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________________ प्राप्त करके स्याद्वाद पद्धतिसे उपदेश देते हैं । सातवें सर्गमें छह परम्परागत ऋतुओंका वर्णन किया गया है । तीर्थंकरोंके समवसरणके अवसरपर भावी चक्रवर्ती भरत, अन्य राजाओंके साथ उनकी सेवामें उपस्थित होते हैं । दिग्विजय वर्णन नामक अष्टम सर्गमें आदि तीर्थंकर ऋषभदेवके पुत्र, चक्रवर्ती भरतको दिग्विजय, सांवत्सरिक दान तथा जिनेश्वरोंकी मोक्षप्राप्तिका निरूपण हआ है। नवें सर्गमें मख्यतः जिनेश्वरोंके गणधरों का वर्णन किया गया है । ___इस प्रकार काव्यमें सामान्यतया सातों नायकोंके माता-पिता, राजधानी, माताओंके स्वप्नदर्शन, गर्भाधान, दोहद, कुमारजन्म, जम्माभिषेक, बालक्रीड़ा, विवाह, राज्याभिषेक आदि सामान्य घटनाओं तथा पांच तीथंकरोंकी लौकान्तिक देवोंकी अभ्यर्थना, सांवत्सरिक दान, दीक्षा, तपश्चर्या, पारणा, केवलज्ञानप्राप्ति, समवसरण-रचना, देशना, निर्वाण, गणधर आदि प्रसंगोंका वर्णन है। विभिन्न महापुरुषोंके जीवनकी जिन विशिष्ट घटनाओंका निरूपण काव्यमें हआ है, वे इस प्रकार हैं। आदिनाथ--भरतको राज्य देना, नमिविनमिकृत सेवा, छद्मावस्थामें बाहबलीका तक्षशिला जाना, समवसरणमें भरतका आगमन, चक्रवर्ती भरतका षट्खण्डसाधन, दिग्विजय, भगिनी दीक्षा आदि । शान्तिनाथ-अशिवहरण तथा षटखण्डविजय द्वारा चक्रवर्तित्वकी प्राप्ति । नेमिनाथ--राजीमतीका त्याग । महावीर-गर्भहरणकी घटना । रामचन्द्र-सीतास्वयंबर, वनगमन, सीताहरण, रावणवध, दीक्षाग्रहण, बहुविवाह, शम्बूकवध, रावणका कपट, हनुमानका दौत्य, जटायुवध, धनुभंग, सीताकी अग्नि परीक्षा, विभीषणका पक्षत्याग, विभीषणका राज्याभिषेक, युद्ध, रावणवध, शत्रुजययात्रा, मोक्षप्राप्ति, सपत्नी-द्वेषके कारण सीता-त्याग, सीता द्वारा दीक्षाग्रहण आदि रामायणकी प्रमुख घटनाएँ । · कृष्णचन्द्र-रुक्मिणी-विवाह, कंसवध, प्रद्युम्न-वियोग, मथुरानिवास, प्रद्युम्न द्वारा उषाहरण, जरासन्धका आक्रमण, कालियदमन, द्वारिकादहन, शरीरत्याग, बलभद्रका कृष्णके शवको उठाकर घूमना, दीक्षाग्रहण, शिशुपाल एवं जरासन्धका वध । इसके साथ ही कृष्ण एवं नेमिनाथका पाण्डवोंके साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होनेके कारण पाण्डवजन्म, द्रौपदीस्वयंवर, चूत, चीरहरण, वनवास, गुप्तवास, कीचकवध, अभिमन्युका पराक्रम, महाभारत-युद्ध एवं दुःशासन, द्रोण, भीष्म आदिका वध आदि महाभारतकी प्रमुख घटनाओंका उल्लेख भी काव्यमें हुआ है । __कथानकके प्रवाहकी ओर कविका ध्यान नहीं है। वस्तुतः काव्यका कथानक नगण्य है। चरितनायकोंके जीवनके कतिपय प्रसंगोंको प्रस्तुत करना ही कविको अभीष्ट है। इन घटनाओंके विनियोगमें भी कविका ध्येय अपनी विद्वत्ता तथा कवित्व शक्तिको बघारना रहा है। अतः काव्यमें वर्णित घटनाओंका अनुक्रम अस्तव्यस्त हो गया है। विशेषतः, रामके जीवनसे सम्बन्धित घटनाओंमें क्रमबद्धताका अभाव है। उदाहरणार्थ रामके किष्किन्धा जानेका उल्लेख पहले हुआ है, उनके अनुयायियोंके अयोध्या लौटनेकी चर्चा बाद में। सीता स्वयंवर तथा वनगमनसे पूर्व सीताहरण तथा रावणवधका निरूपण करना हास्यस्पद है । इसी प्रकार हनुमानके दौत्यके पश्चात् जटायुवध तथा धनुभंगका उल्लेख किया जाना कविके प्रमादका द्योतक है। काव्यमें रामकथाके जैन रूपान्तरका प्रतिपादन हुआ है। फलतः रामका एकपत्नीत्वका आदर्श यहाँ ३०० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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