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________________ चरित या हरिवंश) की रचना पउमचरियसे भी पहले कर ली थी।" वे आगे चलकर लिखते हैं कि उद्योतन सूरिके समकालीन अपभ्रंश भाषाके महाकवि स्वयम्भू (लगभग ७७५-७९५) ने भी विमलार्यका एक प्राचीन कविके रूपमें स्मरण किया है। रविषेणका भी स्मरण किया है किन्तु विमलके पश्चाद् सम्भव है कि जिस प्रकार स्वयम्भूकी रामायण विमलके पउमचरियंपर आधारित है, उसी प्रकार उनका "रिट्ठणेमिचरिउ" (हरिवंश) भी विमलके हरिवंशपर आधारित हो और क्या आश्चर्य कि पुन्नाटके जिनसेनके हरिवंज्ञ (७८३ ई०) का आधार भी विमलार्यका ही ग्रन्थ हो।" डॉ० ज्योतिप्रसाद जैनकी उक्त वकालतका खण्डन पउमचरियंकी अंग्रेजी प्रस्तावनाके लेखक डॉ. व्ही० एम० कुलकर्णीने अच्छी तरह किया है। वे लिखते हैं कि "The word सीरि in the verse "सोउणं पुन्वगए नारायणसीरिचरियाइ" is misunderstood by Dr. J. P. Jain. The word off is an equivalent of Sanskrit af and stands for Baladeva or Haladhara, the elder brother of Narayana (or Vasudeva). Thus in the present content Narayana and Siri stand for Laksmana and Rama. It is quite clear that he has entirely misunderstood the whole point. Here Vimala Suri points only to the trustworthiness of the source of his Paumacariya. His statement that Svayambhu pays? homage first to विमलसूरि (as an ancient poet) and then to रविषेण is open to doubt. The name fasafe is nowhere mentioned in the passage concerned. If he has in mind the identity of विमलसूरि and कीर्तिधर the अनुत्तरवाग्मिन् he should have made the point explicit and given his reasons for the identification" स्व० ५० प्रेमीने जिस समय (सन् १९४२ के लगभग) विमलसूरिके हरिवंश कर्तृत्वकी सम्भावना जिस उपरिनिर्दिष्ट गाथाके आधारसे की थी उन दिनों मुनि जिनविजयजी द्वारा कुवलयमालाके सम्पादन और प्रकाशनका उपक्रम चल रहा था। मुनिजीके समक्ष सन् १९४२ के मध्य तक कुवलयमालाकी कागजपर लिखी एकमात्र हस्तलिखित प्रति थी जिसका समय १५वीं शताब्दीके लगभग माना गया है। उस प्रतिमें प्रस्तावनाकी अनेक गाथाओं (२७-४४ तक) में उद्योतनसूरिने अनेक जैन (श्वेता०-दिग०) और जैनेतर कवियों और उनकी कृतियोंका आदर पूर्वक स्मरण किया है। सन् १९४२ से पूर्व उनमेंसे कुछ कवियों और रचनाओंपर विद्वानोंने विचार भी किया है। यहाँ वह सब देना सम्भव नहीं। केवल उन दो गाथाओंपर विचार किया जावेगा जिनसे कि विमलसूरिके हरिवंश कर्तृत्वकी सम्भावना की गई है। एक गाथा, जिसकी संख्या ३६ बतलायी गई है, द्वारा कहा गया है कि "विमलांकने जैसा विमल अर्थ प्राप्त किया वैसा कौन पायेगा, उसकी प्राकृत रससे सरस मानों अमृतमयी हो। इसमें विमलांक पद द्वारा पउमचरियंका स्मरण प्रतीत होता है।' इसके बादकी गाथामें (तिपुरिसचरियपसिद्धो सुपुरुषचरिएण पायडो लोए । सो जयइ देवगुत्तो वंसे गुत्ताण रायरिसी) राजर्षि देवगुप्तको सुपुरुषचरितके कर्ताके रूपमें स्मरण किया गया है। इन देवगुप्तका कुवलयमालामें दो स्थानों पर उल्लेख किया गया है और इन्हें हण नरेश तोरमाणका गुरु माना गया है। इसके बाद वह १. डॉ० हरि० चु० भयाणीने स्वयम्भूका समय दशवीं शताब्दी बताया है। २. पुणु पहवें संसाराराएं, कित्तिहरेण अणुत्तरवाएं। पुणु रविसेणायरियपसाएं, बुहिए अवगाहिय कडुराए ॥ (पउमचरिउ, १५८) इतिहास और पुरातत्त्व । १७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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