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आदर्श और यथार्थ का मिश्रण
राजस्थानी बातों में अनेक पात्रोंके चरित्रमें आदर्श और यथार्थका मिश्रण प्रकट हुआ है। ऐसे पात्रों कुछ विशेष गुण हैं तो कुछ मानवीय दुर्बलताएँ भी हैं। उदाहरण देखिए
(१) राज बीजकी बात में लाखाका भानजा राखायच अपने मामाके पास रहता है और वहाँ उसका पूरा सम्मान है । परन्तु राखायच गुप्त रूपसे घोड़ेपर चढ़कर मूलराजके पास जाता है और उसे लाखापर आक्रमण करने का अवसर बतला देता है । वह अपने मामा लाखासे अपने पिता की मृत्युका बदला लेना चाहता है । परन्तु जब मूलराजकी सेना आक्रमण करती है तो राखायच लाखाके पक्षमें लड़ता हुआ प्राण त्याग देता है । इस प्रकार वह लाखाके अन्तका स्वयं कारण बनकर उसके साथ ही अपना जीवन दे देता है। राखायच जानबूझ कर धोखा देनेपर भी अन्तमें स्वामिभक्ति प्रकट करता है।"
(२) राजा नरसिंहकी बासमें एक घोड़े के सम्बन्धमें विवाद हो जानेके कारण हरा अजमेर छोड़कर पठानों की सेवामें चला जाता है । जब पठान अजमेरपर आक्रमण करनेकी सोचते हैं तो हरा सारी सूचना गुप्त रूपसे अजमेर भेज देता है । इसी प्रकार वह चढ़ाई के समय भी अजमेर के गोड़ोंके लिए उचित परामर्श छिनकर पहुँचाता रहता है। इतना होनेपर भी जब अन्तमें युद्ध होता है तो हरा पठानोंके पक्ष में लड़ते हुए प्राण त्याग करता है। गौड़ विजयी होकर इराका संस्कार करते हैं। इस प्रकार हरा अपने स्वामीको धोखा देते हुए भी उसके लिए प्राण त्याग देता है, जो ध्यान देने योग्य है । " (३) देपाल बंघकी बाटमें मुलतानका बादशाह देपालसे पराजित होकर उसको अपनी बेटी विवाह में दे देता है । फिर बादशाह अपनी बेटीको गुप्त रूपसे अपने पक्ष में करके उसके द्वारा यह मालूम करवा लेता है कि देपाल किस प्रकार मारा जा सकता है । देपालकी पत्नी अपने पतिको बातों में बहला कर उससे यह भेद पूछ लेती है। अन्तमें जब देपाल युद्धमें मारा जाता है तो बादशाह की बेटी उसके साथ सती होती है। इस प्रकार वह पहिले पतिद्रोह और फिर पतिभक्ति प्रकट करती है।
चरित्र - विकास
राजस्थानी बातों में पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ प्रायः स्थिर है और उनका विकास कम ही दृष्टिगोचर होता है । फिर भी कई पात्रों की मनोदशा में परिस्थितिवश विशेष परिवर्तन देखा जाता है । यही उनका चारित्रिक विकास है। उदाहरण देखिए
(१) उमादे भटियाणी की बात में - रानी उमादे अपने पतिको एक दासीकी ओर आकृष्ट देखकर रूठ जाती है और फिर उसे मनानेके लिए अनेक प्रयत्न किए जानेपर भी वह नहीं मानती । सर्वसाधारण में उसका नाम ही 'रूठी राणी' के रूपमें प्रसिद्ध है । अन्तमें जब उसके पति राव मालदेवका देहान्त हो जाता है तो वह सती होती है और अपने जीवनका अनुभव संदेश रूप में प्रकट करती है कि उसकी तरह कोई स्त्री संसारमें 'मान' (रूसणो ) न करे । इस प्रकार अत्यन्त आग्रहके साथ जन्म भर 'मान' पर डटी रहनेवाली उमादे अन्तमें उसकी निस्सारताके प्रति ग्लानि प्रकट करके पति के साथ ही अपनी जीवन लीला भी समाप्त कर लेती है।*
१. राज बीज री बात (हस्तप्रति, अ० जै० ग्रं० बीकानेर ) ।
२. बात से झूमखो, दूजो ।
३. वातां रो झूमखो, जो
४. राजस्थानी बातां भाग १ ( श्री नरोत्तमदास स्वामी)
२५२ अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ
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