________________
(४६) उदयराज - डॉ० मोतीलाल मेनारियाने इन्हें मेवाड़ प्रदेशका जैन यति बतलाया है ।" इनका रचनाकाल महाराणा जयसिंहका शासन काल है । डॉ० मेनारियाने इनका एक छप्पय अपनी पुस्तक में उद्धृत किया है ।
(४७) राव दयालदास — ये राशमी (चित्तौड़गढ़) के पास गलन्ड परगनेके रहनेवाले थे । फूलेऱ्या मालियों के यहाँ पर इनकी यजमानी थी। इनका बनाया हुआ 'राणा रासो' नामक ग्रन्थ साहित्य संस्थान के संग्रहालय में उपलब्ध है । इसमें मेवाड़के आदिकालसे लेकर महाराणा कर्णसिंह (वि० सं० १६७६-१६८४) राज्याभिषेक तक शासकों का वर्णन है । कर्णसिंहके बाद महाराणा जगतसिंह, राजसिंह और जयसिंहका भी इसमें नामोल्लेख है किन्तु इनका वर्णन नहीं किया गया है । इस कारण इसका रचनाकाल संदिग्ध है । ग्रन्थमें कुल ९११ छन्द हैं । साहित्य संस्थान द्वारा इसका सम्पादन किया जा रहा है ।
(४८) दौलतविजय - खुमाण रासोके रचयिता दौलतविजय तपागच्छीय जैनसाधु शान्तिविजय के शिष्य थे । दीक्षासे पूर्व इनका नाम दलपत था । अद्यावधि 'खुमाण रासो' की एक ही प्रति मिली है जो भंडारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूनाके संग्रहालय में सुरक्षित है । इसमें खुमाण उपाधि से विभूषित मेवाड़के महाराणाओं का वर्णन बापा रावल (वि० सं० ७९१ ) से लेकर महाराणा राजसिंह तक दोहा, सोरठा, कवित्त आदि छन्दोंमें हुआ है । डॉ० कृष्णचन्द्र श्रोत्रियने इसका सम्पादन किया है । इसका रचनाकाल वि० सं० १७६७ से १७९० के मध्य किसी समय है । ४
(४९) बारहठ चतुर्भुज सौदा -ये महाराणा अमरसिंह द्वितीय ( १७५५ - १७६७ ) के समकालीन व आश्रित चारण कवि थे । महाराणाने इन्हें बारहठकी उपाधि से विभूषित किया था, इस सम्बन्धका इनका ही बनाया हुआ एक गीत" मिलता है । अन्य फुटकर गीत भी साहित्य संस्थान संग्रहालय में हैं ।
(५०) यति खेता - महाराणा अमरसिंह द्वितीयके राज्यकालमें इन्होंने उदयपुर में रहते हुए 'उदयपुर गजल' की रचना की । इसमें उदयपुर नगर व बाहरके दर्शनीय स्थानोंका सरस वर्णन है । ये खरतरगच्छीय दयावल्लभके शिष्य थे । 'चित्तौड़ गजल' ६ नामसे एक और रचना भी मिलती है ।
(५१) करणीदान — कविया शाखाके चारण करणीदान शूलवाड़ा गाँव (मेवाड़) के रहनेवाले थे । गरीबी से तंग आकर ये शाहपुराके शासक उम्मेदसिंह (वि० सं० १७८६-१८२५ ) के पास आये और अपनी कवितासे उन्हें खुश किया, इस पर उम्मेदसिंहने इनके घरपर आठ सौ रुपये भेजे । यहाँसे करणीदान डूंगरपुरके शासक शिवसिंह (वि० सं० १७८७-१८४२) के पास गये । वहाँ शिवसिंहने इनकी कवित्व शक्ति से प्रभावित हो लाख पसाव दिया। इसके बाद ये महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय (वि० सं० १७६७ - १७९०) के आश्रयमें चले आये । महाराणाने इन्हें लाख पसाव देकर सम्मानित किया तथा इनकी माताजीको मथुरा, वृन्दावन
१. डॉ० मोतीलाल मेनारिया - राजस्थानी साहित्यकी रूपरेखा, पृ० २२९ । २. वही, पृ० २२९ ॥
३. हस्तलिखित प्रति सं० ८४ ।
४. (i) नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ४४ अंक ४, अगरचन्द नाहटाका लेख । (ii) भँवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित पद्मिनी चरित्र चौपई, पृष्ठ ४१ । ५. प्राचीन राजस्थानी गीत, भाग - ३ (साहित्य संस्थान, प्रकाशन), पृष्ठ ७३-७४ । ६. यह गजल डॉ० ब्रजमोहन जावलिया, उदयपुर के निजी संग्रह में हैं ।
३१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
भाषा और साहित्य : २४१
www.jainelibrary.org