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________________ छ: पुत्र थे। किशनाजी उनमेंसे तीसरे थे। रघुबरजस प्रकाश नामक इनके प्रसिद्ध ग्रन्थमें इन्होंने अपने वंशका परिचय दिया है। इनका प्रथम ग्रन्थ 'भीमविलास' है, जिसे कविने महाराणाकी आज्ञासे वि० सं० १८७९ में लिखा ।२ इसमें महाराणा भीमसिंहका चरित्र तथा उनके शासन प्रबन्धका वर्णन है। दूसरा ग्रन्थ 'रघुबरजसप्रकास' है। रीति साहित्यके इस प्रसिद्ध ग्रन्थमें संस्कृत व डिंगल भाषाके प्रमुख छन्दोंके लक्षण भगवान् रामके यशोगानके साथ समझाये हैं। यह ग्रन्थ वि० सं० १८८१ में सम्पूर्ण हुआ। किशनाजीने तत्कालीन इतिहासज्ञ कर्नल टॉडको ऐतिहासिक सामग्री संगृहीत करने में बड़ी मदद की थी। (५९) ऋषि रायचन्द्र-ये जैनश्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदायके तीसरे आचार्य तथा महाराणा भीमसिंह (वि० सं० १८३४-८५) व महाराणा जवानसिंह (वि० सं० १८८५-१८९५) के समकालीन थे। इनका जन्म चैत्र कृष्ण १२ वि० सं० १८४७ में तथा स्वर्गवास माघ कृष्ण १४ वि० सं० १९०८ में हुआ। गोगुन्दासे तीन मील दूर बड़ी रावल्या इनका जन्म स्थान था। पिताका नाम चतुरोजी व माताका नाम कुशलांजी था। इनका लिखा हुआ अधिकांश साहित्य तेरापंथी सम्प्रदायके वर्तमान आचार्य व उनके आज्ञानुवर्ती साधुओंके पास है जो अभी तक अप्रकाशित है।४ (६०) दोन दरवेश-लोहार जातिके दीनजी एकलिंगजी (कैलाशपुरी) के रहने वाले थे। इनके गुरुका नाम बालजी था जो गिरनारके रहनेवाले थे।५ इनका रचनाकाल वि० सं० १८५२ के आसपास है तथा इनकी बनाई हुई कक्का बत्तीसी, चेतावण, दीन प्रकाश, नीसांणी, भरमतोड़ तथा राजचेतावण नामक रचनाएँ उपलब्ध होती हैं।६ समस्त रचनाओंका उद्देश्य ज्ञानोपदेश है। महाराणा भीमसिंह इनका बहुत आदर करते थे और जब तक महाराणा जीवित रहे ये मेवाड़ में ही रहे। महाराणाके स्वर्गवासके बाद ये कोटा चले गये, जहाँ चम्बल नदी में स्नान करते समय बि० सं० १८९० के आस-पास देहान्त हो गया। इनकी रचनाओंमें इनका नाम दीन दरवेश मिलता है। (६१) ऋषि चौथमल-इन्होंने वि० सं० १८६४ में कार्तिक शुक्ला १३ को देवगढ़ में रहते हुए 'ऋषिदत्ता चौपई की रचना की। इस चौपईमें कुल ५८ ढाले हैं। इस उपदेशात्मक रचना में नारोके आदर्श चरित्रको चित्रित किया गया है। (६२) कवि रोड़--जैन मतावलम्बी कवि रोड़ चित्तौड़ जिले में स्थित सावा गाँवके रहने वाले थे । इनके तिता मलधार गोत्रके गिरिसिंह (डूंगरसिंह) थे। इनका लिखा हुआ 'रीषबदेव छन्द'' नामक काव्य मिलता है। इस काव्यमें महाराणा भीमसिंहके कालमें मराठों द्वारा ऋषभदेव (केशरियाजी) के मन्दिरको १. सीताराम लालस द्वारा सम्पादित रघुबरजस प्रकास, पृ० ३४० । २. डॉ. मोतीलाल मेनारिया-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० २७७ । ३. डॉ० जगदीश प्रसाद श्रीवास्तव-डिंगल साहित्य, पृ० ४१ । ४. इनका कुछ फटकर काव्य लेखकके निजी संग्रहमें है। ५. डॉ. मोतीलाल मेनारिया-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० २७८ । ६. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, शा० का० उदयपुर, ग्रन्थ सं० १९६, २०८, २१६, २२२, २४०, २५२। ७. डॉ० ब्रजमोहन जावलिया-कवि रोड़ कृत रीषबदेवजों रो छन्द, शोध पत्रिका वर्ष १४ अंक १। ८. यह प्रति डॉ० ब्रजमोहन जावलिया उदयपुरके निजी संग्रहमें है। भाषा और साहित्य : २४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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