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________________ होथलने इस मागको स्वीकार कर लिया और सदाके लिए ओढा जामके साथ रहने लग गई। कच्छकी भूमिपर की यह प्रचलित दन्तकथा ऋग्वेदकालके जितनी ही पुरानी है। ऋग्वेदमें उर्वशी पुरुरवाकी एक कथा आती है। उसके साथ इस कथाका अनुबन्ध है। उर्वशी-पुरुरवाकी कथाके साथ इस लोककथाका अत्यन्त साम्य है, समानता है।' पुरुरवा पृथ्वीपर का एक मृत्युलोकी-मानव है, जबकि उर्वशी एक अप्सरा है । होथल भी एक अप्सरा ही थी, ऐसा कहा गया है। ये दोनों गान्धर्व विवाह द्वारा विवाहित बन जाते हैं और विवाह के अवसरपर उर्वशी भी शत प्रस्तुत करती है १. दिन में तीनसे अधिक बार आलिंगन न किया जाय । २. पुरुरवा, नग्नदेहसे उर्वशीकी दृष्टिके समीप नहीं आना चाहिए। ३. उर्वशीकी इच्छाके विरुद्ध सह-शयन न किया जाय और यदि इनमेंसे किसी भी एक शर्तका भंग किया जायगा तो उर्वशी शीघ्र ही पुरुरवाको त्यागकर चली जाएगी। इन शर्तोको पुरुरवाने विवाहसे पूर्व ही स्वीकार कर लिया था ही। स्वर्गको त्यागकर पृथ्वीपर आई हुई उर्वशीका वियोग गन्धर्व नहीं सह सके । इसलिये वे इन शर्तीका भंग कराने हेतु युक्तियाँ लड़ाने लग गये। अन्तमें पुरुरवा निर्वसन-स्थितिमें उर्वशीके समीप उपस्थित हो गया। उस समय अन्धकार अवश्य था, किन्तु गन्धर्वोने विद्युत-चमक उत्पन्न कर दी, ताकि उर्वशी इसे नग्न देख सके । पुरुरवाके नग्न शरीरपर दृष्टिपात होते ही उर्वशीको शर्त भंग हो जाना प्रतीत हुआ और जिसप्रकारसे होथल चली गई थी, उसी प्रकार उर्वशी भी चली गयी । उर्वशीके चले जानेपर पुरुरवा पागल हो गया। इस रूप में स्नान करती हुई उर्वशीने, कुरुक्षेत्रके सरोवर तटपर पुरुरवाको देखा। यह दयार्द्र हो गई और जब उर्वशी पुरुरवाके समीप प्रकट हुई तब उसने उर्वशीसे प्रार्थना की कि तुम वापस आ जाओ। अन्तमें देवताओंके वरदान स्वरूप पुरुरवाने पुनः उर्वशीको प्राप्त कर लिया। इस प्रकारसे लगभग तीन हजार वर्ष पूर्वकी इस पुराणकथा Myth के साथ ही साथ होथलपद्मिणीका ठीक-ठीक सम्बन्ध दिखाई देता है । उर्वशी-पुरुरवाकी कथा अत्यन्त प्राचीन प्रेमकथा है। इसे अमर बनाने के लिए इसका दृढ़तर कला-पक्ष है । फिर भी यह कथानक एक प्रतीकात्मक रूपक है । पुरुरवा उर्वशीकी सुनियोजित समस्त कथा ऋग्वेदमें नहीं मिलती है । किन्तु शतपथ ब्राह्मणमें यह उपलब्ध होती है । ऋग्वेदमें केवल अठारह संवादात्मक सूक्त उपलब्ध होते हैं परन्तु शतपथ ब्राह्मणमें तो यह समस्त कथानक विद्यमान है। श्री पेन्झरके मतानुसार महाभारत, विष्णुपुराण एवं अन्य पुराणोंमेंसे भी यह कथा मिल आती है। १. ऋग्वेद, संपादक : पं० श्रीराम शर्मा आचार्य, प्रकाशक : संस्कृति संस्थान, बरेली चतुर्थ संस्करण १, ३१, ४:५ : ३ : ४१ : ७, २३, ११:८, १८, ९५, ऋग्वेद कथा, सं० : रघुनाथ सिंह, प्रकाशक नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, पृ० २२६ से २४५ । २ कच्छनी जुनी वार्ताओ, पृ० २४१, सौराष्ट्रनी रसधार भा० ४, पृ० ४७ । ३. The Occen of Story, vol. II, p. 245. ४. एजन, पृ० २४४, २५१, २५२ । ५. एजन, पृ० २४८ । विविध : ३१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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