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परिवार के सिर तक देने को तैयार होता है । इसपर उसे प्रचुर सम्पत्ति और सम्मान मिलता है । दानी वह ऐसा है कि अपना सिर तक काटकर कंकाली भाटणी को सहर्ष भेंट कर देता है । इस दानके आगे सिद्धराज भी हार मान जाता है। कंकाली शक्तिस्वरूपा है। वह जगदेव को पुनर्जीवित कर देती है। इस प्रकार जगदेव पॅवार स्वामिभक्ति और दानशीलताका उज्ज्वल आदर्श प्रकट करता है।"
(२) पाबूजी राठौड़की बातमें पाबूजी देवलदे नामक चारगीसे उसकी काल्मी नामक घोड़ी इस शर्तपर लेते हैं कि जब कभी उसके धन (गाय आदि) पर संकट उपस्थित होगा तो वे अपना सिर देकर भी उसकी रक्षा करेंगे । कालान्तर में पाबूजीका विवाह निश्चित होता है और जब वे वर रूपमें फेरे ( भाँवर) लेते हैं, तब उन्हें देवलदेपर आए हुए संकटकी सूचना मिलती है । वे वैवाहिक कार्य बीचमें ही छोड़ देते हैं। और अपना वचन निभाने के लिए शत्रुओंसे युद्ध करते हुए काम आते हैं। इस प्रकार पाबूजी प्रणवीरताके आदर्श हैं।"
(३) राव रणमल्लको बातमें असा संखला सींघल राजपूतोंके साथ घाड़े (लूट) के लिए जाता - हैं और वे इंदा राजपूतोंके बाहलये गाँवसी सार्डे (कॅटनियाँ) लेकर वापिस लौटने लगते हैं। इसी समय पीछेसे इन्दा सरदार आते हैं। सींघल भाग छुटते हैं परन्तु अखा सांखला वहीं डट जाता है । वह युद्धमें इन्दों के हाथ मारा जाता है परन्तु मरते समय कहता है कि मेरा स्वामी रणमल्ल इसका बदला लेगा । जब यह खबर रणमल्ल के पास पहुँचती है तो वह तत्काल सब काम छोड़कर अपने थोड़ेसे योद्धाओं सहित इन्दोंके गाँव आता है और उनकी घोड़ियाँ लेकर चलता बनता है। इसपर इन्दा सरदार सेना सहित पीछा करते हैं । युद्ध होता है, जिसमें इन्दोंकी पराजय होती है । इस प्रकार रणमल्ल बदला लेने तथा सेवकसहानुभूतिका आदर्श उपस्थित करता है।
(४) पताई रावलकी बातमें - गुजरातका बादशाह महमूद बंगड़ा उसके किले पावागढ़का घेरा ता है और पताई बड़ी दृढ़तापूर्वक उसकी रक्षा करता है । अन्त में उसे धोखा होता है और गढ़का पतन हो जाता है । पताई और उसके सब साथी युद्ध करते हुए प्राण त्याग देते हैं। किले में रानियाँ जोहर व्रतका अनुष्ठान करके भस्म हो जाती हैं । इतना होनेपर बादशाह किलेमें प्रवेश कर पाता है । इस प्रकार पताई रावल जन्मभूमि-प्रेम और सर्वस्व बलिदानका आदर्श उपस्थित करता है ।
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(५) सयणी चारणीकी बातमें - वीजाणंद चारण सयणीके प्रति आकर्षित होकर उसके साथ विवाहका प्रस्ताव रखता है परन्तु इस विवाह हेतु एक शर्त आती है, जिसकी ६ मासमें पूर्ति होनी आवश्यक है। वीजाणंद शतंकी पूर्ति हेतु पर्यटन करता है। जब वह काम पूरा करके लौटता है तो ६ मास पूरे हो चुकते हैं और सयणी हिमालयपर गलनेके लिए घर से निकल जाती है। बीजाणंद उसके पीछे जाता है परन्तु सणी हिमालयपर पहुँचकर गल चुकती है । ऐसी स्थिति में बीजाणंद भी वहीं गल जाता है । इस प्रकार बीजानंद प्रेमका आदर्श उपस्थित करता है । ५
१. राजस्थानी बातां (श्री सूर्यकरण पारीक ) २. वही।
३. वरदा ( ७।३)
४. राजस्थानी वातां, भाग १ ( श्रीनरोत्तमदास स्वामी)
५. वही ।
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भाषा और साहित्य : २४७
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