SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 649
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंशका एक अचर्चित चरितकाव्य डॉ० देवेन्द्रकुमार शास्त्री अपभ्रंशके चरितकाव्योंकी सुदीर्घ परम्परा मिलती है, जिसका विकास प्राकृत के विकसनशील पौराणिक काव्योंसे हआ जान पड़ता है। इन चरितकाव्योंमें महापुरुषके जीवन-विकासका वर्णन निबद्ध मिलता है। नियोजित घटनाओंमें क्रमबद्धता और पौराणिक परम्पराका यथेष्ट सन्निवेश है। इसलिए लगभग सभी चरितकाव्योंका शिल्प समान है। आकारकी दृष्टिसे ही नहीं साहित्यिक दृष्टिसे भी आलोच्य रचना महान् है । सम्पूर्ण काव्य १३ सन्धियोंमें निबद्ध है। और इसके रचनाकार है-महिन्दू । उनकी इस कृतिका नाम हैसांतिणाहचरिउ । अपभ्रशके इस अचचित चरितकाव्यका सर्वप्रथम परिचय पं० परमानन्दजी शास्त्रीने जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रहमें निम्नलिखित शब्दोंमें दिया था ८७वीं प्रशस्ति सांतिणाहचरिउकी है, जिसके कर्ता कवि महिन्दु या महाचन्द्र है । प्रस्तुत ग्रन्थमें १३ परिच्छेद हैं जिनकी आनुमानिक श्लोक संख्या पाँच हजारके लगभग है, जिनमें जैनियोंके सोलहवें तीर्थकर शान्तिनाथ चक्रवर्तीका चरित्र दिया हुआ है । अभी तक यह चरितकाव्य हस्तलिखित रूपमें एक अप्रकाशित रचना है। इसकी एकमात्र प्रति श्री दि० जैन सरस्वती भण्डार, धर्मपुरा, दिल्ली में उपलब्ध है । यह हस्तलिखित १५३ पत्रोंकी रचना है। इसका अन्तरंग परिचय इस प्रकार है सर्वप्रथम जिन-नमस्कारसे काव्य प्रारम्भ होता है । नमस्कारमें चौबीसों तीर्थंकरोंको बन्दन किया गया है। तदनन्तर सरस्वतीकी वन्दना की गयी है। आत्म-विनय प्रकाशनके साथ ही कवि अपनी रचनाके सम्बन्धमें प्रकाश डालता हुआ कहता है कि मैंने कवि पुष्पदन्तके महापुराणके अन्तर्गत श्री शान्तिनाथ तीर्थकरका यह चरित सुनकर रचना की है। कइ पुप्फयंत सिरि मह पुराणु, तह मज्झि णिसिउमइ गुणणिहाणु । चरियउ सिरि संतिहु तित्थणाहु ।, अह णिविडु रइउ गुणगण अथाहु । यही नहीं, कवि आत्म-विनय प्रकट करता हुआ कहता है कि काब्यके रूपमें जो कुछ कह रहा हूँ वह तुच्छ बुद्धिसे । वास्तवमें खलजनके समान यह अज्ञानका विस्तार है । उसके ही शब्दोंमें बोलिज्जइ कव्वंकिय मएण, महु तुच्छबुद्धि खलयण अएण । तथा गंभीरबुद्धि दुल्लहु ण होइ, सो तुच्छ बुद्धि सुलहउ ण जोइ । बुहयणहु जि एहु सहाउ हुंति, सव्वह हिययत्तणु चितवंति । १. पं० परमानन्द जैन शास्त्री : जैन-ग्रन्थ प्रशस्ति-संग्रह, दिल्ली, १९६३, पृ ० १२३ १६० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy