें राज्योचित सम्मान दिया - पर बिना किसी सफलताके उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा । इनमें प्रमुख थे जलालखाँ कोर्ची, भगवन्तदास, टोडरमल और मानसिंह | मेवाड़ में इन सभी राजदूतोंको यथोचित सम्मान दिया गया - पर दुर्भाग्यसे मानसिंहको एक सामान्य सी घटना पर मेवाड़से अपमानित होकर लौटना पड़ा। इस घटना के विषय में मेवाड़ के इतिहाससे संबंधित लगभग सभी राजस्थानी, संस्कृत आदि भाषाओं में लिखित ऐतिहासिक काव्य ग्रंथों में विवरण मिलता है । स्वयं मानसिंहके राजकुलसे संबंधित ऐतिहासिक काव्य ग्रंथों और ख्यातोंमें इस घटनाका उल्लेख हुआ है । फिर भी कतिपय विद्वान् नवीन प्राप्त सामग्री के आधारपर अथवा ज्ञात सामग्रीपर ही पुनः मनन करते हुए नई स्थापनाएँ समय- समयपर इस विषयपर करते रहे हैं । कुछ दिनों पूर्व मेवाड़के ही निवासी एक विद्वान् डा० देवीलाल पालीवाल, निदेशक, साहित्यसंस्थान, राजस्थान विद्यापीठ, उदययुरने मेवाड़ राज्य इतिहास से संबंधित और मेवाड़ के महाराणा राजसिंहके आश्रय में रणछोड़भट्ट द्वारा विरचित संस्कृत काव्य ग्रंथ "अमर काव्य' को प्रमाण रूप में प्रस्तुत करते हुए अपने एक लेखमें यह संकेत दिया था कि उक्त काव्य ग्रंथ में मेवाड़ में किये गये मानसिंह अपमानका कोई उल्लेख नहीं है अतः ऐसी कोई घटना घटी भी होगी उसमें संदेह हैऔर अन्य राजस्थानी और मेवाड़ी काव्यों में दिया गया विवरण कल्पित है । '
यदि अन्य ग्रंथोंको अप्रामाणिक मानकर अमरकाव्यमें इस घटनाका उल्लेख मिलनेपर ही इसे सत्य माना जा सकता हो तो मैं सविनय निवेदन करना चाहूँगा कि अमरकाव्यमें इस घटनाका सविस्तर विवरण प्राप्त है । इस ग्रंथ में संवत् १६३० वि०में घटी घटनाओंसे संबंधित विवरण विषयक श्लोक सं० २३ से ५० जो इस लेख के परिशिष्ट भागमें दिये जा रहे हैं, ये महाराणा प्रताप द्वारा युक्ति-पूर्वक किये गये मानसिंहके अपमानका स्पष्ट शब्दोंमें उल्लेख हैं यह अंश स्वयं डा० देवीलाल पालीवाल द्वारा संपादित "महाराणा प्रताप स्मृति-ग्रंथ' में भी प्रकाशित हो गया है । अन्य ऐतिहासिक स्रोतोंसे इस काव्य में स्वल्प अंतर अवश्य है, और वह है अपमानकी अनुभूतिके समय मात्र का । अन्य काव्यों के अनुसार मानसिंहने भोजनके समय ही अपने अपमानका अनुभव करके रोष प्रकट किया था, परन्तु अमरकाव्यके अनुसार महाराणा मानसिंहको
१. शोधपत्रिका वर्ष १९ अंक ४ पृ० ४४-४९ ।
२ महाराणा प्रताप स्मृति ग्रंथ - साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर ।
३२६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ
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