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उमाकान्त शाहने अपने बनारस ओरियन्टल कॉन्फेन्सके कलाविभाग के अध्यक्ष पदके व्याख्यान में कुछ वर्ष पहले जैसलमेरकी वि०सं० १९१७ में लिखी हुई ओघनियुक्ति की ताड़पत्रीय प्रतिके चित्रोंको पेश करके बताया था कि इन चित्रोंकी शैली वह मारु- गुर्जर ( जैन, वेस्टर्न इन्डीअन राजस्थानी, अपभ्रंश, गुजराती आदि नामोंसे पुकारी जाती ) शैली नहीं है और वह शैली गुर्जर-प्रतिहारोंके समयमें सारे पश्चिम भारत में जो प्रचलित शैली थी उसका आखिरी स्वरूप है ।" यह बात इन चित्रोंसे स्पष्ट हो जाती है । क्योंकि, उस जैसलमेर के ओघनियुक्तिके चित्रोंकी शैली और चित्र १ से ६ की शैली स्पष्ट रूपसे भिन्न 1
१. देखो, उमाकान्त शाह, प्रोग्रेस ऑफ स्टडि इन फाइन आट्स एन्ड टेक्निकल साइन्सीझ, जर्नल ऑफ दि ओरिएन्टल इन्स्टीट्यूट, बड़ोदा, वॉ० १८, अंक १-२ का परिशिष्ट, पृ० १ ३६, विशेषतः पृ० १९, और प्लेट्स् ।
१० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ
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