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________________ सम्पूर्णरूपसे विद्यमान है। वर्णनकी कलामें कविको लोकातीत सामर्थ्य प्राप्त है। अच्युतरायके शारीरिक सौन्दर्यका, अंग-प्रत्यंगका, जितना आलंकारिक तथा विस्तृत विवरण तिरुमलाम्बाने किया है, उतना शायद ही किसी स्त्री कविकी लेखनीसे प्रसूत हो । लम्बे-लम्बे समास, शब्दोंका विपुल विन्यास, नवीन अर्थों की कल्पनायें समस्त विशेषता इस चम्पको महत्त्वशाली बना रही है। गद्यके सौन्दर्यका परिचय तो काव्यके अध्ययनसे ही प्राप्य है। पद्योंका अलंकार चमत्कार इन उद्धरणोंकी सहायतासे सहज ही अनुमेय है। तालाबमें स्नान करनेवाली रानीकी उपमा मेघके भीतर कौंधनेवाली बिजलीके साथ कितनी उपयुक्त है महः सरोवारिषु केलिलोला निमज्जनोन्मज्जनमाचरन्ती । बलाहकान्तःपरिदृश्यमाना सौदामिनीवाजनि चञ्चलाक्षी ।। (श्लोक १५१) यह मालोपमा भी अपनी सुन्दरताके लिए श्लाघनीय है दुग्धाम्बुराशिलहरीव तुषारभानुम् अर्थं नवीनमनघा सुकवेरिवोक्तिः। प्रत्यङ्मुखस्य यमिनः प्रतिभेव बोधं प्रासूत भाग्यमहितं सुतमोम्बमाम्बा ॥ (श्लोक ६०) इस कमनीय कल्पनाका सौन्दर्य निःसन्देह प्रशंसाका पात्र है। सन्ध्याका समय है । आकाश बहुमूल्य नीलमका केसर भरा बाक्स है। सूर्य ही जिसका माणिक्यका ढक्कन है । बाल चन्द्रमाने अपनी चपलतावश उस ढक्कनको हटा दिया है जिससे केसर सायं सन्ध्याके रूपमें चारों ओर छिटका हुआ बिखर गया है। सन्ध्याके स्वरूपका बोधक यह रूपक कितना सुन्दर तथा कितना नवीन निरीक्षणसे प्रसूत है अरविन्दबन्धु-कुरुविन्द-पिधाने चपलेन बालशशिना ब्यपनीते । घुसृणं वियन्मघवनीलकरण्डात् गलितं यथा घनमदृश्यत सन्ध्या । (श्लोक १५७) दूसरा ऐतिहासिक चम्प आनन्दरंगविजय चम्पू ऐतिहासिक दृष्टिसे सातिशय महत्त्वशाली है। इसके प्रणेता श्रीनिवास कवि हैं जिन्होंने अपने आश्रयदाता आनन्दरंग पिल्लैके विषयमें यह महनीय चम्पू लिखा है। आनन्दरंग पिल्लै (१७०९-१७६१ ई०) १८वीं शतीमें एक विशिष्ट राजनयिक, व्यापारी तथा पाण्डिचेरोके फ्रांसीसी गवर्नर प्रसिद्ध डुप्लेके भारतीय कारिन्दा थे जिन्होंने फ्रान्सके शासनको सुदृढ़ तथा विस्तृत बनाने में विशेष योग दिया था। ये साहित्यके भी उपासक थे। इनके द्वारा निर्मित तथा तमिल भाषामें निबद्ध डायरी (दैनन्दिनी) का अनुवाद मद्रास शासनकी ओरसे बारह जिल्दोंमें प्रकाशित हुआ है । यह दैनन्दिनी प्रतिदिनकी घटनाओंका निर्देश करती है जो उस कालकी सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक दशा जाननेके लिए नितान्त उपयोगी है। इन्हींके जीवनचरितका रमणीय वर्णन श्रीनिवास कविने किया है। ग्रन्थके अन्तमें उन्होंने अपने पिता गंगाधरकी प्रशस्ति एक पद्यमें दी है। आनन्दरंगविजय चम्पू आठ परिच्छेदों (स्तवकों) में विभक्त है। इसकी रचनाका समय ४८५४ १. डॉ. राघवनके सम्पादकत्वमें मद्राससे प्रकाशित १९४८ । २ 'डायरी ऑफ आनन्दरंग पिल्लै के नामसे १२ जिल्दोंमें यह ग्रन्थ मद्रास शासन द्वारा प्रकाशित है (१९०४-१९२८)। इतिहास और पुरातत्त्व : १४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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