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________________ कोषाध्यक्ष श्री लालचंद कोठारी संयोजक श्री हजारीमल बांठिया इनके अतिरिक्त अनेक विद्वानों, साहित्यकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, संसद-सदस्यों, नेताओं, पत्रसंपादकों तथा जाने-माने धनी-मानी महानुभावों ने सहर्ष समिति के संरक्षक बनना स्वीकार किया। इस अभिनंदनोत्सव समिति ने अभिनदन-ग्रंथ के लिए संपादक-मंडल का गठन किया जिसके सदस्य निम्नलिखित विद्वान् बनाये गयेअध्यक्ष-डा० दशरथ शर्मा-भूतपूर्व अध्यक्ष, इतिहास-विभाग जोधपुर विश्वविद्यालय तथा निदेशक राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या-प्रतिष्ठान (अब स्वर्गस्थ) सदस्य-डा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, कोल्हापुर डा० भोगीलाल सांडेसरा, बड़ोदा डा० रत्नचन्द्र अग्रवाल, जयपुर डा० कृष्णदत्त बाजपेयी, सागर डा० बी० एन० शर्मा, दिल्ली स्थानीय संपादक-प्रो० नरोत्तमदास स्वामी, बीकानेर डा० मनोहर शर्मा, बिसाऊ, बीकानेर प्रबंध-संपादक-श्री रामवल्लभ सोमाणी, जयपुर संयोजक-श्री हजारीमल बांठिया अभिनन्दन-ग्रन्थ के तैयार होने और छपने में बहुत अधिक समय लग गया। आवश्यक आर्थिक व्यवस्था करने और छपाई में विशेष विलंब हुआ। नाहटाजी की षष्ट्यब्द पूर्ति की तिथि आयी । बीकानेर में अभिनन्दन का आयोजन तो हआ पर ग्रन्थ समर्पित नहीं किया जा सका। निश्चय किया गया कि अभिनन्दन ग्रन्थ को दो भागों में प्रकाशित किया जाय और अभिनन्दन का उत्सव भी दो वार करके मनाया जाय । तदनुसार अप्रेल १९७६ में, जब अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रथम भाग का मुद्रण पूरा हो गया तो, अभिनन्दनोत्सव के प्रथम समारोह को नाहटाजी की जन्मभूमि और कर्मभूमि बीकानेर में मनाने का आयोजन किया गया। इस समारोह का विवरण इस द्वितीय भाग के परिशिष्ट में दे दिया गया है। अभिनन्दन ग्रंथ के दो भाग है-प्रथम भाग व्यक्तिगत हैं, उसमें जीवनी, आशीर्वाद, शुभकामनाएँ, संदेश श्रद्धांजलियाँ और संस्मरण दिये गये हैं। दूसरे भाग में नाहटाजी के सम्मान में लिखित विद्वानों के शोध-निबंधों का संकलन है। इस भाग के तीन खंड है-पहले खंड में पुरातत्त्व, इतिहास तथा कला संबंधी निबंध हैं, दूसरा खंड भाषा और साहित्य विषयक निबंधों का है और तीसरे में विविध विषयक संकीर्ण लेख हैं। प्रत्येक खंड में अपने अपने विषयों के धुरंधर विशेषज्ञ विद्वानों की रचनाएँ संकलित हुई हैं। अभिनन्दन-ग्रंथ के लिए संस्मरण और शोध-निबंध बड़ी संख्या में प्राप्त हए । आर्थिक स्थिति इस योग्य न थी कि सभी रचनाओं को अभिनन्दन ग्रन्थ में स्थान दिया जा सकता। यदि सब निबंधों को स्थान दिया जाता तो पृष्ठ-संख्या चार-पाँच हजार तक जा पहुँचती। अतः केवल कतिपय चुने हुए शोध. निबंध ही ग्रन्थ में दिये जा सके हैं। ग्रन्थ के लिए पूर्व निर्धारित दर्शन, धर्म आदि विषयों पर भी बहुत महत्त्वपूर्ण निबंध प्राप्त हुए थे पर उन्हें भी इस ग्रंथ में सम्मिलित नहीं किया जा सका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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