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( खण्ड २, कड़ी १२५-२९ )
'तुर्क घोड़े सवार होकर आक्रमण करते हुए गढ (किले) की ओर आते हैं । सामने से धनुषमेंसे तीर छुट रहे है और तोपचीलोग (नलीयार, सं० नलिकाकार) तोप ('निरता') ' खींचते हुए जा रहे हैं । (किलेमें के लोग ) ऊपरसे बड़े-बड़े पत्थर फेंक रहे हैं और इन गिरते हुए पत्थरोंसे चोट पहुंच रही है । तोपमें ('नालि') डाले हुए अग्निवर्णके गोले उड़ते आ रहे हैं वे (किलेकी) दीवारको तोड़कर चूर-चूर कर देते हैं और उनमें से मोटीमोटी ज्वालायें निकलती हैं । सूत्रधार लोग निशाना साधकर मगरबी यन्त्रमेंसे - पत्थर फेंकनेवाले यन्त्रों में से (पत्थरके ) गोले फेंक रहे हैं । ये जहाँ भी गिरते हैं वहाँके पेड़ पौधोंको नष्ट कर देते हैं और संहार करते हैं। बड़े फटाके ('भटकीय ') छूटते हैं और 'नफात' (इस नामका बारूद खाना) प्रज्वलित हो जाता है । यह विद्युतवत् चमकता हुआ दिखाई देता है मानो उल्कापात ही हो रहा है ।
घोर मध्य रात्रि में किलेपरसे कटक - छावणीमें हवाइ आते रहनेका खण्ड २ कड़ी ११३में है । 'कान्हड़देप्रबन्ध' के द्वितीय खण्डकी भटाउलि ( पृ० १५८-५९) में राजाधिकारियोंकी एक छोटी-सी सूची
आती है
पंss त्रास भटकियां बिछूटइ, नइ धूधइ निफात वीज तणि परि झलकती दीसइ, जेहबी ऊलकापात,
आमात्य प्रधान सामन्त मांडलिक, मुकुट बर्द्धन श्री गरणा वइगरणा धर्मादिकरणा मसाहणी टावरी बारहीया पुरुष वइडा छइ,
पाठान्तरमें 'पटवारी, कोठारी' और 'परघु' ये कर्मचारीगण हैं । इनके अतिरिक्त 'खेलहुत' - शेलत ( प्रथम खण्डको भाउलि, पृ० ५१, खण्ड ४ कड़ी ४० ) और नगर - तलार, पौलिया-द्वाररक्षक, सूआर
१. प्राचीन गुजराती साहित्यमें अन्यत्र कहीं भी इस 'निरता' पाठ (पाठान्तर 'नरता' ) शब्द मेरे देखने में नहीं आया किन्तु यहाँ संदर्भ देखते हुए उसका अर्थ 'तोप' ही प्रतीत होता है । १२७ वीं कड़ी में 'नालि' का अर्थ 'तोप' है इसमें तो शंका नहीं । 'आकाश भैरवाकल्प' में तथा रुद्र कविके 'राष्ट्रीयवंश महाकाव्य ' ( ई०सं० १५०६) में तोपके लिये 'नालिकास्त्र' और 'नालिका' शब्दों का प्रयोग हुआ है । श्री अगरचन्द नाहट को मिले हुए लगभग सत्रहवीं शताब्दी के 'कुतूहलम्' नामक एक राजस्थानी वर्णक-संग्रह में वर्षाक वर्णनमें 'मेह गाजइ, आणं नालगोला वाजइ' ( राजस्थान भारती पु० १ पृ० ४३ ) इस प्रकारसे हैं वहाँ भी 'नाल' शब्दका अर्थ तोप है।
२. जालौर के किलेको शस्त्रसज्जता के वर्णनपरसे विदित होता है कि ऐसे गोलोंका बहुत बड़ा संग्रह किले पर
रहता था
जाणू पार ( खण्ड ४, कड़ी ३५ ) संग्रहीत ढेर दिखाई देता है ।
गोला यंत्र मगरवी तणा, आगइ गढ उवरि छइ घणा ऊपरि अत्र तणा कोठार, व्यापारीया न राजस्थानके कतिपय किलोंपर अद्यापि पत्थरोंके ऐसे गोलोंका ३. 'निफात' शब्द सं० निपातका तद्भव नही है अपितु यह एक व्यास रचित 'हंसवती विक्रम चरित्र विवाह' ( ई०स० १५६० ) में है । हवाइ छूटइ अनइ नफात, 'जिस पूरण गाजइ वरसात' ( कड़ी ६५३ ) इसमें, इस प्रकारका
प्रकारका बारूदघर है । यह मधुसूदन बरतके जुलूसके वर्णनपरसे सिद्ध होता
निर्देश है ।
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भाषा और साहित्य : २२१
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